बंगाल के एक छोटे से शहर शिबपुर से हावड़ा आए एक बंगाली उद्यमी ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी एक छोटी सी शुरुआत एक दिन दुनिया भर में नाम बना लेगी।
शायद, वह देश के पहले बंगाली थे, जिन्होंने 23 साल की उम्र में नारियल तेल को एक ब्रांड बनाने के बारे में सोचा।
आज सात दशकों से उनकी बनाई कंपनी शालीमार केमिकल वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड, नारियल के तेल सहित कई प्रोडक्ट्स बेच रही है।
यह सब कुछ मुमकिन हुआ प्रकृतिनाथ भट्टाचार्जी की कोशिशों के दम पर।
प्रकृतिनाथ भट्टाचार्जी के ब्रांड को एक नई पहचान तब मिली, जब उनके मित्र पंचानन मोंडल 1945 में कंपनी में शामिल हुए थे। इस साझेदारी ने एक ऐसे ब्रांड को बनाया, जो दशकों बाद भी अपनी शुद्धता के लिए मशहूर है।
जिस चीज़ ने ब्रांड को एक घरेलू नाम बनाया वह था इसका सबसे बेहतरीन प्रोडक्ट नारियल तेल। लेकिन शालीमार के दूसरे प्रोडक्ट्स भी बाजार में बहुत लोकप्रिय हैं, खासकर इनका सरसों का तेल।
1941 में शालीमार कोकोनट एसेंशियल ऑयल और रिफाइंड एडिबल कुकिंग ऑयल की पहली फैक्ट्री कोलकाता के उत्तरी भाग में नारकेलडांगा मेन रोड पर शुरू की गई थी।
मात्र कुछ ही सालों में घरेलू बाज़ार के साथ-साथ, उनका बनाया नारियल तेल वैश्विक बाजार में भी बिकने लगा।
ब्रांडिंग में भी शालीमार ने अनोखा जादू बिखेरा, दुर्गापूजा और पारिवारिक मस्ती के साथ बना इसका विज्ञापन हर बंगाली के दिल को छू गया।
वहीं हिंदी मे भी शालीमार का विज्ञापन ख़ासा लोकप्रिय हुआ था। आम लोगों से लेकर हेमा मालिनी जैसी खास हस्ती शालीमार की ब्रांडिंग का हिस्सा रही हैं।
शालीमार हमेशा से गृहिणियों को अपना सबसे बड़ा ग्राहक मानता है। यही कारण है कि हर साल कंपनी अलग क्षेत्रों में गृहिणियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका देता है, अपने कैम्पेन और प्रतियोगिता के ज़रिए।
नए-नए ब्रांड के आने और बाजार के बदलाव से शालीमार को कई उतार चढ़ाव भी देखने को मिले।
लेकिन एक बंगाली बिजनेसमैन का सपना जो आज़ादी से पहले शुरू हुआ था, अभी भी दो स्तंभों पर टिका हुआ है - एक विश्वास और दूसरा शुद्धता।