हिंदी व तमिल फिल्मों के डायरेक्टर मणिरत्नम की नई फिल्म 'पोन्नियन सेल्वन-1', Ponniyin Selvan (The Son Of Ponni) नाम के एक पॉपुलर नॉवेल के आधार पर बनाई गई है।

तमिल लेखक काल्की ने इसे लिखा है। इस नोवल Chola Empire का ज़िक्र है, जिसे लेकर कहा जाता है कि यह दुनिया में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश था। 

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सैकड़ों सालों तक राज करने के बाद भी आज लोग चोल वंश के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते, तो आइए आपको बताते हैं कौन थे चोल और उनका इतिहास?

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लोग इस बात से बेखबर हैं कि भारत के दक्षिणी हिस्से पर सत्ता चलाने वाला पहला राजवंश चोल राजवंश ही था।

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इसने तीसरी शताब्दी BCE तक अपना राज स्थापित कर लिया था। इतिहास में इस बात के सबूत हैं कि सम्राट अशोक के मौर्या साम्राज्य से ज्यादा वक्त तक चोल वंश का पताका फहराता रहा।

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चोल राजवंश, भारत में 1279 CE तक, यानी करीब 1500 सालों तक राज करने वाला राजवंश बना।

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कितना बड़ा था चोल साम्राज्य?

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चोल वंश के शुरुआती राजाओं ने किसी तरह अपनी सत्ता को बनाए रखा, लेकिन राजाराज चोल और राजेंद्र चोल ने साम्राज्य को विस्तार देना शुरू किया।

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देखते ही देखते चोल राजवंश ने तमिल क्षेत्र की ओर विस्तार को बढ़ाने के साथ दक्षिण पूर्व में स्थित कलिंग को भी अपने कब्जे में कर लिया।

राजराजा चोला को चोल वंश का सबसे ताकतवर राजा कहा जाता है। उनके समय में चोल साम्राज्य केवल दक्षिण भारत ही नहीं बल्कि हिंद महासागर को पार करते दूसरे देशों तक भी ये साम्राज्य फैला।

चोल शासक, प्रसिद्ध भवननिर्माता थे। सिंचाई की व्यवस्था, राजमार्गों के निर्माण के अलावा, उन्होंने बड़े नगर और विशाल मंदिर बनवाए। तंजौर में बना बृहदीश्वर मन्दिर उन्हीं का बनवाया हुआ है। 

चोल वंश ने मूर्तिकला का खूब विकास किया। कांस्य और दूसरी धातुओं से सजीव और कलात्मक मूर्तियां बनने लगीं। नृत्य करते नटराज की कांस्य प्रतिमा इसी साम्राज्य की देन है।

चोल राजवंश मुख्य रूप से कावेरी नदी की घाटी में स्थित था, जो कर्नाटक, तमिलनाडु और दक्षिणी दक्कन पठार तक बहती है। चोल राजवंश ने ज़मीन के अलावा समुद्र में भी फतह हासिल की। 

इसका ही परिणाम था कि चोल राजवंश ने अपना झंडा श्रीलंका और मालदीव तक में फहराया।

राजराजा का नाम अरुलमोली था, जिसे अरुलमोझी भी कहा गया। कहा जाता है कि अरुलमोली ने राजराजा नाम खुद रखा था, जिसका मतलब था राजाओं का राजा।

चोल वंश का कैसे हुआ अंत?

11वीं ईस्वी के मध्य से ही चोल साम्राज्य के पतन की शुरुआत हो चुकी थी। पांड्या वंश का उदय हो रहा था और वे तेजी से चोल इलाकों को अपने कब्जे़ में ले रहे थे।

सन् 1150 से लेकर 1279 के बीच पांड्या वंश ने अपने पारंपरिक इलाकों में आज़ादी की मांग  बुलंद की और हमला करना भी शुरू कर दिया

यह सिलसिला सन् 1279 में अंतिम चोल सम्राट राजेंद्र तृतीय की हार तक चलता रहा और राजेंद्र तृतीय को मिली हार के साथ ही चोल राजवंश का अंत हो गया।