क्या आप पी. के. थ्रेसिया को जानते हैं, जो PWD विभाग में एशिया की पहली महिला चीफ इंजीनियर बनीं।
यह उनकी हिम्मत और जज़्बे का ही कमाल है कि आज लगातार इंजीनियरिंग करने वाली लड़कियों की तादाद में बढ़ोतरी हो रही है।
12 मार्च 1924 को एक इसाई परिवार में जन्मीं थ्रेसिया अपने छह भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थीं। उनके पिता, कक्काप्पन, केरल के त्रिशूर जिले के एडथिरुथी गाँव में किसान थे।
थ्रेसिया के इंजीनियरिंग करने के सपने में उनका सबसे ज़्यादा साथ उनके पिता ने दिया। थ्रेसिया ने कत्तुर के सैंट मैरी हाई स्कूल से अपनी पढ़ाई की
मद्रास यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से ग्रेजुएशन करने वाली पहली तीन महिलाओं में से एक पी. के. थ्रेसिया थीं। ललिता और लेल्लम्मा बाकी दो इंजीनियर ग्रेजुएट थीं।
थ्रेसिया, सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद, कोचीन में ब्रिटिश राज के अंतर्गत पब्लिक वर्क कमीशन में सेक्शन ऑफिसर के तौर पर नौकरी करने लगीं।
वह 1971 में केरल के पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में पहली महिला चीफ इंजीनियर नियुक्त हुईं। इस पद पर उन्होंने आठ साल काम किया।
किसी भी राज्य के पीडब्ल्यूडी डिपार्टमेंट में बतौर चीफ इंजीनियर काम करने वाली वह पूरे एशिया में पहली महिला थीं।
उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, “मैं सिर्फ़ 3 महीने के लिए ही ऑफिस में थी। पर तब मैंने समझा कि एक इंजीनियर की ज़िंदगी इतनी भी कठिन नहीं है, जितना कि औरतें इसे समझती हैं।”
अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने हर साल लगभग 35 नए पुल और सड़क-निर्माण प्रोजेक्ट कमीशन किए। साथ ही, उन्होंने कोड़िकोड मेडिकल हॉस्पिटल से जुड़े हुए महिला और बच्चों के अस्पताल के निर्माण का कार्यभार भी संभाला।
थ्रेसिया ने अपनी पूरी ज़िंदगी अपने काम और सपनों को दे दी और उन्होंने कभी भी शादी नहीं की। केरल के पीडब्ल्यूडी में लगभग 34 साल काम करने के बाद, 1979 में उन्होंने रिटायरमेंट ली।
सभी इंजीनियर्स को इंजीनियर दिवस की ढेरों शुभकामनाएं!