घेवर के बिना अधूरा माना जाता है राखी का त्योहार, जानें क्या है इसका इतिहास
बाज़ार में तमाम मिठाइयां हैं जो पूरे साल आपको देखने को मिलती हैं; लेकिन घेवर एक ऐसी मिठाई है जो मॉनसून के महीने में ही नज़र आती है। इन दिनों में इसकी बिक्री जमकर होती है। लेकिन क्या अपने सोचा है कि ऐसा क्यों...?
दरअसल बारिश के महीने में नमी बढ़ जाती है, ऐसे में दूसरी मिठाइयां ज़्यादा दिनों तक अच्छी नहीं रह पातीं। इनमें नमी के कारण चिपचिपाहट हो जाती है। जबकि घेवर एक ऐसी मिठाई है जिसका स्वाद इस नमी से और ज़्यादा बढ़ जाता है!
बारिश की नमी इन्हें मुलायम कर देती है, जिससे घेवर का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। यानी यह मौसम के अनुकूल मिठाई है। अगर घेवर पर खोया और पनीर न लगाया जाए तो इस मौसम में यह कई दिनों तक खराब भी नहीं होता।
समय के साथ घेवर में दूध, मावे और रबड़ी का इस्तेमाल होने लगा है; लेकिन पहले के समय में घेवर में ये चीज़ें नहीं पड़ती थीं। इसे सिर्फ़ मैदे, चीनी और पानी से तैयार किया जाता था।
घेवर के इतिहास की बात करें तो माना जाता है कि इस मिठाई की जड़ें राजस्थान से जुड़ी हैं। राजस्थान से ही घेवर देश के दूसरे शहरों में पहुंचा और काफी पसंद किया गया। और समय के साथ इसे और लज़ीज़ बनाने के लिए तमाम प्रयोग किए जाने लगे।
आज बाज़ार में मावा घेवर, मलाई घेवर और पनीर घेवर जैसे इसके कई प्रकार मिलते हैं। लेकिन इसका पूरा स्वाद तो आज भी चाशनी में डूबोकर रबड़ी और सूखे मेवों से गार्निश कर खाने में ही आता है।
बरसात के मौसम में हरियाली तीज, रक्षाबंधन जैसे कई बड़े त्योहार पड़ते हैं, जो मिठाई के बिना पूरे नहीं होते। और क्योंकि घेवर इस मौसम में ही आता है और काफी स्वादिष्ट भी लगता है, इसलिए त्योहारों में घेवर की मांग अन्य मिठाइयों से ज़्यादा बढ़ जाती है।
वैसे.. कौनसी है आपकी त्योहारों वाली पसंदीदा मिठाई?