'पूर्वोत्तर के शिवाजी' कहलाने वाले जांबाज़ लचित बोरफुकन
13वीं सदी की बात है, अहोम योद्धाओं ने स्थानीय शासकों को हराकर असम पर कब्ज़ा किया और अगले 600 सालों तक वहां राज किया। असम का नाम ही अहोम वंश के नाम पर पड़ा है।
लचित बोरफुकन का जन्म 24 नवंबर 1622 को असम के इसी अहोम साम्राज्य में हुआ।
असम के इतिहास में लचित बोरफुकन का नाम बेहद महत्वपूर्ण है। 1671 में गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के तट पर लड़ी गई सराईघाट की लड़ाई के दौरान बोरफुकन, अहोम सेना के कमांडर थे।
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इस लड़ाई में बोरफुकन ने अपने जज़्बे के दम पर मुगल बादशाह औरंगजेब के सेनापति राम सिंह को अपनी सेना समेत असम से बाहर खदेड़ दिया।
उन्हें उनकी वीरता और कुशल नेतृत्व क्षमता के लिए याद किया जाता है। इसी के चलते उन्हें पूर्वोत्तर का शिवाजी भी कहा जाता है।
उन्हें युद्ध कला, अस्त्र-शस्त्र और युद्धनीति का पूरा ज्ञान था। उन्हें अहोम राजा चक्रध्वज सिंह ने अपने साम्राज्य का सेनापति बनाया और सोलाधार बोरुआ, घोड़ा बोरुआ और सिमूलगढ़ किले के सेनापति जैसी कई उपाधियां दीं।
कहते हैं, लचित ने मुगल सेना को रोकने के लिए अहोम साम्राज्य के चारों तरफ़ दीवार बनाने की रणनीति बनाई थी और सैनिकों को रातों-रात दीवार बनाने का आदेश दिया।
लचित के पराक्रम और सराईघाट की लड़ाई में असमिया सेना की जीत की याद में हर साल असम में 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है। उनके नाम पर नेशनल डिफेंस एकेडमी में बेस्ट कैडेट गोल्ड मेडल भी दिया जाता है।