विदेशियों को भा रही है भारत की 400 साल पुरानी परंपरा, हज़ारों में बिक रहे कोंडापल्ली खिलौने

आंध्र प्रदेश के कोंडापल्ली में बरसों से पौराणिक किरदारों पर खिलौने बनाए जा रहे हैं। इसी जगह विशेष की वजह से इन्हें ‘कोंडापल्ली खिलौना’ कहा जाता है।

इन खिलौनों का इतिहास तकरीबन 400 साल पुराना है।

कलाकार इन्हें बनाते और रंग भरते हुए बारीक कारीगरी का इस्तेमाल करते हैं। लकड़ी से बनने वाले ये खिलौने देश-विदेश तक मशहूर हैं और इन्हें GI टैग भी मिला है।

इसी कला ने इस कस्बे को देश-विदेश में पहचान दिलाई है। करीब 35 हज़ार की आबादी वाले कोंडापल्ली के 100 परिवार इस पुश्तैनी कारोबार से जुड़े हैं।

इनकी सबसे बड़ी खासियत है कि ये पूरी तरह हाथ से बनते हैं। मशीन का इस्तेमाल नहीं होता। इन्हें बनाने के लिए आसपास पाए जाने वाले तेल्ला पोनिकी पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल होता है।

लकड़ी के एक-एक टुकड़े को घंटों तराशने के बाद इमली के बीज व लकड़ी के बुरादे से बने पेस्ट (मक्कू) के साथ इन टुकड़ों को जोड़ा जाता है। इसके बाद इनेमल पेंट व प्राकृतिक रंगों से इन्हें पेंट किया जाता है।

इनेमल पेंट इन्हें अम्ल, क्षार, पानी, भाप, गैस व धुएं से बचाता है। फिर लकड़ी के बुरादे से पॉलिश कर इन्हें चमकाया जाता है।

ये 20 रुपये से लेकर 15 हजार रुपये तक के मिलते हैं। आप इन्हें आनलाइन भी खरीद सकते हैं।

आंध्र प्रदेश पर्यटन प्राधिकरण की सहायक निदेशक लाजवंती नायडू बताती हैं कि इस कला को प्रोत्साहित करने के लिए युवा पीढ़ी को प्रशिक्षण भी दिया जाता है, ताकि दुनियाभर में कोंडापल्ली खिलौनों की शान बनी रहे।