1976 में जब भारत में आपातकाल लागू था, तब न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत के सुप्रीम कोर्ट के एक जज की तारीफ में एक आलेख लिखा ।
उस लेख में जस्टिस हंस राज खन्ना की तारीफ, एडीएम जबलपुर मामले में दर्ज उनकी असहमतियों के कारण हुइ थी।
एडीएम जबलपुर का मामला आपातकाल (1975-1977) के दौर में उठा था।
अनुच्छेद 359 ( यानी आपात स्थिति में मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन का निलंबन) के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करके राष्ट्रपति ने एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत नागरिकों को अदालतों से संपर्क करने का अधिकार नहीं दिया जा रहा था।
उस समय विपक्ष के प्रमुख नेताओं को हिरासत में ले लिया गया था।
हिरासत में लिए गए नेताओं ने सम्बंधित उच्च न्यायालयों का दरवाजा खटखटाया और अधिकांश न्यायालयों ने कहा नागरिकों को अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के खिलाफ न्यायालयों से संपर्क करने का अधिकार है, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो। सरकार ने हाईकोर्ट के आदेशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
मामले की सुनवाई 5 जजों की एक संविधान पीठ ने की।5 जजों की पीठ की ओर से 4:1 से पारित आदेश जारी किया गया।
जिस एकमात्र जज ने अपनी असहमति रखी थी, वह जस्टिस एचआर खन्ना थे।
जस्टिस खन्ना ने माना था कि अदालतों से संपर्क करने का एक नागरिक का अधिकार आपातकाल में भी उनसे छीना नहीं जा सकता है।
प्रधानमंत्री के शासन और इमरजेंसी के नियमों के विपरीत जाकर बिना डरे उन्होंने अपनी राय रखीं जिसकी तारीफ आज दुनिया भर में की जाती है।
आपातकाल एक भयावह दौर था जिसमें हर कोई डर गया था। एकमात्र जज, जिन्होंने भय या पक्षपात को अपने संवैधानिक शपथ के रास्ते में नहीं आने दिया वह थे महान न्यायमूर्ति एचआर खन्ना।