जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा यानी JRD Tata का नाम लेते ही देश के सबसे बड़े बिज़नेस समूह टाटा ग्रुप ही याद आता है।

जिन्होंने एवीएशन, ऑटोमोबाइल, सॉफ्टवेयर, मेकअप सहित कई क्षेत्रों में देश को गर्व करने का मौका दिया और 52 सालों तक टाटा ग्रुप की कमान संभाली।

लेकिन बिज़नेस स्किल्स से हटकर जो बात उन्हें खास बनाती हैं, वह है उनके लिखे हुए सैकड़ों खत...

जेआरडी टाटा ने अपने जीवनकाल में अपने सहयोगियों, दोस्तों और अन्य लोगों को सैकड़ों पत्र लिखे हैं। उन्हीं में से एक पत्र की बात आज हम करेंगे।

1965 में टाटा ने यह पत्र कोलकाता के एक स्कूल शिक्षक के.सी.भंसाली के भेजे गए पत्र का जवाब में लिखा था।

दरअसल, उस खत में शिक्षक ने टाटा से उन मार्गदर्शक सिद्धांतों को साझा करने के लिए कहा था जो उनकी व्यक्तिगत और व्यवसायिक यात्रा की सफलता से जुड़ें हैं।

इस सवाल का जवाब टाटा ने बेहद ही सुंदर तरीके से दिया, जिसमें उनकी संवेदनशीलता, दयालुता और विनम्रता झलकती है।

जेआरडी, उस समय 62 वर्ष के थे। उन्होंने स्कूल शिक्षक के "शानदार व्यक्तित्व" के लेबल को नकारते हुए कहा कि वह खुद को केवल एक साधारण व्यवसायी और नागरिक मानते हैं।  जिन्होंने भारत के औद्योगिक और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए अपने अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग करने की कोशिश की है।

उन्होंने कहा, कड़ी मेहनत के बिना कुछ भी सार्थक हासिल नहीं होता है।

कोई भी सफलता या उपलब्धि तब तक सार्थक नहीं है, जब तक कि वह देश और उसके लोगों की जरूरतों या हितों को पूरा नहीं करती है। और सफलता हमेशा निष्पक्ष और ईमानदार तरीकों से हासिल की जाती है।

किसी भी कार्य में, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, हमेशा बेहतरीन तरीके से पूरा करना चाहिए। काम तब तक पूरा नहीं होता जब तक आप उससे पूरी तरह से संतुष्ट न हो जाएं।  

यह पत्र उनके कई पत्रों में से एक है जो वह नियमित रूप से अपने प्रियजनों,  सहयोगियों, अधिकारियों और यहां तक कि आम लोगों को भी लिखते रहते थे।

उनमें से लगभग तीन सौ पत्रों को  रूपा प्रकाशन की एक पुस्तक में संकलित किया गया है। यह किताब उनकी जीवनशैली, स्वभाव, जुनून और मूल्यों और रिश्तों पर करीब से बताती है।

इन खतों में फरवरी, 1978 में इंदिरा गाँधी का लिखा खत और अप्रैल, 1974 में सुधा मूर्ति का लिखा खत भी शामिल है जो काफी मशहूर भी हैं।