रसोई के पारंपरिक बर्तन जो आज कहीं खो गए हैं!

बटलोई या बटुली

जब भगोना उतना आम नहीं था, तब रसोई में दाल पकाने के लिए कसकुट धातु से बनी बटुली का इस्तेमाल किया जाता था। गैस चूल्हे के आने से इसका इस्तेमाल ख़त्म हो गया क्योंकि इनकी बनावट के कारण इसे गैस पर रखना मुश्किल होता है।

स्टील के बर्तनों के पहले फूल से बने गिलास, कटोरे, थाली, करछुल और कड़ाही काफ़ी लोकप्रिय हुआ करते थे। फूल एक धातु का नाम है, जो ताम्बे और जस्ते के मिश्रण से बनता था।

फूल के बर्तन

कद्दूकस

एक चारपाई के आकार के इस बर्तन में अगर कोई चीज़ घिसी जाए, तो उसके रेशे नीचे गिरते थे, सलाद बनाने, गरी को कद्दुकस करने और गाजर के हलवे के लिए गाजर को घिसने के लिए यह खूब इस्तेमाल हुआ करता था।

सिलबट्टा

जब बात स्वादिष्ट चटनी की हो तो सिलबट्टे के बगैर हमारी यादों की यह कहानी पूरी नहीं हो सकती! पत्थर के सिल पर बट्टे से मसाले और चटनी पीसना कभी आम हुआ करता था।

खल मूसल

इसका एक और प्रचलित नाम इमाम दस्ता भी है, जो तरह-तरह के खड़े मसालों को पीसने के काम में आता था। मिक्सी और पिसे मसलों के बाज़ार में आ जाने से अब इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती और किचन से यह धीरे-धीरे गायब हो गया है।

सूप

सरपत की पतली बालियों से बना सूप, एक वक़्त में हमारी रसोई का ज़रूरी हिस्सा था, जिसका इस्तेमाल अनाजों को साफ़ करने के लिए किया जाता था। इसे अवधी में पछोरना कहते हैं और इसे इस्तेमाल करना भी एक कला हुआ करती थी।

मर्तबान

हर रसोई में छोटे-बड़े साइज़ के चीनी मिट्टी के प्यालों में घी और अचार जैसी चीज़ें रखी जाती थीं, इन्हें मर्तबान कहते थे। बड़े सलीके से इन्हें किचन में बने ताखे से उतारना पड़ता था। अब इनकी जगह प्लास्टिक और स्टील के डब्बों ने ले ली है।

फुकनी

जब चूल्हे व अंगीठी का ज़माना था, तब उनकी आग को बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल होता था। ठोस लोहे की बनी फुकनी, आकार में बांसुरी की तरह होती थी, जो दोनों और से खुली होती थी, एक तरफ़ से फूंका जाता था और दूसरी तरफ़ से फूंक आग में जाती थी।