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अकबर के नवरत्न में से एक महेश दास की कहानी

बीरबल, जिनकी बुद्धिमानी की कोई बराबरी नहीं कर सकता था, वह मुग़ल बादशाह अकबर के दरबार के नवरत्नों में सबसे ख़ास और अहम थे।

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लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह उनका असली नाम नहीं था?

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कवि और ज्ञानी बीरबल का जन्म 1528 में उत्तर प्रदेश के काल्पी के एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

उनका असली नाम महेश दास था। उन्हें कविताएं और गीत लिखने का शौक़ बचपन से ही था।

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अकबर और बीरबल की पहली मुलाकात 1556 से 1562 के बीच हुई थी, जिसके बाद उन्हें बीरबल की हाज़िर जवाबी और सवाल का जवाब देने की कला इतनी पसंद आई कि उन्होंने बीरबल को अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया।

बीरबल एक ऐसे रत्न थे, जिन्होंने अकबर का शुरू किया धर्म दीन-ए-इलाही अपनाया था।

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बीरबल में किसी भी कठिन समस्या का हल बख़ूबी निकालने का हुनर था।

अकबर ने ही महेश दास को 'बीरबल' की उपाधि दी थी। और उन्हें कुछ राज्य भी भेंट किये थे, इसलिए उन्हें राजा बीरबल भी कहा जाता है।

बीरबल का अर्थ होता है, हाज़िर जवाब या तेज़ी से विचार करने वाला।

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मुगल साम्राज्य के इतिहासकार अब्दुल क़ादिर बदायुनी ने लिखा है कि, अपनी ईमानदारी, ख़ास तरह के व्यवहार और बुद्धिमत्ता के कारण वह अकबर के प्रिय बने थे।