अशोक स्तंभ : एक जर्मन इंजीनियर ने खोज निकाला था हमारे देश का राष्ट्रिय चिन्ह।

सारनाथ की खुदाई में निकला था भारत का राष्‍ट्रीय प्रतीक, जिसे अंग्रेजों के सिविल इंजिनियर, फ्रेडरिक ऑस्‍कर ने खोज निकाला था।

इस चिन्ह को 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र भारत में राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया।

हेरिटेज लैब के अनुसार, "इस प्रतिक के सिंह...शक्ति, साहस, गर्व और आत्मविश्वास के प्रतीक हैं।"

ये सभी सिंह एक बेलनाकार अबेकस के ऊपर बैठे हैं। जिसमें एक घोड़ा,  एक बैल, एक शेर और एक हाथी  हैं। इन सभी जानवरों को 24 तीलियों वाले  चक्रों से अलग किया जाता है।

यह चक्र आज हमारे राष्ट्रिय ध्वज में  दिखता है। 

भारत का राष्ट्रीय प्रतीक, एक लम्बे प्राचीन इतिहास में डूबा हुआ है।  इस प्रतिक को हम कभी जान ही नहीं पाते, अगर सालों पहले इस जर्मन इंजीनियर ने इसे खोजा न होता।  

1904-05 में उत्तर प्रदेश के सारनाथ में एक पुरातात्विक स्थल की खुदाई करते हुए, फ्रेडरिक ऑस्कर ओरटेल ने अशोक के एक स्तंभ का पता लगाया था।

वह एक ब्रिटिश नागरिक थे और भारतीय कला, पुरातत्व और राष्ट्रीय पहचान में उनका योगदान बहुत बड़ा है। क्योंकि उन्होंने अपना अधिकांश समय ब्रिटिश शासन के दौर में भारत में ही बिताया था।  

9 दिसंबर 1862 को जर्मनी के हनोवर में जन्मे ओरटेल, कम उम्र में ही ब्रिटिश शासित भारत में आ गए थे।  

1883 से 1887 तक, वह इंडियन पब्लिक बोर्ड में रेलवे और भवन निर्माण इंजीनियर थे।  

कुछ समय बाद आर्किटेक्चर की पढ़ाई करने वह यूरोप चले गए थे।  उन्होंने ब्रिटिश शासित कई देशों में काम किया। लेकिन भारत में उनकी खोजें सबसे ज़्यादा चर्चित रहीं।  

लाइव हिस्ट्री इंडिया में जाह्नवी पटगांवकर ने नोट किया कि कैसे "19वीं शताब्दी की शुरुआत में, सारनाथ अपने पुरातात्विक महत्व के लिए मशहूर हो गया।"

पटगांवकर के अनुसार, ओरटेल ने सारनाथ में, अब तक की सबसे बेहतरीन खोजें की हैं, जिनमें 476 मूर्तिकला और स्थापत्य अवशेष, कुषाण राजा कनिष्क, एक संघराम (मठ) की नींव, बौद्ध और हिंदू देवताओं की कई छवियां और अशोक स्तंभ के शिलालेख शामिल हैं।  

उनकी सबसे बड़ी खोज है, लायन कैपिटल - पुरे अशोक स्तंभ को कमल के फूल की आकृति के ऊपर बनाया गया है। इसमें बनाए गए बड़े स्तंभ को लायन कैपिटल कहा जाता है।

1921 में जब ओरटेल ने भारत छोड़ा, तो उन्हें शायद इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनका काम ब्रिटिश शासन से आज़ादी के बाद भारत की राष्ट्रीय पहचान का आधार बनेगा।