रूई से भी हल्की मिठाई का स्वाद चखना चाहेंगे?

नवाबी ठाठ वाले लखनऊ ने बदलाव के कई दौर देखे हैं, पर 200 साल से भी पुराना एक स्वाद है, जो आज भी बरकरार है।

अवध क्षेत्र का तख़्त कहे जाने वाले लखनऊ के चौक पर आज भी 50 से ज़्यादा दुकानें मौजूद हैं, जहां बनती है रूई से भी हल्की मिठाई।

लखनऊ की रियासत के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह भी इसके मुरीद थे।

Multiple Blue Rings
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दिल्ली वाले इसे 'दौलत की चाट' कहते हैं। ठेठ बनारसिया इसे 'मलइयो' नाम से पुकारते हैं। आगरा में ‘16 मजे’ और लखनऊ में आकर यह 'मक्खन-मलाई' बन जाती है।

मक्खन मलाई को बनाने का तरीका समय, संयम और सुकून मांगता है। रात 2:30 बजे से लेकर सुबह 4 बजे तक दूध को झाग बनने तक मथानी से फेटा जाता है।

फिर इसे सर्दी की सुबह में गिरने वाली ओस में रखा जाता है। ओस की नमी से झाग फूल जाता है, जो इसके स्वाद को बढ़ाने का काम करता है।

मक्खन-मलाई खाने का तरीका भी खास है। मिट्टी के प्याले में भरे हुए मक्खन मलाई को मिट्टी के चम्मच से खाने का मज़ा ही कुछ और है। यह मिट्टी का चम्मच प्याले को तोड़कर ही बनाया जाता है।

लखनऊ में मक्खन-मलाई की करीब 50 दुकानें हैं। लेकिन इसे गली-गली जाकर साइकिल पर बेचने वालों की कोई गिनती नहीं है।

तो जब आप यूपी आएं, तो ज़रूर लें मलाई मक्खन का स्वाद!