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विश्वप्रसिद्ध मधुबनी पेंटिंग का रोचक है इतिहास, आपदा के दौरान मिली थी पहचान।

भारत रचनात्मकता, कला और संस्कृति का देश है और भारत की मधुबनी पेंटिंग आज दुनियाभर की सबसे प्रसिद्ध कलाओं में से एक है।

प्राचीन भारत में समृद्धि और शांति के रूप में इस अनूठी शैली का इस्तेमाल महिलाएं अपने घरों और दरवाजों को सजाने के लिए किया करती थीं।

क्योंकि बिहार के मिथिला क्षेत्र में इस कला की उत्पत्ति हुई है, इसलिए इसे मिथिला आर्ट के रूप में भी जाना जाता है।

आधुनिक मधुबनी कला शैली का विकास 17वीं शताब्दी के आसपास हुआ और यह शैली मुख्य रूप से जितवारपुर और रतन गांव में विकसित हुई।

भारत के गाँवों से निकलकर विदेशों तक कैसे पहुंची? मिथिला पेंटिंग के विस्तार की कहानी दो त्रासदियों से जुड़ी है...

1934 में बिहार में आए ज़बरदस्त भूकंप के बाद राहत पहुंचाने पहुंचे ब्रिटिश अफसर और कला प्रेमी डब्ल्यूजी आर्चर की निगाहें क्षतिग्रस्त मकानों में बनीं इन पेंटिंग्स पर पड़ीं।

उन्होंने इन चित्रों को अपने कैमरे में कैद कर लिया। बाद में वह इस कला के संग्रह और अध्ययन में जुट गए। इस तरह लोगों ने पहली बार इस शैली को जाना।

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कहते हैं कि पाब्लो पिकासो भी मिथिला पेंटिंग को देख प्रभावित हुए थे। इसके बाद 1965-66 में बिहार में पड़े भारी अकाल के दौरान इसे व्यावसायिक रूप मिला।

हुआ यूँ कि 60 के दशक में ऑल इंडिया हैंडिक्राफ्ट बोर्ड ने मुंबई के कलाकार भाष्कर कुलकर्णी को मिथिला क्षेत्र में इस कला को परखने के लिए भेजा था..

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अकाल के दौरान कुलकर्णी ने इस क्षेत्र की महिलाओं को कागज पर चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया, ताकि आमदनी के स्रोत के रूप में यह कला विकसित हो सके।

यह प्रयोग व्यावसायिक रूप से कारगर साबित हुआ और आज मधुबनी कला शैली में कई प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं, जिनका बाज़ार और लोकप्रियता देश-विदेश तक फैली हुई है।