बेटियाँ हुईं तो की गईं प्रताड़ित, आदिवासी महिलाओं के लिए काम कर राष्ट्रपति से पाया सम्मान

पडाला भूदेवी शुरुआत से ही पढ़ाई में काफी अच्छी थीं, लेकिन उनकी शादी महज़ 11 साल की उम्र में कर दी गई।

ससुराल आने के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी और महज़ कुछ सालों बाद ही उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। इसके बाद उन्हें दूसरी बेटी हुई और फिर तीसरी।

बस यहीं से भूदेवी के जीवन का सबसे कठिन दौर शुरू हुआ और उन्हे ससुराल में शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा।

हालात इतने बुरे हो गए कि उन्हें साल 2000 में अपनी तीनों बेटियों के साथ मायके वापस आना पड़ा। 

मायके आने के बाद पडाला भूदेवी ने श्रीकाकुलम में आदिवासी परिवार की महिलाओं के लिए काम करने का मन बनाया।

उन्होंने सबसे पहले आदिवासी महिलाओं के अधिकारों के बारे में पढ़ा, फिर समुदाय की महिलाओं को इस बारे में जागरूक करना शुरू किया। यह सब देख भूदेवी के पिता ने उन्हें 'चिन्ना आदिवासी विकास सोसाइटी' की जिम्मेदारी भी थमा दी। 

इस संगठन की शुरुआत उनके पिता ने ही साल 1996 में की थी। संगठन के लिए काम करते हुए उन्होंने अपनी तीनों बेटियों की परवरिश की और साथ ही महिलाओं को कृषि उद्यमी बनने में मदद करना शुरू कर दिया।

उनकी कोशिशों के कारण ही आदिवासी क्षेत्रों में पानी, सड़क, बिजली और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंच सकीं। पडाला, देश के तमाम हिस्सों के साथ, कई दूसरे देशों में भी गईं और वहाँ उन्होंने कई तरह के काम सीखे। 

समुदाय के लोगों को पोषण मिल सके, इसके लिए उन्होंने रागी उगाना शुरू किया और लोगों को भी समझाया कि किन चीज़ों से पोषण ज्यादा मिलता है।

साथ ही उन्होंने रागी बिस्किट बनाने शुरू किए और हर कोई इसे खरीद सके उनता ही दाम रखा। आज वह बड़े पैमाने और यह काम कर रही हैं और इससे समुदाय के लोगों को पोषण के साथ-साथ रोज़गार भी मिला है।