बाबा साहेब की जयंती के मौके पर उनकी कुछ रोचक बातें और अनमोल विचार, जिन्हें हमें अपने जीवन में उतारना चाहिए।
14 अप्रैल 1891 को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्यप्रदेश के महू में हुआ था।
बचपन से ही बाबा साहेब को आर्थिक और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। स्कूल में छुआ-छूत और जाति-पाति का भेदभाव झेलना पड़ा।
अंबेडकर के पूर्वज लंबे वक्त तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में काम करते थे। उनके पिता भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे और यहां काम करते हुए वे सूबेदार की पोस्ट तक पहुंचे थे।
बाबा साहेब के एक ब्राह्मण टीचर 'महादेव अंबेडकर' को उनसे खासा लगाव था। उनके कहने पर ही अंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया।
विषम परिस्थितियों के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। ये उनकी काबलियत और मेहनत का ही परिणाम था कि अंबेडकर ने 32 डिग्रियां हासिल कीं और फिर ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बने।
डॉ अंबेडकर, किसी अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी हासिल करने वाले देश के पहले अर्थशास्त्री थे।
उन्होंने मूक, अशिक्षित और निर्धन लोगों को जागरुक बनाने के लिये 'मूकनायक' और 'बहिष्कृत भारत' नाम से साप्ताहिक पत्रिकायें संपादित कीं।
डॉक्टर अंबेडकर ने 1917 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पीएचडी के लिए जो थीसिस पेश की वह 1925 में एक किताब की शक्ल में प्रकाशित भी हुई।
'प्रॉविन्शियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया’ के नाम से छपी इस किताब में उन्होंने 1833 से 1921 के दरम्यान ब्रिटिश इंडिया में केंद्र और राज्य सरकारों के वित्तीय संबंधों की शानदार समीक्षा की है।
आज भले ही ज्यादातर लोग उन्हें भारतीय संविधान के निर्माता और दलितों के मसीहा के तौर पर याद करते हों, लेकिन डॉ अंबेडकर ने अपने करियर की शुरुआत एक अर्थशास्त्री के तौर पर की थी।
1948 से अंबेडकर को डायबिटीज की बीमारी थी। जून से अक्टूबर 1954 तक वे काफी बीमार रहे। इस दौरान वे कमजोर होती नजर से परेशान थे।
सियासी मुद्दों से परेशान अंबेडकर की सेहत बद-से-बदतर होती चली गई। 1955 के दौरान किए गए लगातार काम ने उन्हें तोड़कर रख दिया और 06 दिसंबर, 1956 को उनकी मृत्यु हो गई।
डॉ. अंबेडकर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
डॉ. अंबेडकर के अनमोल विचार
"मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।"
"यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा।"
"समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।"
"जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है, वह सदा अच्छे कार्य में लगा रहता है।"
"धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए।"
"मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं, जो महिलाओं ने हासिल की हैं।"
"जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर लेते, कानून द्वारा जो भी स्वतंत्रता प्रदान की जाती है, वह आपके किसी काम की नहीं है।"
"एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठित व्यक्ति से इस मायने में भिन्न होता है कि वह समाज का सेवक बनने के लिए तैयार है।"