देश के कई महान क्रांतिकारियों के नाम और आजादी की लड़ाई में उनके योगदान के किस्से तो आपने जरूर सुने होंगे। लेकिन इतिहास के पन्नो में एक खोई हुई एक आवाज़ भी है, जिनका नाम  था - 'उषा मेहता'!

 जिन्होंने 22 साल की उम्र में कांग्रेस सीक्रेट रेडियो शुरू करने, आज़ादी की लड़ाई में राष्ट्रवादी जोश को बनाए रखने का काम किया था।

फिल्म 'ऐ वतन वतन मेरे' उषा मेहता के ऊपर बनी एक बायोपिक है, जिसमें सारा अली खान मुख्य भूमिका में नज़र आएंगी।

25 मार्च 1920 को गुजरात के सूरत के पास सरस में जन्मीं उषा बचपन से ही महात्मा गाँधी के अहिंसा के रास्ते से प्रभावित थीं। 

बापू से मुलाक़ात के बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को ही ज़िंदगी का मक़सद बना लिया था।

9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत के दौरान कांग्रेस के कुछ युवा समर्थकों ने बॉम्बे में बैठक की।

इन लोगों का विचार था कि भारत छोड़ो आंदोलन की आग धीमी न पड़ने पाए, इसके लिए कुछ कदम उठाने ज़रूरी थे।  इन स्वतंत्रता सेनानियों का मानना था कि अखबार निकालकर वे अपनी बात लोगों तक नहीं पहुंचा पाएंगे, क्योंकि ब्रिटिश सरकार ऐसा होने नहीं देगी।  इस बैठक में रेडियो की समझ रखने वाले उषा मेहता जैसे युवा भी थे।

यहीं से संचार के नए साधन रेडियो के ज़रिए क्रांति की अलख जगाए रखने का आइडिया मिला।

जब माहौल शांत होने लगा और आज़ादी के लिए लड़ने वालों में निराशा छाने लगी,  तब 27 अगस्त 1942 के दिन ख़ुफिया रेडियो सर्विस का पहला प्रसारण हुआ, उषा मेहता ने धीमी आवाज़ में रेडियो पर घोषणा की- "यह कांग्रेस रेडियो की सेवा है, जो 42.34 मीटर पर भारत के किसी हिस्से से प्रसारित की जा रही है।"

इस रेडियो सेवा ने आज़ादी के आंदोलन में तेज़ी ला दी। रेडियो के ज़रिए जो सूचनाएं ब्रिटिश सरकार आम जनता से छुपाना चाहती थी

क्या आप जानते थे इस स्वतंत्रता सेनानी की कहानी?