हर्षिल, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक छोटा सा हिल स्टेशन है। बेहतरीन आबोहवा और बर्फ से लदे इसके पहाड़ों को सैलानी खूब पसंद करते हैं। हर्षिल की एक और पहचान है यहाँ के सेब। एक समय था जब यहाँ के सेब बागवानों को कोई जानता भी नहीं था और पर्यटन के नाम पर भी यहाँ ज्यादा कुछ ख़ास नहीं था, लेकिन यहाँ के डीएम आशीष चौहान (DM Ashish Chauhan) के प्रयासों के चलते न सिर्फ शहर को एक नई पहचान मिली बल्कि सेबों से जुड़े किसानों की ज़िंदगी भी बेहतर बन गयी। यह उनके अच्छे व्यवहार का ही नतीजा है आज उनके नाम पर स्पेन में एक माउंटेन ट्रेक का नाम रखा गया है।
आइये जानते हैं कैसे उत्तराखंड के इस खूबसूरत हिल स्टेशन के अच्छे दिन आये और क्या-क्या हैं आशीष चौहान की उपलब्धियाँ।
सेब फेस्टिवल का आयोजन
उत्तरकाशी के डीएम रहे आशीष चौहान के कार्यकाल के दौरान यहाँ 2018 में पहली बार सेब फेस्टिवल का आयोजन कराया गया।
आशीष बताते हैं, “यह सेब फेस्टिवल दो दिन तक चला। इसमें केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के बागवानों ने भी शिरकत की। फेस्टिवल का इस तरह प्रचार किया गया कि इसमें न केवल देश, बल्कि विदेश के भी निवेशक और व्यवसायी पहुंचे। इस दौरान सेब प्रदर्शनी लगी। हेरिटेज विलेज वॉक कराई गई। हेरिटेज प्रदर्शनी लगी। बागवानों ने इसमें अपने सेब के स्टाल लगाए। कुछ व्यवसायियों को तो सेब इतने पसंद आए कि उन्होंने आर्डर देने में कतई देरी नहीं की। इसके बाद भी बागवानों के पास डिमांड आने का सिलसिला बरकरार रहा।”
किसानों की ट्रेनिंग व मार्केटिंग योजना से बदली तस्वीर
उत्तरकाशी जिले में नौ हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर 12 हजार से अधिक किसान सेब की खेती कर रहे हैं। पहले काश्तकार 50 रुपये प्रति किलो सेब बेच रहे थे, लेकिन अच्छी मार्केटिंग से अब उन्हें सौ से लेकर 200 रुपये प्रति किलो तक मिलने शुरू हो गए। जिला प्रशासन ने सेब काश्तकारों पर खास ध्यान दिया। उन्हें फर्टिलाइजर, ट्रेनिंग और इक्विपमेंट के साथ ही उत्पाद की क्वालिटी को बढ़ाने के लिए तमाम मदद मुहैया कराई गई। सेब के हर्षिल ब्रांड की मार्केटिंग बढ़िया होने से फायदा यह हुआ कि जहाँ पहले 10 किलो सेब की पेटी 500 रुपये में जा रही थी। इसके लिए उन्हें 1200 से लेकर 1500 रुपये तक मिलने शुरू हो गए। इस बदली तस्वीर से बागवान बेहद उत्साहित थे।
‘हॉर्न आफ हर्षिल’ से पर्वतारोहण को बढ़ावा
आशीष को ट्रैकिंग करने के साथ ही क्षेत्र में पहाड़ों की अनाम चोटियों को मापने का भी शौक है। उन्होंने गंगोत्री-गोमुख-तपोवन समेत कई ट्रैक किए। जिला प्रशासन ने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग यानी निम और एसडीआरएफ (स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स) के साथ मिलकर हॉर्न ऑफ़ हर्षिल के नाम से पर्वतारोहण अभियान का आयोजन किया। मकसद यह था कि क्षेत्र में साहसिक गतिविधियों को बढ़ावा मिले। इसके अच्छे नतीजे भी सामने आए। इसके अलावा एक छह सदस्यीय पर्वतारोही दल ने हर्षिल में 4823 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक अनाम चोटी पर भी फतह हासिल की। यह अभियान निम के प्राचार्य कर्नल अमित बिष्ट की अगुवाई में शुरू हुआ था।
स्पेन के एक माउंटेन ट्रेक को मिला उनका नाम
आशीष चौहान बताते हैं कि 2018 में उनके पास एक विदेशी पर्वतारोही एंटोनियो(Antonio) आए थे। उन्होंने उनको क्षेत्र की भौगोलिक और अन्य जानकारी देने के साथ ही उन्हें अपना मोबाइल नंबर भी हर समय सहायता के आश्वासन के साथ दिया। इसके बाद एंटोनियो लगातार उनके संपर्क में रहे और हर जरूरत में उनसे सहयोग लेते रहे। एंटोनियो आशीष चौहान के व्यवहार से इतने प्रभावित हुए कि जब स्पेन में जाकर उन्होंने एक वर्जिन शिखर का सफलतापूर्वक आरोहण किया तो उन्होंने उसका नाम मैजिस्ट्रेट पॉइंट दिया। इसके अलावा उन्होंने वहाँ तक के ट्रैक को वाया आशीष का नाम दिया। एंटोनियो ने इस बात को आशीष से साझा किया। खुद आशीष चौहान (Ashish Chauhan) ने इस संबंध में जानकारी अपने फेसबुक अकाउंट के जरिए सभी लोगों से शेयर भी की।
लोगों को जागरूक करने के लिए उन्हीं की बोली को अपनाया, सफाई अभियान भी चलाया
आशीष की सराहना स्थानीय बोली को बढ़ावा देने के लिए भी की जाती है। उन्होंने कोविड-19 के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए स्थानीय जनता से गढ़वाली बोली में पत्र व्यवहार किया। इसकी एक वजह उत्तराखंड में स्थानीय बोली का प्रचार-प्रसार भी था। खुद आशीष बताते हैं कि वह मूल रूप से राजस्थान के रहने वाले हैं। वहाँ मातृ भाषा को प्रमुखता दी जाती है। आशीष ने लोगों से संवाद की इस डोर को पकड़ लिया। उन्होंने लोगों को कोरोना के खतरे के प्रति आगाह करते हुए बचाव करने के तरीकों से अवगत कराया। कोरोना संक्रमण नियंत्रण सहित लोगों को सफाई के लिए जागरूक करने में भी अहम भूमिका अदा की। इससे पहले वह नचिकेता ताल समेत अन्य स्थानों पर भी सफाई अभियान चला चुके थे।
सिविल सेवा में आकर बदलाव लाना संभव है
मध्य कालीन इतिहास में पीएचडी की डिग्री हासिल करने वाले आशीष चौहान कहते हैं कि सिविल सेवा में आकर चीजों को बदलना और बेहतर करना संभव है। यही वजह है कि वह हमेशा से सिविल सेवा में ही आना चाहते थे उन्होंने किसी की देखा-देखी यह फैसला नहीं किया। राजस्थान के जोधपुर से ही अपनी अधिकांश पढ़ाई करने वाले आशीष ने यमुनोत्री की आपदा के वक्त यात्रा को देखते हुए वहाँ महज एक पखवाड़े के भीतर पुल तैयार करा दिया। वहीं, साढ़े चार माह में भीमबली का भी कायाकल्प किया। उन्हें 2019 में गणतंत्र दिवस पर सीएम एक्सीलेंस एंड गुड गवर्नेंस अवार्ड भी मिल चुका है।
ईमानदारी के साथ मेहनत से काम करने पर मिलती है कामयाबी
आशीष ने दो दिन पहले ही उत्तराखंड सिविल एविएशन अथॉरिटी (यूकाडा) में सीईओ यानी मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद ज्वाइन किया है। आशीष चौहान का मानना है कि किसी भी क्षेत्र में कामयाबी केवल ईमानदारी के साथ मेहनत से अपना काम किए जाने से ही मिल सकती है। वह अपने नए कार्य क्षेत्र में भी यही सिलसिला जारी रखना चाहते हैं। बतौर डीएम उन्होंने जो काम किया है उसे उत्तरकाशी जिले में लोग याद करते हैं। निश्चित रूप से इससे बड़ी कामयाबी नहीं हो सकती।
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