उत्तराखंड की रहनेवाली माउंटेन गर्ल शीतल (Mountain Girl Sheetal) का जब जन्म हुआ, तो उनकी दादी बिल्कुल भी खुश नहीं थीं, क्योंकि घर में बेटी का जन्म हुआ था। लेकिन तब शायद उन्हें भी नहीं पता था कि एक दिन यही बेटी उनके कुल के साथ-साथ, पूरे देश का नाम रोशन करेगी। शीतल (Mountain Girl Sheetal) जैसे-जैसे बड़ी होती गईं, उनकी प्रतिभा, उनका हुनर लोगों को प्रभावित करने लगा। लेकिन परिवार में उनके जन्म से ही जो माहौल था, उसे ठीक करने के लिए, शीतल ने कुछ बड़ा करने का फैसला किया।
आखिरकार, प्रैक्टिस और कड़ी ट्रेनिंग के बाद, साल 2018 में वह दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा पर चढ़ने वाली सबसे युवा महिला बनीं। उनकी यह उपलब्धि ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में भी दर्ज हुई। इसके बाद, उन्होंने सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट फतह की और माउंट छीपायडोंग पर चढ़ाई करने के अभियान में हिस्सा लेकर, सबसे पहले चढ़ाई पूरी की। खास बात यह है कि इसमें सभी महिलाएं शामिल थीं।
इसी साल शीतल, माउंट अन्नपूर्णा चढ़ने वाली दुनिया की सबसे छोटी माउंटेनियर बनीं और 13 नवंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शीतल को ‘तेनजिंग नोर्गे अवाॅर्ड’ से सम्मानित कर, उनके साहस को सलाम किया।
तानों से बचाने के लिए अपने साथ घास काटने जंगल ले जाती थी माँ

उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के सल्लोड़ा गांव में 1995 में जन्मी शीतल के पिता उमाशंकर टैक्सी ड्राइवर हैं और मां सपना देवी गृहिणी हैं। घर की वित्तीय हालत बहुत अच्छी नहीं थी। उनकी माँ अधिक पढ़ी-लिखी नहीं थीं। उन्होंने केवल दसवीं तक ही पढ़ाई की थी। पिता का अधिकांश समय सवारियों को ढोते हुए गुजरता, लेकिन माँ, शीतल की ढाल बनकर खड़ी रहीं।
घर में रहकर दादी के ताने न सुनने पड़ें, इसलिए माँ उन्हें अपने साथ घास काटने जंगल में ले जाती थीं और बस यहीं से उन्हें पहाड़ों से इश्क हो गया। माँ घास एवं लकड़ियां काटा करती थीं और वह आस-पास के पहाड़ों पर चढ़ती रहती थीं। शीतल (Mountain Girl Sheetal) की पढ़ाई की राह में भी दादी बाधा बनकर खड़ी हो गईं। उनके मुताबिक लड़कियों को पढ़ा-लिखाकर कोई फायदा नहीं होता। लेकिन उनकी माँ उनकी पढ़ाई के लिए अड़ी रहीं। शीतल के लिए उनकी दादी का नजरिया तब थोड़ा बदला, जब उनके दो छोटे भाई परिवार में आ गए।
NCC के दौरान मिली पर्वतारोहण की जानकारी और कर लिया कोर्स
शीतल (Mountain Girl Sheetal) को पहाड़ों पर चढ़ने में दिलचस्पी तो थी, लेकिन उन्हें इसके बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं था। लेकिन पिथौरागढ़ के सतशिलिंग इंटर कॉलेज (Satshilling Inter College) और एलएसएम पीजी काॅलेज पिथौरागढ़ से इंटर व ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान, काॅलेज के एनसीसी कैंप में उन्हें माउंटेनियरिंग के बारे में जानकारी मिली।
इसके बाद, उन्होंने साल 2013 में माउंटेनियरिंग की विधिवत ट्रेनिंग लेनी शुरू की। 2015 में उन्होंने ‘हिमायलन इंस्टीट्यूट आफ माउंटेनियरिंग, दार्जिलिंग’ और फिर ‘पर्वतारोहण संस्थान, जम्मू’ से माउंटेनियरिंग का एडवांस कोर्स किया। साल 2015 में ही उन्होंने 7,120 मीटर फंची त्रिशूल चोटी को फतह किया। इसके बाद 2017 में 7,075 मीटर फंची सतोपंथ पर तिरंगा फहराया।
हमेशा याद रहेगी 21 मई की वह सुबह
माउंट त्रिशूल और माउंट सतोपंथ की चढ़ाई शीतल पहले ही कर चुकी थीं। उनके लिए बड़ा दिन तब आया, जब 21 मई, 2018 को सुबह तीन बजकर 31 मिनट पर उन्होंने दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा (8,586 मीटर) पर झंडा फहराया। इसके साथ ही वह इस चोटी पर ध्वज फहराने वाली सबसे युवा महिला बन गईं। उस वक्त उनकी उम्र 22 साल, 10 महीने, 23 दिन थी।
शीतल (Mountain Girl Sheetal) ने द बेटर इंडिया को बताया उस वक्त उन्हें इस लम्हे को कैमरे में कैद करने के लिए सुबह तक का इंतजार करना पड़ा। शीतल ने इसके बाद कभी पीछे मुड़ॉकर नहीं देखा। वह, यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रस पर भी तिरंगा फहरा चुकी हैं।
शीतल के मेंटर योगेश गर्ब्याल ने द बेटर इंडिया को बताया कि माउंटेनियरिंग के लिए जो स्पीड और एंड्यूरेंस चाहिए, शीतल में वह लड़कों से भी अधिक था। बस यही बात थी, जिसने उनका ध्यान शीतल की ओर खींचा। इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन की ओर से शीतल का चयन कंचनजंगा पर्वतारोहण अभियान के लिए हुआ। यह अभियान ओएनजीसी की ओर से था।
साहस एवं पर्वतारोहण के क्षेत्र में शीतल की शानदार उपलब्धियों को देखते हुए, उत्तराखंड राज्य सरकार ने उन्हें ‘वीर बाला तीलू रौतेली’ के नाम पर दिए जाने वाले अवॉर्ड ‘स्त्री शक्ति तीलू रौतेली पुरस्कार’ से सम्मानित किया और उन्हें राज्य में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया। राज्य में साहसिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए शीतल, ‘क्लाइंबिंग बियोंड द सम्मिट्स’ की को फाउंडर बनीं। वह बतौर माउंटेन गाइड भी काम कर रही हैं।
14 चोटियां चढ़ना है शीतल का सपना
लैंड एडवेंचर के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों राष्ट्रपति भवन में ‘तेनजिंग नोर्गे अवॉर्ड’ पाने वाली शीतल, इस वक्त कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) के साहसिक पर्यटन अनुभाग में संविदा पर कार्यरत हैं। उन्हें इस अवॉर्ड के रूप में एवरेस्ट विजेता तेनजिंग नोर्गे की कांसे की मूर्ति और पांच लाख रुपये दिए गए। शीतल अब भी उस पल को याद कर गौरवान्वित हो जाती हैं।
स्कीइंग और साॅफ्ट म्यूज़िक सुनने का शौक़ रखने वाली शीतल, प्रसिद्ध महिला पर्वतारोही चंद्रप्रभा ऐतवाल को अपनी प्रेरणा मानती हैं। उनका सपना दुनिया की सबसे मुश्किल 14 चोटियां फतह करना है। शीतल ने बताया कि उनके लिए जिंदगी का सबसे अविस्मरणीय पल वह था, जब राष्ट्रपति भवन में अवॉर्ड हासिल करने के बाद, उनकी मां को लोगों ने घेरकर कहा, ‘वी आर प्राउड आफ योर डाॅटर’।
शीतल (Mountain Girl Sheetal) ने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि मेरी कामयाबी में मेरी मां का बहुत बड़ा हाथ है। मेरे पिता भी हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते हैं। फिल्मी पर्दे पर माउंटेनियरिंग एक एक्साइटमेंट और आसान दिखने वाला काम लगता है, लेकिन यह केवल उन्हीं लोगों का काम है, जिनमें दृढ़ निश्चय और अडिग फोकस हो।”
उन्होंने बाताय, “अभियान के दौरान कई बार ऐसे हालात हुए, जब लगा कि मौसम का सामना करना संभव नहीं होगा या अभियान बीच में छोड़ना पड़ेगा, लेकिन हमने हार नहीं मानी। शीतल के अनुसार, जो लड़कियां पहाड़ों से प्यार करती हैं और माउंटेनियरिंग में आना चाहती हैं, उनके लिए सबसे बड़े सूत्र निश्चय और फोकस ही हैं। इन्हें अपनाकर ही वे ऊंची चोटियां फतह करने का अपना सपना पूरा कर सकती हैं।
शीतल से संपर्क करने के लिए sheetal0695@gmail.com पर मेल कर सकते हैं।
संपादनः अर्चना दुबे
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