लॉकडाउन के दौरान जब हम सभी घरों में बंद थे। ऐसे बहुत से लोगों को अपनी आदतों पर फिर से काम करने का मौका मिला। लोगों ने अलग-अलग स्किल को अपनाया, जिनमें गार्डनिंग काफी महत्वपूर्ण रही। हरियाली को लेकर हमेशा से ही चर्चाएं होती रहीं हैं, लेकिन इन-हाउस गार्डन, टैरेस गार्डन और किचन गार्डन की ज़्यादातर कहानियाँ लॉकडाउन के दौरान सामने आईं। हालांकि, ऐसा नहीं है कि सभी लोगों ने सिर्फ इसी वक़्त में गार्डनिंग शुरू की है लेकिन अब लोग इस चीज़ की कदर कर रहे हैं। इस बदलाव का श्रेय उन लोगों को जाता है जो इस महामारी और लॉकडाउन से भी बहुत पहले से इन अच्छे कार्यों में जुटे हुए हैं।
आज हम आपको एक ऐसी ही दंपति से मिलवा रहे हैं जो समाज-सुधार से जुड़े हैं और साथ ही, एक सस्टेनेबल वातावरण और लाइफस्टाइल बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उत्तरप्रदेश में वाराणसी के कचहरी सर्किट हाउस के समीप सिकरौल वार्ड के निवासी सामाजिक कार्यकर्ता रंजू सिंह और नंदलाल मास्टर, लोक चेतना समिति से जुड़े हुए हैं। पिछले 25 साल से यह दंपति समाज सेवा के कार्य में जुटे हैं। साथ ही बहुत ही सुंदर तरीके से टैरेस गार्डनिंग भी कर रहे हैं।
इस दंपति ने जहाँ गरीब लड़कियों की दहेज रहित शादी करवाई वहीं बहुत-सी महिलाओं का बचत समूह बनाकर रोजगार से जोड़ा। वाराणसी जिले के सैकड़ों गाँवो में बच्चों और महिलाओं को स्वास्थ्य, शिक्षा के साथ के साथ साथ पर्यावरण रक्षा के प्रति भी जागरूक कर रहे है। मानसून के दौरान वह सैकड़ों गाँवो में पौधरोपण का कार्य कराते है और पानी को बचाने का भी अभियान चला रखा है।
इसके साथ-साथ, उनकी अपनी लाइफस्टाइल भी लोगों के लिए एक प्रेरणा है। पिछले 7 सालों से उनके घर में टैरेस गार्डनिंग हो रही है। किचन में बनने वाली ज़्यादातर सब्ज़ियां उनके अपने गार्डन से आती हैं और उनके घर का लगभग सभी कचरा जैविक खाद बनाने में इस्तेमाल होता है।
छत पर सब्जियों की खेती
रंजू सिंह व नंदलाल मास्टर ने अपने घर की छत पर ही अच्छी-खासी सब्जी की खेती कर रखी है। नंदलाल मास्टर ने बताया, “हमने 2012 में शहर में अपना नया घर बनाया था और इसकी तीसरी मंजिल पर करीब 1000 वर्गफीट में गार्डन लगाने की योजना बनायी। शुरू में, पेड़-पौधे गमलों में लगाए और फिर धीरे-धीरे सब्ज़ियां भी उगानी शुरु कर दी। बचपन से ही सब्जियों के प्रति मेरा ख़ास लगाव रहा है। इसलिए अपने घर की छत पर 30 फीट लंबी, ढाई फीट चौड़ी और ढाई फीट गहरी, एक स्थाई क्यारी सब्ज़ियों के लिए बनवा ली। इसमें अब हम मौसमी सब्जी जैसे बैगन,टमाटर,लौकी, कोंहड़ा, सेम, खीरा, करेला,पालक,लहसून, भिन्डी आदि लगाते है, साथ ही 200 से ज्यादा ट्रे और गमलों में भी सब्जियों के अलावा रंग बिरंगे फूल, लता, जड़ी बूटी आदि पौधे लगाए हुए हैं।”
हर मौसम में उनकी छत किसी मिनी गार्डन से कम नहीं लगती है। इस समय उनके छत पर जाड़े की मौसमी सब्ज़ियाँ जैसे फूलगोभी, पालक, लहसुन, मूली, बैगन,टमाटर,सेम, पत्तागोभी आदि की फसल लगाई हुई है। उनके यहां नीबू व केले के पौधे भी खूब लहलहाते रहते है।
सब कुछ उगाते हैं जैविक:
लोक चेतना समिति की निदेशिका व सामाजिक कार्यकर्ता रंजू सिंह ने बताया कि वह हर सीजन की मौसमी सब्जियाँ उगा रहे हैं। वह कहतीं हैं, “बढ़ते शहरीकरण और घटती कृषि जोत के चलते शहरों के आसपास सब्ज़ियों की खेती काम होती जा रही है। फिर बाजार में जो सब्जियां दूर-दराज के इलाकों से पहुंचती है उनमें कीटनाशक की भरमार होती है। ऐसे में, थोड़ी सी जुगत लगाकर अपने घर की छत को ही खेत बना लिया है।”
छत पर लगीं सब्जियां प्रतिदिन उनके अपने परिवार के सदस्य तो खाते ही हैं और साथ ही, ज्यादा होने पर पड़ोसियों में भी सब्जी बांटी जाती हैं। इन सब्जियों को कीटनाशक व रासायन-मुक्त तरीकों से वह उगाते हैं। वह खुद को जैविक सब्ज़ियाँ उगा ही रहे हैं, साथ ही दूसरों को भी इसके बारे में जागरूक कर रहे हैं।
उनके घर बड़ी संख्या में लोग उनके गार्डन को देखने के लिए और जानकारी लेने के लिए आते हैं। बहुत से लोगों ने उनकी प्रेरणा से घर पर गार्डनिंग शुरू भी की है।
रंजू सिंह बतातीं हैं कि वह पूरी तरह से जैविक तरीके से बागवानी करतीं हैं। रसोई से निकले फल और सब्जियों के छिलके का कचरा कभी बाहर नही फेंकती बल्कि सारा हरा छिलका खराब सब्जी व फल एकत्र करके स्थायी क्यारी में ही डालकर मिट्टी से ढंक देतीं हैं जो कि पौधों के लिए खाद का काम करता है।
इससे घर का कूड़ा भी कम निकलता है, उन्हें रोजाना तरोताजा हरी सब्जी भी खाने को मिल रही है और साथ ही स्वच्छता व पर्यावरण संरक्षण में भी वे योगदान दे रहे है। पौधों को जरूरत पड़ने पर गोबर की खाद का इस्तेमाल करती है।
टैरेस गार्डन की देखभाल करने के लिए कुछ टिप्स:
रंजू सिंह कहतीं हैं कि छत पर सब्जियों को उगाते वक्त ढेर सारी सावधानी बरतने की आवश्यकता है। सुबह-शाम समय से पौधों को आवश्यकता अनुसार पानी देना बहुत जरूरी होता है। साथ ही, समय-समय पर पौधों को खाद देना व कीड़ों से बचाव करना होता है। घर की खाद के अलावा, वह जैविक पेस्टिसाइड बनाते हैं। इसलिए समय मिलते ही वह परिवार के साथ अपने टैरेस गार्डन में पहुँच जाते हैं। यहाँ सबसे पहले पेड़-पौधों पर ध्यान दिया जाता है कि उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत तो नहीं है।
रंजू सिंह कहतीं है, “बागवानी में नियमित रूप से पानी और खाद का ध्यान रखें। साल भर में मौसम के हिसाब से गार्डन की तैयारी करें। अगर आप गार्डन की देखभाल करते हैं तो गार्डन आपकी देखभाल करता है।”
इस दंपति ने बताया कि इस साल छत पर सब्जियों के अलावा फलदार पेड़ भी लगाने की उनकी योजना है, जिसके लिये वह जोर शोर से तैयारी कर रहे है। वह चाहते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग टैरेस गार्डनिंग से जुड़ें ताकि पर्यावरण के हित में आगे बढ़ा जा सके। यक़ीनन, नंदलाल और रंजू सिंह के प्रयास काबिल-ए-तारीफ हैं। यदि आप टैरेस गार्डनिंग के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो नंदलाल जी से 9415300520 पर संपर्क कर सकते हैं।
अगर आपको भी है बागवानी का शौक और आपने भी अपने घर की बालकनी, किचन या फिर छत को बना रखा है पेड़-पौधों का ठिकाना, तो हमारे साथ साझा करें अपनी #गार्डनगिरी की कहानी। तस्वीरों और सम्पर्क सूत्र के साथ हमें लिख भेजिए अपनी कहानी hindi@thebetterindia.com पर! यह भी पढ़ें: हिमाचल: बिना मिट्टी और 90% कम पानी में उगाते हैं पोषण से भरपूर सब्ज़ियाँ
संपादन – जी. एन झा
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