प्रशासन और ग्रामीणों के बीच सेतु बनकर, 20, 000+ लोगों तक पहुंचाई सरकारी योजनायें!

गाँव के विकास को ध्यान में रखते हुए रमा ने एक ग्रामीण विकास मुहिम, 'हमारा प्रयास - गॉंव विकास' (An integrated approach to inclusive transformation) की शुरुआत की है।

गर आप ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट खोलेंगे तो गांवों के विकास और कल्याण के लिए 15 योजनाओं की लिस्ट आपके सामने होगी। इन सभी योजनाओं को अगर सही तरीके से ज़मीनी स्तर पर लागु किया जाये तो बेशक ग्रामीण लोगों के भी दिन बदल जाएँ। पर इन योजनाओं का लाभ मिलना तो दूर की बात है, ज़्यादातर लोगों को तो इन योजनाओं के बारे में कुछ पता ही नहीं होता है।

लेकिन इन सभी सरकारी योजनाओं का लाभ उनके सही लाभार्थियों तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी उठाई है मुंबई में रहने वाली रमा सिंह दुर्गवंशी ने। पारसोली कारपोरेशन लिमिटेड कंपनी में बतौर डायरेक्टर कार्यरत रमा सिंह उत्तर-प्रदेश में जौनपुर जिले के जगापुर गाँव की रहने वाली हैं। बचपन से ही गाँव में पली-बढ़ी रमा ने हमेशा से अपने गाँव में मुलभुत सुविधाओं का अभाव और पिछड़ापन देखा था।

रमा सिंह दुर्गवंशी

स्कूल की पढ़ाई पूरी करके जब उन्हें कॉलेज की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद (अब प्रयागराज) जाने का मौका मिला तो उन्होंने एक अलग ही दुनिया देखी। रमा बताती हैं कि उनके इलाके से वे पहली लड़की थीं, जिसे गाँव से बाहर जाकर कॉलेज में पढ़ने का मौका मिला। पर जब रमा ग्रेजुएशन के लिए इलाहाबाद गयीं तो उन्हें बहुत-सी परेशानियों का सामना करना पड़ा। “मुझे बहुत-सी बेसिक चीज़ें शहर में जाकर पता चली। अगर मुझे पहले से ही उन सब बातों के बारे में जागरूकता होती या फिर हमारे गाँव उतने विकसित होते, तो शायद मेरा सफ़र बहुत अलग रहा होता,” रमा ने कहा।

इसलिए अपने कॉलेज के दिनों से ही रमा के मन में अपने गाँव के लिए कुछ करने की भावना जन्म ले चुकी थी। उन्हें जब जैसे मौका मिलता वे ज़रुरतमंदों की मदद करने से नहीं चूकतीं। पढ़ाई के बाद अपनी नौकरी के लिए वे दिल्ली, लखनऊ जैसे शहरों में रहीं और अभी भी वे मुंबई में कार्यरत हैं। पर समाज सुधार और लोगों के हितों का ध्यान रखने वाली रमा की यही कोशिश रही कि वे अपने लोगों के काम आ सकें।

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“मैं बहुत जल्दी चीज़ों से प्रभावित होती हूँ। यहाँ बांद्रा में हमारा घर है और मैं और मेरे पति सुबह जब सैर पर निकलते हैं तो देखते हैं कि बीच पर बहुत से लोग समुद्र के पानी से ही ब्रश कर रहे हैं, वहीं नहा रहे हैं। यह सब देखकर लगता है कि हम किस बात की तरक्की पर इतराते हैं। जब हमारे अपने लोगों को अपने गाँव छोड़कर यहाँ ऐसा जीवन जीना पड़ता है।”

उन्होंने आगे बताया, “ऐसे ही एक दिन में रात को पास के मेडिकल स्टोर से आ रही थी कि मैंने फूटपाथ पर एक 16-17 साल के लड़के को एक बोरा ओढ़कर सोते हुए देखा। उसे देखकर मेरी आँखों में आंसू आ गये। मुझे लगा कि इतने बड़े होने के बाद भी अगर मैं कभी फ़ोन तक न उठाऊं तो मेरे परिवार को चिंता हो जाती है तो इस बच्चे के माता-पिता कैसे रहते होंगे। मैंने उसे उठाया और उससे पूछा कि उसने खाना खाया या नहीं? वह कहाँ काम करता है?”

वह लड़का यूपी से था और एक फलों की दूकान पर काम करता था। रमा ने पूरी तसल्ली करने के बाद उसे कहा कि वह पास में ही रहती हैं और अगर उसे कभी भी किसी मदद की ज़रूरत हो तो वह उन्हें बताये। इस तरह के वाकया का रमा पर बहुत असर हुआ और उन्होंने अपने पति से कहा कि अगर हमें कुछ करना है लोगों के लिए तो अभी करना होगा क्योंकि कल कभी नहीं आता है।

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साल 2016 में रमा सिंह ने अपने पति डॉ. संजय सिंह के साथ मिलकर ‘अराइज़ एन अवेक’ संस्था की शुरुआत की। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य भारत में ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए काम करना है। रमा कहती हैं कि उनकी संस्था किसी भी विकास कार्यों के लिए खुद किसी भी तरह की फंडिंग नहीं लेती है, बल्कि जहाँ भी उन्हें विकास कार्य करवाना होता है उस जगह के बारे में और ज़रूरतों के बारे में वे किसी कंपनी या फिर समृद्ध लोगों को एक रिपोर्ट भेज देती हैं। इसके बाद वह व्यक्ति या फिर कंपनी सीधा ज़रुरतमंदों को मदद दे सकते हैं।

अपने पति डॉ. संजय सिंह के साथ रमा सिंह

“हमारी संस्था का काम डॉट्स को कनेक्ट करना है। समृद्ध लोगों और ज़रुरतमंदों के बीच की दूरी को खत्म कर भलाई का कोई काम करना है ताकि बदलाव का एक माहौल बन सके,” रमा ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया। उनके संगठन का एक मुख्य अभियान सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ गाँव के लोगों तक पहुँचाना भी है। और इसी इरादे से उन्होंने अपने खुद के गाँव जगापुर को गोद लिया हुआ है।

गाँव के विकास को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक ग्रामीण विकास मुहिम, ‘हमारा प्रयास – गॉंव विकास’ (An integrated approach to inclusive transformation) की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत उन्होंने सबसे पहले अपने गाँव का बेसिक सर्वे किया। जिसका उद्देश्य गाँव की जनसँख्या, किस परिवार में कितने लोग हैं, कितने दिव्यांग हैं, स्त्री-पुरुष अनुपात क्या है, रोज़गार के साधन क्या हैं, गाँव की क्या-क्या समस्याए हैं और साथ ही, उस गाँव के लोगों के लिए कौन-कौन सी सरकारी योजनायें लागु होती हैं- इस सब पर सर्वे करने के बाद उन्हें जो भी डाटा मिला, उससे उनका आगे का काम आसान हो गया।

रमा सिंह की संस्था द्वारा बहुत-सी योजनाओं के लिए गाँव वालों का पंजीकरण करवाया गया
मुफ़्त स्वास्थ्य जाँच शिविर

“गाँव के लोगों के साथ-साथ मैं सरकारी अधिकारियों से भी संपर्क में रहती हूँ। उनकी मदद से ही मेरे अपने गाँव में इस सर्वे के बाद हमने बहुत सी सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुँचाया। इस सर्वे से दो मुद्दों पर मदद हुई, एक तो हमें ज़मीनी स्तर की जानकारी प्राप्त हुई, जो कि आगे भी गाँव के लिए कोई भी योजना बनाने में मददगार साबित होगी। दूसरा, फ़िलहाल जो योजनायें हैं उन्हें भी इस सर्वे के आधार पर जांचा जा सकता है कि वे कितनी सफल हुई हैं,” रमा ने बताया।

अपने सभी कार्यों में रमा सिंह गाँव के लोगों की मदद लेती हैं। उनका मानना है कि अगर लोकल लोगों को इस तरह के कामों में शामिल किया जाये तो उन्हें अपने अधिकारों के साथ-साथ ज़िम्मेदारियों का भी ज्ञान होगा। विशेषकर गाँव के युवा बच्चों को प्रशासन द्वारा प्लानिंग में शामिल किया जाना चाहिए।

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रमा बताती है कि देश में सैकड़ों सरकारी विकास योजनाओं के बावजूद भी हम आज एक समृद्ध समाज नहीं हैं और इसके दो मुख्य कारण है – पहला, प्रशासन द्वारा इन विकास योजनाओं का सही क्रियान्वन न कर पाना, और दूसरा, आम लोगों के बीच इन विकास योजनाओं की सही जानकारी का आभाव। पर रमा की पहल ने उनके गाँव में बहुत से परिवर्तन लाये हैं।

गाँव में बच्चों से बातचीत करते हुए रमा सिंह

रमा के गाँव में उनका यह मॉडल काफ़ी सफल रहा। जगापुर के अलावा और भी गांवों जैसे भोगीपुर कठार गाँव, राजाबाज़ार मार्किट इलाके आदि में भी उन्होंने काम किया है। कई अन्य गांवों से भी उन्हें इस तरह के सर्वेक्षण करने का प्रस्ताव मिला है। “हमारा उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि हम इन ग्रामीणों और सरकारी अधिकारियों के बीच एक पुल का काम करें। किसी न किसी वजह से आम नागरिकों और प्रशासन के बीच जो खाई बन जाती है, मेरा लक्ष्य उस खाई को पाटना है।”

शिक्षा के मुद्दे पर अहम रूप से काम करने वाली रमा ने गाँव के सरकारी स्कूल की काया पलट दी है। इस स्कूल में सभी मुलभुत सुविधाओं से लेकर अब स्मार्ट क्लास तक हैं। उन्होंने वाराणसी के कई मदरसों में कंप्यूटर क्लास भी शुरू करवाई हैं।

रमा बताती हैं कि उनके प्रयासों से अब तक उत्तर-प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात आदि के अलग-अलग इलाकों में 20, 000 से भी ज़्यादा लोगों को मदद मिली है।

वाराणसी के मदरसों में कंप्यूटर क्लास लगवाई
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उनके प्रयासों से ही आज उनके गाँव में एक पुलिस चौकी भी है। “गाँव में आये दिन अपराध की घटनाएँ बढ़ रही थीं। रोज़ मुझे कुछ न कुछ पता चलता तो इसका एक स्थायी हल करने के लिए मैंने गाँव में पुलिस चौकी खुलवाने का निर्णय लिया। मैंने इस विषय पर संबंधित अधिकारियों से बात की और ग्राम पंचायत के सदस्यों के साथ मिलकर पुलिस चौकी की अर्जी दे दी,” रमा ने बताया।

पुलिस चौकी की अर्जी तो स्वीकार हो गयी, लेकिन इसे बनवाने के लिए सरकार से फण्ड आने में काफ़ी समय लगता। इसलिए रमा ने खुद पैसा खर्च कर इसे बनवाया। आज इस पुलिस चौकी के चलते आस-पास के लगभग 25 गांवों में शांति है। अपने ही गाँव की तरह उन्होंने एक और अन्य गाँव, भोगीपुर कठार में भी लोगों की मदद की है।

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रमा बताती हैं कि प्रशासन भी तभी सफलता पूर्वक काम कर पायेगा जब आम जन उनके साथ खड़े होकर देश को बदलना चाहेंगें। आजकल सभी लोगों के हाथ में स्मार्ट फ़ोन होता है तो यह नागरिकों की और हमारे युवाओं की ज़िम्मेदारी है कि सोशल मीडिया पर बिना सिर-पैर की बहस में वक़्त बर्बाद करने की बजाय, साथ में मिलकर एक समूह बनाये।

पुलिस चौकी का उद्घाटन

समय-समय पर प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर जानकारी लेते रहें और फिर अपने गाँव और इलाके के अन्य लोगों को जागरूक करें। यदि यह होता रहेगा तो फिर विकास अपने आप होगा। प्रशासन दुरुस्ती से काम करे, इसके लिए पब्लिक को समझदार होना होगा।

अंत में, रमा का सिर्फ़ यही संदेश देती हैं कि बदलाव लाने के लिए ज़रूरी नहीं कि आप बहुत पैसा खर्च करें। आप जहाँ हैं वहां से शुरुआत करें। यदि आप पढ़े-लिखे हैं तो कुछ वक़्त निकालकर अपने आस-पास के ज़रूरतमंद बच्चों को पढ़ाइये। अपने इलाके के गरीब लोगों को उनके लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बारे में जागरूक करें और उनकी मदद करें ताकि उन्हें वह लाभ मिले।

इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति सरकारी योजनाओं को अपने गाँव तक पहुंचाने के लिए अपने गाँव का बेसिक सर्वे करवाना चाहता है तो आप रमा सिंह से उनके फेसबुक पेज के माध्यम से जुड़ सकते हैं।


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