यूपी: फलों की खेती से ऐसे मालामाल हो गया यह किसान, सिर्फ लीची से सालाना कमा रहे 7.5 लाख

उत्तर प्रदेश के राजपाल ने अबतक 4 हजार किसानों को प्रशिक्षित किया है, जो लगभग 4200 हेक्टेयर जमीन पर फलों की खेती करते हैं।

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के जगैठा गुर्जर गाँव के रहने वाले वाले राजपाल सिंह कई दशकों से खेती कर रहे हैं। इस दौरान उन्होंने कई वैज्ञानिक प्रयोग किए और वर्षों तक बाजार के गहन शोध और आत्मविश्वास से उन्होंने गन्ने की खेती के विकल्प के तौर पर आम, अमरूद, लीची और आड़ू जैसे फलों की खेती का ऐसा मॉडल विकसित किया है, जिससे उन्हें हर साल लाखों की कमाई होती है।

fruit farmer earns lakhs
राजपाल सिंह

मेरठ के डीएन कॉलेज से जीव विज्ञान में स्नातक राजपाल का शुरू से ही खेती से विशेष लगाव रहा है, यही वजह है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने इसी में अपना करियर बनाने का निश्चय किया।

राजपाल ने द बेटर इंडिया को बताया, “खेती हमारा खानदानी पेशा है और पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने इसे आगे बढ़ाने का फैसला किया। हमारे क्षेत्र में गन्ने की खेती काफी बड़े पैमाने पर होती है और शुरुआती 15-20 वर्षों तक हमने भी गन्ने की खेती की, लेकिन हमें अहसास हुआ कि गन्ने के खेती हमारे लिए नहीं है, यह सिर्फ राजनीति है। इसलिए मैंने इसे आगे बढ़ने का फैसला किया।”

राजपाल ने गन्ने की खेती से निराश होकर शुरू की फलों की खेती।

वह आगे बताते हैं, “इसके बाद मैंने केला, पपीता जैसे कई फलों को आजमाया लेकिन खास लाभ नहीं हुआ। मैं शहद का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर करता था और इसी कड़ी में हमने मधुमक्खियों के बक्से को सहारनपुर के विकास नगर में रामजी जैन नाम के एक किसान के बगीचे में भेजा। इसी दौरान उनके लीची के बगीचे को देखने का मौका मिला। इससे मुझे भी लीची की खेती करने की इच्छा हुई।”

आड़ू आधारित कृषि व्यवस्था को किया विकसित
इसके बाद साल 1999 में राजपाल ने एक ऐसे आड़ू आधारित कृषि व्यवस्था को विकसित किया, जिसके तहत एक साथ दो तरह के फसलों की खेती की जा सकती थी – दीर्घकालिक और लघुकालिक।

इसके बारे में वह कहते हैं, “हमने लीची के साथ आड़ू लगाए, क्योंकि लीची के पेड़ों को तैयार होने में लगभग 15 वर्ष लगते हैं। वहीं, आड़ू के पेड़ काफी जल्दी तैयार हो जाते हैं। इस तरह जब तक लीची का पेड़ तैयार नहीं हुआ, आड़ू से काफी अच्छी कमाई हुई। इसके बाद हमने, लीची के साथ अमरूद लगाया, जिससे और अधिक आमदनी हुई।”

15 से अधिक किस्म की लीचीयों की खेती करते हैं राजपाल

फिलहाल, राजपाल लीची के 15-16 किस्मों की खेती करते हैं, जिसमें शाही और कलकतिया लीची सबसे मुख्य है। वहीं वह, ललित, श्वेता, थाई जैसे कई प्रकार के अमरूदों के साथ आम की भी खेती करते हैं।

बेंगलुरू और भुज तक भेजते हैं अपने उत्पाद
राजपाल अपने उत्पादों को स्थानीय मंडी में बेचने के अलावा बेंगलुरू और भुज तक निर्यात करते हैं। इसके बारे में वह कहते हैं, “स्थानीय मंडी में लीची 70 से 130 रुपए और अमरूद 60-65 रुपए प्रति किलो बिकता है। वहीं लीची को बेंगलुरू और भुज भेजने के बाद 400-450 रुपए का भाव मिलता है। इस तरह लीची से हर साल प्रति हेक्टेयर 7.5 लाख से 8 लाख रुपए और अमरूद से 6 लाख से 7 लाख रुपए तक की कमाई होती है।”

8 हेक्टेयर जमीन पर फलों की खेती करते हैं राजपाल

बता दें कि राजपाल ने शुरुआत में केवल 5 हेक्टेयर जमीन पर बगीचा लगाया था, जिसे बढ़ाकर उन्होंने 8 हेक्टेयर कर दिया।

बाजार का किया गहन शोध
राजपाल कहते हैं, “इस तरह से बागवानी करने के बाद किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है कि यदि वह बगीचा लगाएगा तो उसका जीवनयापन कैसे होगा! इसलिए शुरुआत में हमने बगीचे में कई तरह की सब्जियों की भी खेती की।”

वह आगे कहते हैं, “मैंने बागवानी शुरू करने से पहले बाजार को समझा कि किस तरह के उत्पादों की माँग सबसे ज्यादा है। इसमें मैंने पाया कि यहाँ दो तरह के लोग हैं, एक ऐसे लोग जो पेट भरने के लिए खाते हैं और आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं। दूसरे ऐसे लोग जो सिर्फ स्वाद के लिए खाते हैं, लेकिन वे अधिक सक्षम हैं और मैंने उन्हीं के लिए खेती शुरू की।”

अधिकारियों को अपने कृषि मॉडल के बारे में जानकारी देते राजपाल।

आज के दौर में किसानों को खेती के दौरान मजदूरों की बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है, लेकिन राजपाल को कभी ऐसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। इसके बारे में वह कहते हैं, “आज खेती में मजदूरों की समस्या सबसे अधिक है, लेकिन यह वास्तव में आमदनी की समस्या है। यदि किसी मजदूर को अच्छा मेहताना मिलता है, तो वह काम क्यों नहीं करेगा। मैंने यही सिद्धांत अपनाया, इसलिए मुझे कभी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा।”

हजारों किसानों को कर चुके हैं प्रशिक्षित
राजपाल, देश की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल और पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार के सामने भी किसानों का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इसके अलावा, वह उत्तरप्रदेश के राजकीय लीची अनुसंधान संस्थान में भी 6 वर्षों तक उच्च प्रबंधन के साथ काम कर चुके हैं। आज वह अपनी जिंदगी का अधिकांश समय किसानों को फलों की खेती सिखाने में देते हैं। उन्होंने अबतक 4 हजार किसानों को प्रशिक्षित किया है, जो लगभग 4200 हेक्टेयर जमीन पर फलों की खेती करते हैं।

एक कार्यक्रम में किसानों को संबोधित करते राजपाल

सहारनपुर जिले के रामपुर मनिहारन गाँव के रहने वाले किसान योगेश आर्य कहते हैं, “मैंने राजपाल जी से 2 साल पहले ट्रेनिंग लिया था। इस दौरान उन्होंने मुझे लीची और अमरूद की खेती का प्रशिक्षण दिया, जिससे मुझे काफी कम समय में प्रति बीघे 14 हजार रुपए की बचत हो रही है। वहीं, परम्परागत खेती करने के बाद महज ढाई हजार रुपए होती थी।”

क्या है भविष्य की योजना
राजपाल का मानना है, “यदि किसान अपने उत्पादों का प्रोसेसिंग खुद करे, अपने उत्पादों को बेचने के लिए बिचौलिए पर निर्भर होने के बजाए खुद बाजार में निर्यात करे और निरंतर मूल्यवर्धन करे, तो वह हमेशा समृद्ध रहेगा। इसीलिए मैं जल्द ही अपने उत्पादों का प्रोसेसिंग शुरू करूंगा।”

अंत में यही कहा जा सकता है कि आज जब देश में किसानों की कमाई उनके अगले फसल की बुआई तक सीमित है, ऐसी स्थिति में राजपाल का यह मॉडल वास्तव में किसानों को एक नया राह दिखा सकता है। क्योंकि, इसमें एक वक्त के बाद स्वाभाविक रूप से न्यूनतम लागत पर अधिक से अधिक लाभ सुनिश्चित होता है।

यह भी पढ़ें – दिल्ली: टीचर ने घरवालों के लिए शुरू की केमिकल-फ्री खेती, अब बना सफल बिज़नेस मॉडल

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है तो आप राजपाल सिंह से 09412558235 संपर्क कर सकते हैं।

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X