काम की तलाश में गढ़वाल से आए लखनऊ, टिफिन बनाया, ठेला चलाया, आज 4 रेस्टोरेंट्स के हैं मालिक

Nainital momo

साल 1997 में काम की तलाश में उत्तराखंड के एक गांव से लखनऊ आए रंजीत सिंह ने कई छोटे-छोटे काम करने के बाद, साल 2008 में एक ठेले से खुद के बिजनेस की शुरुआत की थी। आज लखनऊ में उनके चार रेस्टोरेंट्स हैं।

अगर आप में कुछ बड़ा करने की चाह है, तो आप उसे अपनी मेहनत से हासिल कर सकते हैं। आपका काम छोटा हो या बड़ा, अपने काम के प्रति जूनून ही आपको सफल बनाता है। आज हम आपको जिस शख्स की कहानी सुनाने जा रहे हैं, वह कभी लखनऊ में ठेले पर मोमोज और नूडल्स बेचा करते थे, लेकिन आज अपनी मेहनत के बल पर वह चार रेस्टोरेंट के मालिक हैं।

यह प्रेरक कहानी लखनऊ के मशहूर रेस्टोरेंट ‘नैनीताल मोमोज’ के मालिक रंजीत सिंह की है। उनकी कहानी पढ़कर आपको मेहनत और जज्बे की ताकत पर यकीन हो जाएगा। गरीबी की अंधेरी गलियों से निकलकर, आज रंजीत सिंह के ‘नैनीताल मोमोज’ नाम से शहर में चार आउटलेट्स हैं। वहीं इलाहाबाद, दिल्ली और गोवा में भी, एक-एक फ्रेंचाइजी रेस्टोरेंट हैं, जिसे उनके संबंधी ही चलाते हैं। 

इस मुकाम तक पहुंचने में उन्हें 23 साल लग गए। इस दौरान उन्होंने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। द बेटर इंडिया से बात करते हुए रंजीत कहते हैं, “गांव से आते समय मेरे पिता ने कहा था कि शहर में छोटा काम भी मिले तो उसे ख़ुशी-ख़ुशी करना, लेकिन कभी कोई गलत काम करके पैसे मत कमाना। इसलिए मैंने मेहनत को ही अपने जीवन का एक मात्र सिद्धांत बना लिया।”

गरीबी में गुजरा बचपन 

उत्तराखंड के नलाई तल्ली से ताल्लुक रखने वाले रंजीत के पिता गांव में खेती किया करते थे। वह अपने तीन भाई बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता के पास इतनी ज्यादा जमीन नहीं थी कि परिवार का गुजारा चलाया जा सके। इसलिए वह दूसरे के खेतों में मजदूरी का काम भी किया करते थे। रंजीत को बचपन में ही अंदाजा हो गया था कि यदि घर की आर्थिक स्थिति को बदलना है तो शहर में काम करना ही होगा। 

owner of Nainital momo Ranjit singh
Ranjit Singh

हालांकि, उनके पिता चाहते थे कि रंजीत पढ़ाई करें लेकिन तीन बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना उनके लिए मुश्किल काम था।  इसलिए हाई स्कूल के बाद रंजीत ने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया। वह कहते हैं, “मुझे बचपन से पता था कि घर में पैसे की दिक्कत है। इसलिए मैं चाहता था कि जल्द से जल्द अपने माता-पिता की मदद करूं। मैंने हाई स्कूल पास करने के बाद अपने बुआ के बेटे से बात की और 1997 में उनके साथ लखनऊ आ गया।” 

होटल में की नौकरी 

लखनऊ में उनके बुआ के बेटे की मदद से रंजीत को एक कोठी में हेल्पर की नौकरी मिली। लेकिन वहां इतने कम पैसे मिलते कि गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था। उन्होंने दो साल तक कोठी में हेल्पर का काम किया। उनके मालिक एक गेस्ट हाउस भी चलाया करते थे। एक बार उन्हें गेस्ट हाउस में किसी काम के सिलसिले में जाना पड़ा। वहां उन्होंने देखा कि वेटर को खाना भी मुफ्त में मिलता है और टिप में अच्छे पैसे भी मिलते हैं। जिसके बाद उन्हें कुछ दोस्तों की पहचान से वेटर की नौकरी मिल गई। 

रंजीत अब हेल्पर की नौकरी छोड़कर वेटर का काम करने लगे। यहां उनकी आमदनी बढ़ी और अब वह कुछ पैसे घर भी भेजने लगे। लेकिन उनका संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। इसी बीच उनके एक साथी का काम करने के दौरान हाथ जल गया। मालिक ने सहानुभूति तो दूर उसे नौकरी से यह कह कर निकाल दिया कि वह जले हाथ से कैसे दूसरों को खाना परोसेगा। इस हादसे ने उन्हें सोचने पर मजबूर किया कि उन्हें अब कोई नया काम ढूंढ़ना पड़ेगा। 

रंजीत को कोठी और होटल में काम करने से खाना बनाने का तजुर्बा हो ही गया था। इसलिए उन्होंने साल 2005 टिफिन सर्विस का काम शुरू किया। तब तक उनकी शादी भी हो गई थी। टिफिन के काम में उनकी पत्नी रजनी सिंह भी उनका साथ दिया करती थीं। उन्होंने कुछ सालों तक टिफिन बनाने का काम किया। वह दिन के 250 टिफिन बनाते थे। कमाई भी अच्छी हो रही थी। लेकिन उन्हें इससे भी संतुष्टि नहीं थी क्योंकि उन्हें हमेशा ही टिफिन के पैसे समय पर नहीं मिल पाते थे। 

वह कहते हैं, ” मैं टिफिन सर्विस के लिए ग्राहक से महीने में 700 रुपये लेता था। लेकिन लोगों को बार-बार याद दिलाने पर भी कई बार पैसे समय पर नहीं मिलते थे। जिससे मुझे राशन लेने में दिक्क्त होती थी। आख़िरकार मैंने गुस्से में इस काम को बंद किया और ठेला शुरू करने का फैसला किया।”

ठेले से रेस्टोरेंट तक का सफर 

रंजीत ने सबसे पहले पूड़ी-सब्जी के ठेले से शुरुआत की। लेकिन उसमें सुबह से शाम तक महज 40 से 50 रुपये की कमाई होती थी। रंजीत बताते हैं, “मैं जल्द ही समझ गया कि यह काम ज्यादा चलने वाला नहीं है। मैंने लोगों के स्वाद को समझने की कोशिश की और जाना कि उत्तराखंड के चाइनीज खाने को यहां लोग पसंद करते हैं। जिसके बाद मैंने पूरी सब्जी के ठेले से कमाए तकरीबन 500 रुपये से ही चाऊमीन बनाने का सामान खरीदा।” 

नए काम में पहले दिन 280 रुपये की कमाई हुई।। उन्हें यकीन था कि समय के साथ उन्हें इस काम में अच्छी सफलता मिलेगी। उन्होंने नूडल्स के साथ मोमो बेचना शुरू किया लेकिन लोग बस नूडल्स खरीदते और उनके बनाए सारे मोमोज हर दिन बच जाया करते थे।

 nainital momo business in lucknow
Nainital Momo Shop In Lucknow

ऐसे में उनकी पत्नी के एक आईडिया ने उनके मोमो को भी लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया। इस घटना के बारे में उन्होंने बताया, “पहले लोग मेरे ठेले में नूडल्स खाने के लिए पहुंचते थे। मोमोज को दिन के आखिर में गाय को खिलाना पड़ता था। एक बार नए साल के मौके पर मेरी पत्नी ने मुझे ग्राहकों को नूडल्स के साथ फ्री में मोमोज देने का आईडिया दिया। जिसके बाद तो लोग मोमोज खरीदने आने लगे।”

इस तरह उत्तराखंड के स्वाद का जादू चल गया और रंजीत का काम भी बढ़ने लगा। उन्होंने स्टीम मोमो के साथ फ्राई मोमो बेचना शुरू किया। वह कहते हैं, “फ्राई मोमो लोगों को इतने पसंद आने लगे कि मैं दिन का दो से तीन हजार कमाने लगा। आखिरकार पांच साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने 2013 में लखनऊ के गोमती नगर में 15 हजार रुपये मासिक किराए पर एक छोटी सी दुकान ली। आज उनकी उस दुकान का महीने का किराया एक लाख रुपये है। 

वह कहते हैं, “मैंने लोगों के टेस्ट को देखते हुए स्टीम के अलावा, पहली बार शहर में तंदूरी मोमो बेचना शुरू किए। फिर मैंने ड्रैगन फ्राई, चीज, चॉकलेट जैसे स्वादों में भी मोमो को ग्राहकों के सामने पेश किए। मैं हर ग्राहक से पूछता और उनके सुझावों को ईमानदारी से अमल करता।” 

लोगों को उनके हाथों का स्वाद पसंद आता गया और उनका काम बढ़ता रहा। तीन साल बाद 2016 में ग्राहकों की मांग से ही उन्होंने एक और दुकान किराए पर ली। वह वह कहते हैं, ” मैंने अपने साथ अपने  जीजाजी, छोटे भाई, बुआ के लड़के और अपनी पत्नी के भाई को भी बिज़नेस में शामिल किया है।” इसके अलावा भी उन्होंने तक़रीबन 35 लोगों को काम पर रखा है। 

Ranjit Singh with Nainital momo staff
Ranjit Singh With His Staff

दो साल पहले उन्होंने नैनीताल मोमो को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में रजिस्टर भी करवाया है।  

सालाना टर्नओवर के बारे में रंजीत ने बताया कि वह लखनऊ के अपने रेस्टोरेंट बिज़नेस से साल में तीन करोड़ रुपये की कमाई कर रहे हैं। हालांकि कोरोना के कारण काम में थोड़ी मंदी आई है।

आज वह 60 से ज्यादा किस्म के मोमोज़ वेराइटीज बना रहे हैं। ‘नैनीताल मोमो’ की एक ग्राहक निधि मोदी कहती हैं, “मैं पिछले आठ साल से लखनऊ में रह रही हूं। मैं अक्सर नैनीताल मोमोज जाती हूं। यहां का तंदूरी मोमोज मुझे बहुत पसंद है।”

रंजीत का एक छोटे से ठेले से यहां तक का सफर यह बताता है कि मेहनत और लगन से आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं। द बेटर इंडिया उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।

संपादन- जी एन झा

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