बगैर मिट्टी के खेती…आप शायद चौंक गए होंगे। लेकिन पुणे में रहने वाली नीला रेनाविकर पंचपोर बगैर मिट्टी के ही खेती करती हैं। नीला कॉस्ट अकाउंटेंट हैं। साथ ही एक पेशेवर मैराथन रनर और होम गार्डनर भी हैं। अपने 450 वर्ग फीट के टैरेस में वह फूल, सब्जियों से लेकर फल और कई किस्म के पौधे उगाती हैं।
नीला के टैरेस गार्डन की सबसे खास बात यह है कि यहाँ पौधे उगाने के लिए वह मिट्टी का इस्तेमाल नहीं करती हैं। मिट्टी की बजाय, वह घर पर तैयार की गई कंपोस्ट का इस्तेमाल करती हैं। यह कंपोस्ट सूखे पत्ते, रसोई का कचरा और गोबर के मिश्रण से बनाया जाता है।
नीला बताती हैं कि सूखी पत्तियों के साथ सॉयललेस पॉट्टिंग मिक्स में वॉटर रिटेंशन ज़्यादा होता है और एयर सर्कुलेशन भी बेहतर होता है। इसमें रसोई के कचरे और गोबर की खाद मिलाने से पौधों को पोषण मिलता है। नीला आगे बताती हैं कि बगैर मिट्टी के खेती करने के लिए किसी विशेष तकनीक की ज़रूरत नहीं होती है। इसके लिए केवल धैर्य और समर्पण की आवश्यकता है।
पौधों के लिए कचरे का इस्तेमाल
नीला ने 10 साल पहले टैरेस गार्डनिंग की शुरूआत की थी। उन्होंने कहा कि वह हमेशा से पर्यावरण के प्रति जागरूक रही हैं लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी समस्या थी उनकी रसोई। उनकी रसोई से बहुत ज़्यादा कचरा उत्पन्न होता था और उन्हें पता नहीं था कि उसका करना क्या है। तब नीला ने अपने सोसाइटी अपार्टमेंट में रहने वाले उन दोस्तों से संपर्क किया जो रसोई कचरे से खाद बनाते थे। अपने दोस्तों से उन्होंने घरेलू कचरे को अलग करना सीखा और कंपोस्ट तैयार करना शुरू किया।
नीला बताती हैं कि मिट्टी के बिना खेती करने का फैसला लेने के पीछे एक कारण उनके दोस्त हैं। उनके दोस्त अनुभवी होम गार्डनर है और सालों से इस पद्धति का उपयोग करके जैविक फल और सब्जियां उगा रहे हैं।
नीला के अनुसार, मिट्टी के बिना बागवानी करने के तीन फायदे हैं। इससे पौधों में कीड़े लगने की संभावना कम होती है। खरपतवार या फालतू घास नहीं होती और इससे कीटनाशकों और उर्वरकों की ज़रूरत भी कम होती है। नीला कहती हैं कि पारंपरिक रूप से मिट्टी का इस्तेमाल करते हुए जो खेती होती है, उसमें एक पौधा अपनी अधिकांश ऊर्जा पानी और पोषण की तलाश में लगाता है और जड़ प्रणाली का विस्तार होता है। लेकिन बिना मिट्टी के खेती में ये सभी चीज़ें सीधे जड़ों में उपलब्ध होती है।
नीला कहती हैं, “हर बार जब मैंने सफलतापूर्वक एक पौधा उगाया, तो उसने मुझे और प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया।“
बगैर मिट्टी के बागवानी करने की मूल बातें नीला ने इंटरनेट से सीखीं। उन्होंने कई वीडियो के जरिए समझा कि आखिर पौधों को कितने पानी की ज़रूरत होती और इनके लिए किस तरह के खाद का इस्तेमाल किया जाता है।
फिर, उन्होंने कंपोस्ट तैयार करने की ओर कदम बढ़ाया। इसके लिए, उन्होंने सूखी पत्तियों को इकट्ठा किया और उन्हें एक डब्बे में डाल दिया। उन्होंने पुणे में एक स्थानीय खेत से ताजा गाय का गोबर खरीदा और सूखे पत्तों के साथ मिलाना शुरू किया। अगले कुछ हफ्तों के लिए किचन से उत्पन्न होने वाला कचरा डाला और एक महीने में कंपोस्ट तैयार हो गया।
नीला बताती हैं कि उन्होंने तैयार किए गए कंपोस्ट को एक बेकार रखी बाल्टी में डाल दिया और अपने पहले प्रयास के रूप में खीरे के बीज लगाए। समय-समय पर इसमें पानी दिया और 40 दिनों के भीतर, दो खीरे फसल के लिए तैयार थे। वह बताती हैं कि इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा और उन्हें लगा कि वह टमाटर, मिर्च और आलू जैसी सब्जियां भी उगा सकती हैं।
इस्तेमाल न की जाने वाली या बेकार रखी बाल्टी का इस्तेमाल सोच-समझ कर किया गया था ताकि पुरानी चीज़ों को रिसायकल किया जा सके और यह आज तक जारी है। नीला अपने पौधों को पुरानी बोतलों, कंटेनरों, बैगों और टोकरियों में उगाती है और अगर कभी उनके पास पुरानी चीज़ें नहीं होती हैं, तो वह अपने पड़ोसियों और स्क्रैप डीलरों से संपर्क करती है।
आज उनके बगीचे में 100 से अधिक कंटेनर हैं जहां कई प्रकार के फल और सब्जियां उगाई जाती हैं। आलू, शकरकंद, बैंगन और शिमला मिर्च जैसी सब्जियों को बैग और बाल्टियों में उगाया जाता है। टैरेस के चारों ओर बोतलों में गाजर और हरे प्याज उगाए जाते हैं। गोभी, फूलगोभी और अन्य पत्तेदार सब्जियां थर्माकोल के बक्से या बेकार बक्सों में उगाया जाता है। नीला पेरिविंकल और पोर्टुलाका जैसे फूल के पौधे भी बोतल में उगाती हैं।
नीला बताती हैं कि जब भी उन्होंने सफलतापूर्वक एक पौधा उगाया, उन्हें और प्रयोग करने की प्रेरणा मिली है और इस प्रकार उन्होंने कई किस्म के पौधे उगाई है। एक साल तक कंटेनरों में सफलतापूर्वक पौधे,फूल और सब्जियां उगाने के बाद उन्होंने इसे टैरेस तक ले जाने का फैसला किया।
टैरेस के बीचो-बीच उन्होंने 250X100 वर्ग फीट का प्लांट बेड तैयार किया है। इसके लिए ईंट की 3 फीट ऊंची चार-तरफा दीवार बनाई गई। इसे कंपोस्ट भरा गया और अंत में पत्तियां मिलाई गई। इस प्लांट बेड पर नीला विभिन्न प्रकार की जड़ वाली सब्जियों और विदेशी फल उगाती हैं जैसे कि ड्रैगन फ्रूट, पैशन फ्रूट और चेरी। हाल ही में उन्होंने गन्ना भी उगाया है।
नीला बताती हैं, “मैंने अपने प्लांट बेड पर गन्ने के कुछ टुकड़े लगाए और सात महीने के भीतर, छह से सात गन्ने कटाई के लिए तैयार हो गए। अन्य पौधों की तुलना में गन्ने को ज़्यादा पानी की ज़रूरत होती है लेकिन इसे उगाने के लिए किसी विशेष तकनीक और पोषण की ज़रूरत नहीं होती है। खुद को चुनौती देने के लिए मैंने इसे बैग में भी उगाया है।”
नीला के बगीचा का एक अभिन्न हिस्सा हैं केंचुआ। केंचुए पौधों को स्वस्थ रखने में मदद तो करते ही हैं, साथ ही वे मिट्टी को भी ढीला करते हैं और इसे और छेददार बनाते हैं। कीड़े स्वस्थ रहें, इसका भी खास ध्यान रखा जाता है। उन्हें किचन वेस्ट खिलाए जाते हैं जो बहुत मसालेदार या तेलीय नहीं होते हैं। या फिर कुछ फल और सब्जियां खिलाई जाती हैं।
अपने सभी पौधों के लिए, नीला केवल एक प्रकार का ही जैविक उर्वरक का उपयोग करती हैं और वह है, ‘जीवामृत’।
नीला कहती हैं, “यह एक पारंपरिक भारतीय नुस्खा है जो न केवल पौधों को बल्कि केंचुओं को भी बढ़ने में मदद करता है। यह अलग-अलग अनुपात में गोबर, मूत्र, गुड़ और बेसन को मिलाकर तैयार किया जाता है।”
हर हफ्ते, नीला को प्रत्येक फल और सब्जियों से कम से कम एक किलोग्राम का फसल मिलता है। यह उनकी ज़रूरत से कहीं ज़्यादा है और वह अतिरिक्त फल और सब्जियां दोस्तों और रिश्तेदारों में बांट देती हैं।
ऑर्गेनिक गार्डन ग्रुप
तीन साल पहले, नीला और उनके सोसाइटी में रहने वाले 40 अन्य लोगों ने फेसबुक पर ‘ऑर्गेनिक गार्डन ग्रुप’ शुरू किया ताकि वे एक दूसरे के साथ खेती के बारे में सुझाव और तकनीक साझा कर सकें।
नीला बताती हैं कि इस ग्रुप से आज करीब 30,000 सदस्य जुड़े हुए हैं। इनमें से कुछ लोग अनुभवी गार्डनर हैं, कुछ नए गार्डनर हैं जो जैविक खेती करना चाहते हैं और ऐसे व्यक्ति भी हैं जो जैविक खेती में रुचि रखते हैं।
फेसबुक पर नीला के बगीचे की कुछ तस्वीरें देखने के बाद, कई नए बागवानों ने उन्हें टिप्स देने का अनुरोध किया। धीरे-धीरे लोग उनके बगीचे को देखने आने लगे और अब, हर रविवार को नीला बागवानी पर 2 घंटे की वर्कशॉप आयोजित करती हैं, जहाँ वह प्रतिभागियों को कंपोस्ट, उर्वरक और प्लांट बेड तैयार करना सिखाती हैं और यह वर्कशॉप मुफ्त होती है।
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चित्र सौजन्य: नीला रेनाविकर पंचपोर
मूल लेख-ROSHINI MUTHUKUMAR
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