अपने घर में बढ़ते पौधों को देखकर न केवल मन को शांति मिलती है, बल्कि इनसे हवा की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। भोपाल निवासी 25 वर्षीया साक्षी भारद्वाज ने भी इस बात को समझा और अपने घर के पीछे एक मिनी जंगल बना दिया। इस जंगल में 450 प्रजातियों के 4000 पौधे हैं। इनके अलावा, यहाँ पौधों की 150 विदेशी प्रजातियां हैं और ये सभी खूबसूरत पौधे, एक वर्टीकल सेटअप में उगाए गए हैं। इन पौधों को आकर्षक बनाने के लिए साक्षी, नारियल के खोल (Plants In Coconut Shell), रीसायकल की गई बोतलों और डिब्बों का उपयोग करती हैं।
साक्षी कहती हैं, ”बागवानी मेरी रगों में है।” प्रकृति के प्रति लगाव के कारण ही उन्होंने माइक्रोबायोलॉजी की पढ़ाई की।
उन्होंने बताया, “मैंने साल 2019 में, मानसरोवर ग्लोबल यूनिवर्सिटी में, कृषि विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम करना शुरू किया। छात्रों को पौधों के फैलाव और उनकी आनुवंशिकी (genetics) आदि से जुड़ी बातों को पढ़ाने तथा समझाने के दौरान मैंने अपने भीतर बागवानी के लिए, एक विशेष रुची विकसित की। साथ ही, मैं सुनिश्चित करती थी कि मैं जो भी बोलूं, वह मेरे अनुभव से जुड़ा हो। इसलिए, उन्हें कुछ बताने या सीखाने से पहले, मैंने अपने घर में इन बातों को आजमाने का निश्चय किया।”
वह पेड़ों से शाखाओं की कलम बनाकर पौधे उगातीं तथा फूलों के पौधे खरीदतीं और उनसे नए पौधे लगातीं। इसके अलावा, उन्होंने निम्बू और संतरों के छिलकों से जैव-एंजाइम बनाने और केंचुओं को केवल नीम और पपीते जैसे औषधीय पौधे खिलाकर उससे खाद (वर्मीकम्पोस्ट) तैयार करने का भी प्रयोग किया।।
बढ़ती विदेशी किस्में
साल 2020 की शुरुआत में, सोशल मीडिया के माध्यम से साक्षी को संयोग से एक शहरी बागवानी कम्युनिटी के बारे में पता चला। यहाँ सभी गार्डनर, मॉन्स्टेरा और फिलोडेंड्रन्स (Monsteras and Philodendrons) जैसे विदेशी पौधों की चर्चा करते थे, जिन्हें वे अपने घर पर भी उगा रहे थे।
वह बताती हैं, “लोगों के घरों में बढ़ते पौधों व बगीचों को देख कर मैं हैरान थी। तब मुझे ऐसा लगा कि उन सब के मुकाबले, मेरा बगीचा तो काफी छोटा है। क्योंकि, उन दिनों मेरे बगीचे में अड़हुल और गुलाब जैसे साधारण पौधे ही लगे हुए थे। इसलिए, मैंने उनमें से कुछ बागवानों से संपर्क किया और उन्हें कुछ स्नेक प्लांट, मॉन्स्टेरा, फिलोडेंड्रन और बेगोनिआ का ऑर्डर दिया।”
लेकिन साक्षी वहीं नहीं रुकीं! उन्होंने सीमेंट से बने गमलों को नर्सरी से खरीदा और उन विदेशी पौधों को इनमें लगाया। साथ ही, इन पौधों के जैविक विकास के लिए, उन्होंने इनमे जैविक पॉटिंग मिक्स और वर्मीकम्पोस्ट मिलाया। वह उनमें नियमित रूप से पानी डालने तथा हर तरह से उनकी देखभाल करने लगीं।
साक्षी बताती हैं, “मेरे घर में बगीचे के लिए काफी जगह थी, लेकिन मैंने इन पौधों को वहां नहीं लगाकर, सीमेंट के गमलों में लगाया ताकि वे मेरे बगीचे में मौजूद, पौधों को नष्ट कर देने वाली लाल चीटियों से बचे रहें। मैंने कई जैविक तरीकों से उनसे छुटकारा पाने की कोशिश की, लेकिन ये तरीके हमेशा ही असफल रहे।”
हालाँकि, सीमेंट के गमलों में पौधे अच्छी तरह से विकसित हो रहे थे, लेकिन साक्षी ने सीमेंट के ज्यादा गमलों को खरीदने के अपने ख्याल को रोक दिया और इको-फ्रेंडली तरीके से काम करने का फैसला किया।
उन्होंने बताया, “मैं रोज नारियल पानी पीती हूँ। इसलिए मैंने सोचा, क्यों नहीं इन नारियल के खोल में ही पौध लगाये जाएं!” साक्षी का मानना है कि पानी के रिसाव को रोकने के लिए नारियल की भूसी का प्रयोग, एक अच्छा उपाय है। साथ ही, नारियल के खोल (Plants In Coconut Shell) इतने मजबूत होते हैं कि ये कभी आसानी से टूटते भी नहीं हैं।
बनाया एक वर्टीकल गार्डन
अपनी इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए, साक्षी ने नारियल के खोलों (Plants In Coconut Shell) को अच्छी तरह से साफ किया और उन्हें सूखने दिया। उन्होंने खोल के ऊपर दो छेद बनाए तथा उनमें तार और पतली रस्सियों को डाल कर, उन्हें दिवार पर लटका दिया। उन्होंने खोलों को जैविक पॉटिंग मिक्स, वर्मीकम्पोस्ट और रसोई से निकलने वाले कचरे से बनी खाद से भर दिया और पौधों को उनके भीतर बो दिया।
साक्षी कहती हैं, “खोल को साफ करने तथा उनमें पौधे उगने में कुछ दिन जरूर लगे, लेकिन आज तक सभी पौधे अच्छे से बढ़ रहे हैं तथा मैं इसी तरह और भी कई पौधे उगाती रहती हूँ। मेरे पौधों में कोई कीट नहीं होते। क्योंकि, नारियल के खोल पौधों के लिए पोषण का एक प्राकृतिक स्रोत हैं। अब, मेरे बगीचे में 450 विभिन्न प्रजातियों के 4000 से अधिक पौधे हैं। इनमें 150 विदेशी प्रजातियां हैं। इन विदेशी प्रजातियों में मॉन्स्टेरा, फिलोडेंड्रन, बेगोनिआ, कैलैथिया, पाम्स, पेपरोमिया, फायकस, एपिप्रेमनम, सेन्सेवियरिया, क्लोरोफाइटम, एग्लोयनिमा आदि से जुड़े पौधे शामिल हैं।” साक्षी ने बताया कि उन्होंने प्लास्टिक के बेकार पड़े डिब्बों तथा बोतलों में भी ये पौधे उगाये हैं।
साक्षी बताती हैं कि उनके पसंदीदा पौधे, मॉन्स्टेरा एडमसोनई और फिलोडेंड्रन ड्रैगन हैं। क्योंकि, मॉन्स्टेरा एडमसोनई पहला दुर्लभ पौधा था, जिसे उन्होंने अपने बगीचे में लगाया था और फिलोडेंड्रन ड्रैगन एक विदेशी प्रजाति है, जिसे वह इंडोनेशिया से लाई थीं।
नारियल के खोल (Plants In Coconut Shell), रीसायकल की हुई बोतलों और डिब्बों आदि में लगे पौधों को आकर्षक बनाने के लिए, साक्षी ने लॉकडाउन के दौरान, हर रविवार बैठकर, इन्हें कई रंग-बिरंगे वाटरप्रूफ रंगों से रंग दिया।
रीसायकल की हुई प्लास्टिक की चीजों के अलावा पौधे लगाने के लिए, उन्होंने प्लास्टिक के कवर जैसे- दूध के पैकेट को पॉलीबैग के रूप में इस्तेमाल किया। साक्षी बताती हैं कि वह भविष्य में एक नर्सरी शुरू करना चाहती हैं, जो लोगों को पौधों की विदेशी प्रजातियां देने में सक्षम हो।
यदि आप साक्षी के बगीचे के बारे में अधिक जानना चाहते हैं या उनसे विदेशी पौधे खरीदना चाहते हैं, तो आप उनके इंस्टाग्राम पेज पर संपर्क कर सकते हैं।
मूल लेख: रौशनी मुथुकुमार
संपादन- जी एन झा
इसे भी पढ़ें: ऑफिस ऑन व्हील्स: इस लक्ज़री EV में आसानी से कर पाएंगे ऑफिस का काम
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।
Sakshi Bharadwaj Sakshi Bharadwaj Sakshi Bharadwaj Sakshi Bharadwaj Sakshi Bharadwaj Sakshi Bharadwaj Sakshi Bharadwaj Sakshi Bharadwaj
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons: