जिन लोगों को हरियाली का शौक़ होता है, वे किसी न किसी तरह अपने आस-पास पौधे लगा ही लेते हैं। घर के बाहर नहीं, तो घर के अंदर गार्डन बना लेते हैं। जी हाँ, बिल्कुल ऐसा ही किया है पटना के डॉ. पंकज कुमार ने। उनके घर के हर एक कोने, खिड़की या रोशनी वाली हर एक जगह पर आपको ढेरों पौधे दिख जाएंगे, जिससे इंडोर गार्डन से ही उन्हें घर के अंदर सुन्दर हरियाली मिलती है।
पेशे से ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. पंकज कुमार को जब पौधे लगाने के लिए छत या आँगन नहीं मिला, तो उन्होंने अपनी छोटी सी 6/3 की बालकनी में पौधे लगाना शुरू किया। समय के साथ जब बालकनी भर गई, तो उन्होंने घर के अंदर भी पौधे लगाना शुरू कर दिया। अब उनके घर के अंदर करीबन 300 से ज्यादा पौधे लगे हुए हैं, जो दिखने में इतने सुन्दर लगते हैं कि घर के अंदर ही बिल्कुल ताज़गी का एहसास होता है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहते हैं, “जगह नहीं है इसलिए पौधे नहीं उगा रहे, यह कहना गलत होगा। अगर हम चाहें, तो जगह अपने आप बन जाती है और यह मैं अपने अनुभवों से कह रहा हूँ।”
माँ को देखकर हुआ गार्डनिंग का शौक
बिहार के सुपौल जिले में जन्में डॉ. पंकज की परवरिश गांव में हुई है। उनके एक एकड़ में फैले घर में उनकी माँ ढेरों पौधे उगाती थीं। उन्होंने बताया कि आज भी वह अपनी उम्र के हिसाब से गार्डनिंग के लिए कुछ ज्यादा ही मेहनत करती हैं और कोशिश करती हैं कि एक भी पौधा सूख न जाए।
डॉ. पंकज भी बचपन में उनके साथ पौधे लगाया करते थे। लेकिन 5वीं की पढ़ाई के बाद, वह ज्यादातर समय हॉस्टल में ही रहे। पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज, झारखंड से MBBS की पढ़ाई करने के बाद, उन्होंने हैदराबाद, नेपाल और बांग्लादेश में कई सालों तक प्रेक्टिक्स की।
वह कहते हैं, “पांचवीं के बाद जब मैं हॉस्टल में था, तब भी कैंपस में पौधे लगाता था, जितना माँ से सीखा था उसके अनुसार पौधे उगता और देखभाल करता था।”
20 सालों बाद, काम से ब्रेक लेकर शुरू की गार्डनिंग
समय के साथ नौकरी और काम में बिजी होने के कारण, डॉ. पंकज को पौधे लगाने की समय ही नहीं मिलता था। लेकिन साल 2019 में करीबन 20 सालों बाद, जब वह पटना आए, तो उन्होंने कुछ समय के लिए काम से ब्रेक लेने का फैसला किया।
उन्होंने बताया, “सालों बाद पटना आने पर मैंने सोचा कि तीन से चार महीने का ब्रेक लिया जाए और उस दौरान जब मैं घर में था, तो समय का सही उपयोग करने के लिए, अपने गांव से ही गाय के गोबर से बना ऑर्गेनिक फ़र्टिलाइज़र लाकर, मैंने पौधे उगाना शुरू किया।”
उन्होंने एरिका पाम, रबर प्लांट, स्पाइडर प्लांट सहित कई सजावटी पौधे तो लगाए ही हैं, साथ ही उन्होंने पान और मनी प्लांट की बेल से एक बेहद ही खूबसूरत ग्रीन वॉल भी तैयार की है। सर्दी के मौसम में उनके बालकनी गार्डन में गेंदे सहित कई मौसमी फूल भी खिलत हैं। उनके पास ज्यादातर पौधे इनडोर हैं, ताकि पौधे कम रोशनी में भी अच्छे से बढ़ सकें।
डॉ. पंकज कहते हैं, “जो भी मेरे घर आता है, हर जगह पौधे ही पौधे देखकर खुश हो जाता है। इन पौधों से घर के अंदर काफी ताज़ा और ठंडक भरा महसूस होता है।” इतना ही नहीं उनके घर की बालकनी अब कई पक्षियों का घर भी बन गई है, जहां नियमित रूप से पक्षी आते हैं और कइयों ने वहां अपना घोंसला भी बना लिया है।
अब व्यस्तता के बावजूद, घर और सोसाइटी में करते हैं गार्डनिंग
डॉ पंकज, अपने पौधों के प्रति प्यार के कारण अक्सर पौधे लगाने के लिए जगह ढूंढ़ते ही रहते हैं। उन्होंने अपनी सोसाइटी गार्डन में भी कई पौधे लगाए हैं। उनके इन प्रयासों को देखकर उन्हें सोसाइटी के गार्डन की देख-रेख का काम सौंपा गया है। वह कहते हैं, “मुझे बड़ी ख़ुशी होती है कि घर में जगह न सही गार्डन में ढेरों पौधे लगाने का मौका मिला।”
हालांकि, वह हाल में पटना के ही एक निजी हॉस्पिटल में प्रैक्टिस भी कर रहे हैं और सुबह से देर शाम तक काफी बिजी रहते हैं, लेकिन फिर भी वह गार्डन की देखभाल के लिए समय निकाल ही लेते हैं।
अब डॉ. पंकज के बच्चे उनसे प्रेरित होकर, कर रहे गार्डनिंग
डॉ. पंकज, सुबह पांच बजे उठकर पौधों की देखभाल करते हैं। कभी अगर देर हो जाए तो उनकी पत्नी और उनका बेटा सारे पौधों को पानी देने का काम कर देते हैं। डॉ. पंकज ने बताया कि जिस तरह से मेरी माँ को देखकर मैंने पौधे लगाना सीखा उसी तरह मेरा बेटा और बेटी भी मुझे देखकर गार्डनिंग में रुचि रखने लगे हैं।
डॉ. पंकज के बेहतरीन प्रयास कइयों के लिए प्रेरणा हैं और हमें आशा है कि आप भी जगह और समय जैसे बहाने छोड़कर अपने आस-पास कुछ पौधे ज़रूर उगाएंगे।
हैप्पी गार्डनिंग!
संपादनः अर्चना दुबे
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