मछलीपट्टनम के रहनेवाले अन्ना मणिरत्नम, साल 2017 में अपने परिवार के साथ नए घर में शिफ्ट होते समय बहुत खुश थे। खुशी सिर्फ नए घर की ही नहीं थी, बल्कि टेरेस गार्डन बनाने के अपने सपने को पूरा कर पाने की भी थी। यह, वह सपना था जिसे वह बचपन से देखते आ रहे थे।
27 वर्षीय मणि ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमारे पुराने घर में इतनी जगह ही नहीं थी कि मैं अपने बागवानी के शौक़ को पूरा कर सकूं। लेकिन अब मेरे पास 675 वर्ग फुट की छत है। यहां मैं फल और सब्जियों के ढेर सारे पौधे लगा सकता था। तब मैंने अपनी छत को एक छोटे से जंगल में तब्दील करने का फैसला किया।”
आज चार साल बाद उनके घर की यह छत एक मिनी फॉरेस्ट जैसी दिखने लगी है। वहां 100 से ज्यादा पौधे लगे हैं। टमाटर, बैंगन जैसी सब्जियों के साथ-साथ, लाल अमरूद और शरीफा के पेड़ भी हैं। ऐमारैंथस जैसी जड़ी-बूटियां भी उनके बगीचे में लगी हैं। मणि अपने इस टेरेस गार्डन की देखभाल पर हर महीने केवल 500 रुपये खर्च करते हैं। उनका एक फेसबुक ग्रुप भी है, जिससे 1000 से ज्यादा लोग जुड़े हैं। इस पेज पर वह कम खर्च में बागवानी करने से संबंधित टिप्स साझा करते हैं।
घर पर ही बनाते हैं खाद और बीज
अपने गार्डन में सबसे पहले उन्होंने शुभ माना जाने वाला तुलसी का पौधा लगाया। फिर चमेली के फूल और टमाटर जैसी सब्जियों के बीज खरीदकर गमले में लगाए और फिर धीरे-धीरे उनके बागवानी का शौक़ उड़ान भरने लगा। आज उनका पूरा परिवार छत के गमलों में उगी ताजी सब्जियां और फल खाता है।
मणि कहते हैं, “मैं अपने टेरेस गार्डन पर रोज़मर्रा के इस्तेमाल में आने वाली सब्जियों और फलों को उगाना चाहता था और जब घर में ही ये सब उगाना और खाना है, तो फिर क्यों न कुछ अलग किया जाए जो सेहत के लिए अच्छा हो। बस इसी सोच के साथ मैंने रासायनिक खाद को ना कह दिया। मैं ऑर्गेनिक तरीके से सब्जी उगाना चाहता था। मैंने रसोई के कचरे को खाद के तौर पर इस्तेमाल करने और जीवामृत और पंचगव्य जैसे जैविक उर्वरक बनाने का फैसला कर लिया।”
खाद बनाने की ली ट्रेनिंग

मणि का कहना है कि इतना सबकुछ सोच तो लिया, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं था। खाद बनाने के लिए उन्हें बहुत कुछ जानना और सीखना था। मणि ने गुंटूर में दो हफ्ते चलने वाले एक वर्कशॉप में हिस्सा लिया। वहां, उन्होंने काफी बुनियादी बातें सीखीं और फिर घर पर ही खाद बनाने का काम शुरू कर दिया। खरीद लागत कम से कम रहे इसके लिए मणि ने हरसंभव प्रयास किया। उन्होंने घर के पास की एक डेयरी से संपर्क साधा और वहां से गाय का गोबर और गौमूत्र लेने लगे।
मणि ने बताया, “डेयरी के मालिक ने मुझसे इसके बदले में कोई पैसा नहीं लिया। मैंने घर पर पड़े बेकार ड्रम में खाद बनाया और छत पर ढक कर रख दिया। इस खाद में पानी मिलाकर मैं थोड़ा पतला कर लेता हूं और हर 14 दिन में एक बार पौधों में डालता हूं।” मणि के अनुसार, लॉकडाउन के समय जब वह खाद नहीं खरीद पा रहे थे, तब उन्होंने किचन वेस्ट को पानी में मिलाकर उसी से खाद तैयार किया था।
रिसाइकल कर बनाए प्लांटर्स
मणि ने गार्डनिंग की शुरुआत कुछ फल और सब्जियों के पौधों से थी। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपने इस टेरेस गार्डन में भृंगराज, सौरसप, एडेनियम, बोन्साई और बहुत से फूल वाले पौधों को जगह दी और इसे काफी बड़ा बना लिया। उन्होंने छत पर ही सीमेंट के कुछ गमले बनाए और उनमें फल वाले पौधे लगा दिए। इसके अलावा प्लास्टिक या स्टील की बाल्टी को भी रिसाइकल किया और उन्हें प्लांटर्स में तब्दील कर दिया। ये सारा सामान उन्होंने कबाड़ी से खरीदा था।
साल 2019 में मणि को अहसास हो गया कि जैसे-जैसे पौधे बड़े होते जा रहे हैं, उन्हें मार्किट से ज्यादा कुछ खरीदना नहीं पड़ रहा। अब एक महीने में पौधों पर सिर्फ 500 या ज्यादा से ज्यादा 600 रुपये खर्च करना ही काफी था। इसके अलावा, गार्डनिंग के उनके इस शौक़ के चलते घर से निकलने वाला कचरा भी काफी कम हो गया था।
वह कहते हैं, “घर से जितना भी गीला कूड़ा निकलता है, उससे मैं खाद बना लेता हूं और सूखा कूड़ा मसलन प्लास्टिक की बोतलों या डिब्बों को गार्डन के लिए रिसाइकिल कर देता हूं।” उन्होंने बागवानी के इन फायदों के बारे में पड़ोसियों को भी बताया, ताकि वे भी इस स्वस्थ जीवन शैली को अपनाने के लिए आगे आएं और पर्यावरण को बचाने में सहयोग कर सकें।
खाद बनाने की सीख के साथ मिली एक अच्छी दोस्त

वर्कशॉप के दौरान उनकी मुलाकात गौरी काव्या से हुई थी। आज वे दोनों काफी अच्छे दोस्त हैं। गौरी के साथ मिलकर मणि ने फेसबुक पर ‘Bandar Brundavanam’ नाम से फेसबुक पेज शुरु किया। जिसपर वह जैविक खाद, कीटनाशक और बीज बनाने के टिप्स साझा करते हैं।
मणि ने बताया, “मैंने अपने इस पेज पर बागवानी से जुड़े वीडियो और कुछ पोस्ट शेयर किए हैं। हम इस पेज के जरिए तीन से पांच किलोमीटर के दायरे में रह रहे लोगों को बीज और खाद भी उपलब्ध कराते हैं और बदले में वे भी अपने गार्डन की कुछ अनोखी चीजें हमें दे जाते हैं।”
उन्होंने बताया कि यह अदला-बदली ज्यादातर फ्री में होती है। किसी से किसी भी चीज़ के लिए पैसे न तो लिए जाते हैं और न ही दिए जाते हैं। यही कारण है कि आज उनके पेज पर 1000 से ज्यादा लोग जुड़ चुके हैं। ग्रुप से जुड़ी कई सकारात्मक कहानियां उनके पास हैं।
सेहत होगी बेहतर, कचरा होगा कम
मणि कहते हैं “महामारी की दूसरी लहर के दौरान हमारा ये ग्रुप काफी मजबूत हुआ है। जब हमारे एक बुजुर्ग सदस्य का निधन हो गया तो उनकी बेटी ग्रुप पर आई और अपनी माँ की अंतिम इच्छा के बारे में बताया। उनकी माँ चाहती थीं कि उनके सभी पौधों को दान कर दिया जाए और वही उनकी देखभाल भी करें। ग्रुप के 10 सदस्य आगे आए और उन्होंने कई पौधों को अपने गार्डन में जगह दी। ये पौधे आज भी उनके बगीचे की शान बने हुए हैं।”
मणि को उम्मीद है कि आने वाले समय में यह ग्रुप अधिक से अधिक लोगों को ऑर्गेनिक फार्मिंग करने के लिए प्रेरित करेगा। वह कहते हैं, “इससे लोगों को सेहतमंद तरीके से जीने की एक राह और घर से निकलने वाले कचरे को कम करने में मदद मिलेगी।”
मूल लेखः रौशनी मुथुकुमार
संपादन- जी एन झा
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