बागवानी का ‘ब’ भी नहीं आता था, लॉकडाउन में चमेली के फूल उगाकर कमा लिए रु. 85000

Kirana is growing jasmine in pots and makes chendu earning good money

मंगलुरू की किराना देवाडिगा ने लॉकडाउन में खाली बैठने के बजाय, आपदा को अवसर में बदलने का फैसला किया। घर की छत पर गमलों में जैसमीन उगाकर, वह अब तक 85000 रुपये कमा चुकी हैं।

मंगलुरू की रहने वाली 36 साल की किराना देवाडिगा, पेशे से एक वकील हैं, और आजकल अपने घर की छत पर गमलों में जैसमिन (चमेली) उगा (Growing Jasmine) रही हैं। उनका कहना है, “चमेली के इन पौधों ने मेरी जिंदगी बदल दी है। मैंने अपनी छोटी सी बालकनी में तीन चमेली के पौधे लगा रखे हैं। उनकी सुगंध से जो खुशी मिलती है, वो कई चीजों से बढ़कर है।”

किराना ने पिछले साल मार्च में, लॉकडाउन के दौरान उडुपी जैसमिन उगाना (Growing Jasmine) शुरु किया था। इसे शंकरपुरा मल्लिगे के नाम से भी जाना जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में उगाई जाने वाली जैसमिन के कई दूसरे अलग-अलग नाम भी हैं। उडुपी मल्लिगे की खुशबू बेमिसाल है और इसे ज्योग्राफिकल इंडीकेशन टैग (जीआई) भी मिला है।

लॉकडाउन साबित हुआ वरदान

द बेटर इंडिया से बातचीत करते हुए किराना बताती हैं, “खुद की ज़मीन पर खेती करने की एक दबी हुई इच्छा मेरे मन में हमेशा से थी। लेकिन शहरी लड़की होने के नाते मैं अपना यह सपना कभी पूरा नहीं कर पाई। लॉकडाउन, मेरे लिए एक वरदान के रूप में आया। तब मैं अपने शौक, ‘खेती और किसानी’ के बारे में काफी सोचने लगी थी।”

जब किराना ने अपने इस शौक के बारे में अपनी बहन और पति महेश को बताया तो वे हंस पड़े। वह आगे कहती हैं, “उन्होंने मुझसे पूछा कि जब सारी दुनिया कोविड से जूझ रही है, तो मैं अपना समय फूलों को उगाने में क्यों बिताना चाहती हूं।” उनके पति ने यह भी कहा कि एक वकील किसान बनके क्या करेगी? लेकिन किराना अपनी जिद पर अड़ी रहीं और पौधों के बारे में और अधिक से अधिक जानकारी खोजती रहीं। 

Kirana, her husband and son took three days to get all planters on the terrace for growing jasmine
Kirana, her husband and son.

जहां चाह, वहां राह 

उन्होंने सोचा कि खेत ना सही, लेकिन छत पर तो अपने शौक़ को पूरा किया जा सकता है। टेरेस गार्डनिंग के लिए किराना ने ऑनलाइन जानकारी इकट्ठा की। तब उन्हें लगा कि यह तो काफी आसान है। वह कहती हैं, “बस आपके अंदर पौधे उगाने की लगन और धैर्य होना चाहिए।” 

मंगलुरु के सह्याद्री नर्सरी के मालिक राजेश ने ही किराना को उन पौधों की पहचान करने में खासी मदद की, जिन्हें वह आसानी से छत पर उगा सकती थीं। किराना बताती हैं, “पहले उन्होंने मुझे हिबिस्कस का पौधा दिखाया, उसे उगाना मुश्किल नहीं है। लेकिन मुझे उसमें कोई अपील नहीं दिखी। मैं अपने गमले में कुछ ऐसे पौधे लगाना चाहती थी, जिससे मेरी नियमित आय भी बढ़ सके, और उसके लिए मुझे जैसमिन एकदम सही लगा।”

लॉकडाउन के समय, नर्सरी चमेली के पौधों से भरी पड़ी थी। किराना ने बताया, “एक तरह से ये मेरे लिए अच्छा ही था। लॉकडाउन के कारण लोग पौधों की खरीदारी नहीं कर रहे थे। नर्सरी में चमेली के लगभग 90 पौधै थे, मैंने सारे पौधे खरीद लिए।” किराना ने सारे पौधों के लिए 3,150 रुपये खर्च किए, यानी एक पौधे के लिए 35 रुपये।

मेहनत तो थी, लेकिन खुशी कहीं ज्यादा थी

Kirana is growing jasmine in pots
Jasmin terrace garden of Kirana

किराना ने पौधे तो खरीद लिए, बस अब जरुरत गमलों की थी। किस्मत ने यहां भी किराना का साथ दिया। नर्सरी से पौधे घर ले जाते समय, उन्हें एक फेरीवाला दिखाई दिया, जो तकरीबन सौ छोटे-बड़े गमलों को जल्द से जल्द बेचकर अपने घर (उत्तर भारत) वापस जाना चाहता था।

वह कहती हैं, “मैंने उसके सारे गमले खरीद लिए, एक गमला 65 रुपये का था। लॉकडाउन के कारण टेंपो या ऑटो रिक्शा मिल पाना संभव ही नहीं था। इसलिए मैंने गमलों को गाड़ी में भरा और घर ले आई।” 

अगला काम इन गमलों को दो मंजिला घर की छत तक ले जाना था। उन्होंने बताया, “मुझे, मेरे पति और सात साल के बेटे को इन्हें छत तक लेकर आने में पूरे तीन दिन लगे थे। हमें बिना किसी मदद के ये काम खुद ही करना पड़ा। हालांकि यह कमरतोड़ मेहनत थी, लेकिन इसे करके बहुत खुशी मिली।” किराना ने अगले कुछ दिन, पौधों को गमलों में लगाने और फिर गमलों को छत पर सिलसिलेवार ढंग से सेट करने में बिताए।

फूलों की खुशबू से होता है ताज़गी का एहसास

किराना ने बताया कि नर्सरी के मालिक से बातचीत कर उन्होंने बहुत कुछ सीखा। वह बताती हैं, “पौधों को रोपने औऱ उगाने के मामले में, मैं पूरी तरह से नौसिखिया थी। पौधों को कितना पानी चाहिए और किस तरह की खाद इसे बेहतर तरीके से विकसित करने में मदद करेगी, मिट्टी आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।”

उन्होंने आगे कहा, “मैने जो कुछ भी सीखा वो या तो यूट्यूब पर वीडियो देख कर या फिर टेरेस गार्डनर्स के साथ बातचीत करके सीखा।” किराना और महेश ने अगले तीन महीने तक बहुत ही सावधानी से पौधों की देखभाल की। वह कहती हैं, “महेश सुबह मुझसे पहले उठ जाते हैं और आमतौर पर सुबह के समय पौधों की देखभाल वही करते हैं। सूरज की पहली किरण पड़ने से पहले चमेली की कलियों को तोड़ लेना चाहिए।”

वह सुबह के समय घर के कामों को निपटाकर ही छत पर जाती हैं। पौधों को और मिट्टी या खाद की जरुरत तो नहीं है, इसका पूरा ध्यान रखती हैं। वह बताती हैं, “जब तीन महीने बाद पौधों में फूल खिलने लगे तो मैंने उन्हें तोड़ा नहीं। ताकि उपज और अच्छे से हो सके। फूलों की सुगंध से ही उसकी ताजगी का अहसास होता है।” 

किराना ने जैसमीन की ग्रोथ पर काफी रिसर्च की। हर रिसर्च में फूल तोड़ने से पहले कम से कम छह महीने इंतजार करने के लिए कहा गया। इसलिए उन्होंने पौधों को खूब घना होने दिया। वह बताती हैं, “जब मैंने पहली बार फूल तोड़े, तो वह इतने सारे थे कि उनसे तीन ‘चेंदू’ बनाए जा सकते थे।” एक चेंदू बनाने के लिए तकरीबन 800 फूलों की जरुरत होती है। जिन्हें केले के तने के रेशे से कसकर बांधा जाता है। 

जो मजाक बनाते थे अब वो साथ हो लिए

Jasmine flowers are then strung together closely using a string made of plantain stalk.
Jasmine flowers strung together.

चेंदू बनाना भी किराना ने चलते-फिरते ही सीखा था। वह खुश होकर बताती है, “जब मैंने जैसमीन से चेंदू बनाना शुरु किया तो मेरी बहनों ने मेरा मजाक बनाया। लेकिन आज, मेरी वही बहनें फूलों को एक साथ बांधने में मेरी मदद करती हैं। दरअसल, मेरे पौधे जिस तरह से फल-फूल रहे हैं, उससे वे काफी प्रभावित हैं। अब तो उन्होंने भी जैसमिन उगाना (Growing Jasmine) शुरू कर दिया है।” 

किराना ने पौधे, गमले और खाद पर लगभग 12000 रुपए खर्च किए। वहीं, जैसमिन फूलों को बेचकर वह अब तक लगभग 85,000 रुपए कमा चुकी हैं। वह कहती हैं, “मेरे लिए खाद का एक बैग खरीदना बिल्कुल नए कपड़े और ज्वैलरी खरीदने जैसा था।” कड़ी मेहनत से हमेशा कामयाबी का रास्ता निकलता है, किराना इसका एक शानदार उदाहरण हैं।

अंत में वह कहती हैं, “जैसमीन को उगाना (Growing Jasmine) मुश्किल नहीं है। केवल समय का सही ढ़ंग से इस्तेमाल करने की जरूरत है। जीवन के बारे में शिकायत करने और समय न होने का बहाना बनाने के बजाय चीजों को अपने लिए, अपने तरीके से करना सीखें। सपना चाहे जितना भी छोटा हो या बड़ा, लोगों को उस पर हंसने का मौका ना दें।”

मूल लेखः- विद्या राजा

संपादनः अर्चना दुबे

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