पटना में रहने वाले विजय राय पिछले लगभग 20 वर्षों से अपनी छत पर बागवानी कर रहे हैं। उनके बगीचे में सजावटी पौधे, बोनसाई, मौसमी सब्जियों से लेकर कई तरह के फूल और फलों के पेड़ भी लगे हुए हैं। उनके घर में शायद ही ऐसा कोई दिन जाता हो, जब उन्हें अपने बगीचे से कोई फल या सब्जी न मिलता हो। घर में बगीचे से कारण फल-सब्जियों के लिए बाजार पर उनकी निर्भरता काफी कम है। वह कहते हैं कि उनकी रसोई की लगभग 90% जरूरतें उनके अपने बगीचे से पूरी हो रही हैं।
न सिर्फ उनके अपने घर में बल्कि आस-पड़ोस के लोग और रिश्तेदार भी उनके बगीचे में उगी जैविक और पौष्टिक सब्जियां खा रहे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए विजय ने बताया, “मैं मूल रूप से किसान परिवार से संबंध रखता हूं। लेकिन पढ़ाई करने के बाद बतौर मरीन इंजीनियर नौकरी की है। मेरा ज्यादातर समय जहाज पर गुजरता था और जब भी छुट्टियों में घर आता तो लगता था कि कुछ करना चाहिए। इसलिए सालों पहले जब अपना घर बनाया तो घर के निर्माण के समय ही ठान लिया था कि छत पर पेड़-पौधे लगाएंगे और एक छोटा-सा पूल भी बनवाया।”
विजय राय ने अपनी छत को एक्सपर्ट सिविल इंजीनियर के मार्गदर्शन में बनवाया ताकि आगे चलकर छत पर मिट्टी डालकर बागवानी की जा सके। साथ ही, एक छोटा-सा तालाब भी बनवाया, जिसमें फ़िलहाल वह मछली पालन कर रहे हैं। उन्होंने बताया, “छत पर छोटे से पूल का आईडिया मुझे जहाज से ही मिला था। क्योंकि जहाज पर स्विमिंग पूल हुआ करता था और कई बार हम उसमें नहाते थे। इसलिए मुझे लगा कि जब जहाज पर पूल हो सकता है तो घर की छत पर क्यों नहीं। पिछले साल ही मैंने इसमें कुछ मछलियां डाली हैं।”
गमलों के साथ छत पर बनाए सीधा मिट्टी के बेड
विजय कहते हैं कि अपने घर की छत पर उन्होंने पेड़-पौधे लगाए हुए हैं। छत पर उन्होंने सीधा मिट्टी डालकर बेड बनाए हैं। इनमें लगभग डेढ़ फ़ीट की ऊंचाई तक मिट्टी उन्होंने डाली है। इसके अलावा, 200 से ज्यादा छोटे-बड़े गमले भी उनके बगीचे में लगे हुए हैं। “शुरुआत में, मैंने गांव से मिट्टी मंगवाकर छत पर डाली थी और कुछ गमले रखे थे। इसके बाद, हर साल गांव से गोबर की खाद और केंचुआ खाद आता है और इसी को पहले से मौजूद मिट्टी में मिलाकर पॉटिंग मिक्स तैयार कर दिया जाता है,” उन्होंने बताया।
उनकी छत पर केले, अमरुद, अनार, नींबू, सीताफल, जामुन, आंवला, आम, एप्पल बेर, करोंदा, पपीता, सहजन, मौसंबी और चीकू जैसे फलों के पेड़ों के अलावा, बनयान, पीपल के भी पेड़ हैं। विजय राय ने बताया कि उन्हें अपनी छत पर लगे अमरुद के पेड़ों से हर साल लगभग 10 किलो अमरुद, आठ किलो आम, चार-पांच किलो एप्पल बेर और लगभग 300 केले मिलते हैं। इसके अलावा, उनके अनार, जामुन, सीताफल, नींबू, और करोंदा के पेड़ों में भी खूब फल आते हैं। जल्द ही, उन्हें उनके लगाए पपीता के पेड़ों से भी फल मिलने लगेंगे। इस कारण, बहुत ही कम होता है कि उन्हें फलों के लिए बाजार जाना पड़े।
उनके कुछ फलों के पेड़ सीधा मिट्टी के बेड में लगे हुए हैं तो कुछ को उन्होंने बड़े-बड़े गमलों में लगाया हुआ है। फलों के पेड़ों के अलावा, उनकी छत पर सभी तरह की मौसमी सब्जियां भी हैं। उन्होंने बताया कि वह लौकी, तोरई, करेला, बैंगन, भिंडी, खीरा, और हल्दी जैसी सब्जियां अपने बगीचे में लगाते हैं। “बगीचे से एक ही बार में 10 से 12 लौकी, कद्दू मुझे मिलते हैं। मेरे परिवार के लिए ये बहुत ज्यादा हो जाते हैं तो हम आस-पड़ोस के लोगों में बांट देते हैं। इस बार कई किलो तोरई छत से उतरी हैं तो आसपास अपने रिश्तेदारों के घर भी हमने तोरई पहुंचाई,” उन्होंने कहा।
20 साल से बाहर नहीं गया गीला कचरा
बगीचे की देखभाल के बारे में विजय बताते हैं कि वह खुद बगीचे की देखभाल में काफी समय बिताते हैं। हर सुबह एक से डेढ़ घंटा लगाकर वह पौधों को पानी देते हैं। इसके अलावा, पौधों के लिए पोषण से भरपूर तरल खाद भी तैयार करते हैं। उन्होंने बताया कि तरल खाद तैयार करने के लिए वह वेस्ट डिकम्पोजर, सरसों खली आदि का प्रयोग करते हैं। इस तरल खाद को नियमित रूप से पानी के साथ सभी पेड़-पौधों को दिया जाता है। इसके अलावा, हर साल वह अपने गांव से गोबर की खाद और केंचुआ खाद मंगवाते हैं।
“मुझे दुबारा कभी भी मिट्टी मंगवाने की जरूरत नहीं पड़ी। बस हर साल कुछ बोरी खाद गांव से आता है और इसी को हम सभी गमलों और बेड की मिट्टी के साथ मिलाते हैं। बीच-बीच में निराई-गुड़ाई करके बगीचे की अच्छे से साफ़-सफाई भी की जाती है। बगीचे से बहुत ज्यादा मात्रा में पत्ते, टहनियां और घास आदि निकलती है। इस सबको जलाने या फेंकने की बजाय बगीचे की मिट्टी में ही दबा दिया जाता है। धीरे-धीरे यह सब गल-सड़कर खाद में परिवर्तित होता जाता है। इसी तरह रसोई से निकलने वाले फल-सब्जियों के छिलके को भी बगीचे में इस्तेमाल किया जाता है,” वह बताते हैं।
उनके घर से पिछले 20 साल से किसी भी तरह का गीला या जैविक कचरा बाहर नहीं गया है। वह कहते हैं कि अब यह एक सायकल बन गयी है कि बगीचे से उपज रसोई में जाती हैं और रसोई में इससे बचने वाला कचरा वापस बगीचे में आकर खाद बन जाता है। पिछले कुछ सालों से बिहार में मछली पालन का शौक काफी बढ़ा है। उन्होंने कहा, “मैंने सोचा कि क्यों न छत पर बने अपने पूल में कुछ मछलियां पाली जाएं। इसलिए ट्रायल के तौर पर कुछ महीने पहले मैंने मछली पालन भी शुरू किया है।”
अंत में वह सलाह देते हैं कि अगर आप अपना घर बनवा रहे हैं तो इसका निर्माण इसी तरह कराएं ताकि आप भविष्य में छत पर बागवानी कर पाएं। क्योंकि घर में जैविक तरीकों से उगाये गए फल-सब्जियों का कोई मुक़ाबला नहीं है। इसलिए सबको थोड़ी-बहुत बागवानी जरूर करनी चाहिए। अगर आप उनसे संपर्क करना चाहते हैं तो उनका फेसबुक पेज देख सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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