कहते हैं कि कुछ अलग और अनोखा करने की कोई तय उम्र नहीं होती। आप अपने हौसले और जज़्बे से कुछ भी बड़ा या अलग कर सकते हैं। केरल में त्रिशूर के रहने वाले 23 वर्षीय निधिन मलियक्कल ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया है। उन्होंने केरल से कश्मीर तक का सफर सिर्फ साइकिल पर तय किया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि जब उन्होंने अपनी यात्रा शुरू की, तब उनके जेब में सिर्फ 170 रुपए थे। इतने से पैसों में तो लोग एक शहर से दूसरे शहर जाने की भी नहीं सोचते, लेकिन निधिन ने मीलों का सफर तय कर दिखाया।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए निधिन ने बताया, “मुझे अलग-अलग जगह घूमने का चस्का मेरे कॉलेज के दिनों से ही लग गया था। स्कूल की पढ़ाई के बाद, मैंने एर्नाकुलम के एक कॉलेज में इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। मुझे कॉलेज के लिए ट्रेन से जाना पड़ता था। उस दो घंटे की ट्रेन यात्रा में मुझे इतना मजा आने लगा कि लगभग तीन महीने बाद मैं कॉलेज जाने की बजाय, इधर-उधर घूमने के लिए जाने लगा। दिन के समय, मैं अलग-अलग शहरों और कस्बों में घूमता और शाम तक घर पहुंच जाता था। लेकिन कुछ समय बाद, कॉलेज प्रशासन ने मेरी गैर-मौजूदगी के बारे में घर पर बता दिया।”
इसके बाद, निधिन की पढ़ाई और घूमना, दोनों ही रुक गए। उनके माता-पिता खेतों में काम करते हैं, इसलिए निधिन ने भी पढ़ाई न करके, काम करने का फैसला किया। लेकिन वह काम करने के साथ-साथ, अपने घूमने के शौक को भी पूरा करते रहे। उन्होंने 2019 में दक्षिण भारत की यात्रा की थी। उन्होंने कहा, “मैंने हिचहाईकिंग (Hitchhiking) की थी। इसका मतलब है कि आप अपनी गाड़ी या किसी पब्लिक ट्रासंपोर्ट से यात्रा करने की बजाय, दूसरे लोगों से लिफ्ट मांगकर यात्रा करें। मैंने पूरा दक्षिण भारत ऐसे ही घूमा था।”
साइकिल से कश्मीर तक की यात्रा:
पिछले साल केरल में लॉकडाउन लगने से पहले, निधिन एक होटल में चाय और जूस बनाते थे। लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण, उन्हें 10 महीने घर पर बैठना पड़ा। इस दौरान, उन्होंने पूरा मन बना लिया कि हालात बेहतर होते ही वह कहीं घूमने निकल जाएंगे। निधिन ने दिसंबर 2020 के अंत में अपनी साइकिल यात्रा की तैयारी शुरू कर दी थी। वह बताते हैं कि उनके पास इतने साधन नहीं थे कि वह यात्रा के लिए एक हाई-ऐंड साइकिल खरीद पाते। इसलिए, उन्होंने अपने छोटे भाई की पुरानी साइकिल को ही तैयार किया। उन्होंने सबसे पहले साइकिल की मरम्मत कराई। इसके बाद, यात्रा के लिए कुछ दूसरी चीज़ें जुटाई।
उन्होंने कहा, “मैंने अपने बचत के पैसों से एक कैमरा खरीदा था, लेकिन अपनी इस यात्रा के लिए मैंने इसे बेच दिया और जो पैसे मिले उससे मैंने एक टेंट, छोटा-सा स्टोव, चायपत्ती, चीनी, फ्लास्क और कुछ कपड़े रीदे। मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं थे, तो मैंने तय किया कि मैं रास्ते में चाय बेचकर, यात्रा के लिए पैसे जुटाता रहूँगा। 1 जनवरी, 2021 को मैंने अपनी यात्रा शुरू की। जब मैं घर से निकला, तब मेरे पास सिर्फ 170 रुपए थे और मुझे रास्तों के बारे में भी ज्यादा पता नहीं था। लेकिन, मुझे खुद पर विश्वास था कि मैं यह कर सकता हूँ।”
हालांकि, रास्ते में निधिन को बहुत से ऐसे लोग मिले, जिन्होंने उनकी इस यात्रा के बारे में फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लिखा। वह कहते हैं कि उन्होंने अपनी साइकिल पर एक पोस्टर में ‘केरल से कश्मीर’ लिखकर चिपकाया था। साथ ही, अपना नंबर भी लिखा था। वह यात्रा के दौरान, बीच-बीच में रुककर चाय भी बेचते थे। उनकी साइकिल और पोस्टर को देखकर, लोग उनसे सवाल पूछते और उनकी यात्रा के बारे में जानने की उत्सुकता जताते थे। बहुत से लोगों ने उनके बारे में लिखा और इस तरह, देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को उनके बारे में पता चला।
वह बताते हैं कि कई जगहों पर तो लोगों को उनके बारे में पहले से ही पता होता था। इसलिए, लोग खासतौर पर उनसे मिलते और उन्हें सराहते थे। कई जगहों पर लोगों ने उन्हें रात को ठहरने की जगह भी दी और कुछ लोगों ने उनको अपने शहर में चाय का स्टॉल लगाने में भी मदद की।
‘लोगों की मुस्कान से मिली ऊर्जा’
निधिन आगे कहते हैं कि कश्मीर पहुंचने से पहले उन्होंने कई राज्यों को पार किया, जिनमें कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। वह, 5647 किमी की दूरी तय करते हुए लगभग 120 दिनों में कश्मीर पहुंच गए। इस दौरान, उन्होंने मुश्किलें तो बहुत झेली, लेकिन उन्हें बहुत से अच्छे लोग भी मिले। वह कहते हैं, “कभी साइकिल का टायर पंचर हुआ, तो कहीं पर तबीयत भी खराब हुई। लेकिन, लोगों की मुस्कान और उनकी अच्छाई, मुझे हमेशा आगे बढ़ने का हौसला देती रही।”
यात्रा के दौरान, अलग-अलग शहरों में लोगों ने अपने-अपने तरीकों से उनकी मदद की। एक जगह किसी ने उन्हें हेल्मेट खरीदकर दिया, तो कुछ लोगों ने उनकी आर्थिक मदद भी की। वह कहते हैं, “मैं सुबह अपनी यात्रा शुरू करता था और शाम को चार बजे तक जिस भी शहर या कस्बे में पहुंचता, वहां रात को ठहरने की जगह ढूंढता था। मैं ऐसी जगह ढूंढता था, जहां पर चाय बेच सकूँ। मैं रात को कभी पेट्रोल पंप, तो कभी किसी होटल के बाहर अपना टेंट लगाकर सो जाता था। मनाली में एक परिवार ने तो मुझे न सिर्फ अपने घर में ठहरने दिया, बल्कि खाना भी खिलाया।”
लोगों की मदद के अलावा, वह खुद भी चाय बेचकर पैसे कमाते रहे। निधिन कहते हैं कि किसी-किसी जगह तो वह 600-700 रुपए तक भी कमा लेते थे। इन्हीं पैसों से वह खाना-पीना और बाकी के जरूरी सामान खरीदते थे। ठंडे इलाकों के लिए उन्होंने यात्रा में ही अपने लिए कुछ गर्म कपड़े भी खरीदें। उन्होंने कहा कि मुश्किलें चाहे जितनी आईं या साइकिल चलाने से उनका शरीर चाहे जितना दुखा, लेकिन उन्होंने कभी भी रुकने या वापस लौटने के बारे में नहीं सोचा। उन्हें विश्वास था कि वह एक दिन कश्मीर जरूर पहुंचेंगे।
जब निधिन कश्मीर पहुंचे, तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। वह बताते हैं कि कश्मीर पहुंचने पर, उनकी मुलाकात एक आर्मी ऑफिसर से हुई। वह निधिन से मिलने के लिए अपनी गाड़ी से उतरे और उन्हें गले लगाया। साथ ही, खाने-पीने का सामान भी दिया। वह कहते हैं, “मुझे बाद में किसीसे पूछने पर पता चला कि वह ऑफिसर और कोई नहीं, बल्कि लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा थे। इस पूरी यात्रा के अनुभव को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता हूँ। मैं वापस भी साइकिल पर लौटना चाहता था, लेकिन दिल्ली पहुंचते-पहुंचते कोविड-19 के मामले बहुत बढ़ गए और लॉकडाउन होने लगा। इसलिए, एक नेक इंसान की मदद से मैं एक ट्रक में बैठकर दिल्ली से त्रिशूर पहुंचा।”
निधिन का सपना है कि वह एक फिल्ममेकर और एक्टर बनें। इसलिए वह देशभर में घूमना चाहते हैं, ताकि अलग-अलग हिस्सों की खूबसूरती और संस्कृति को जान सकें। उनका मानना है कि उनका यह अनुभव, उन्हें एक बेहतर फिल्ममेकर बनने में मदद करेगा। अच्छी बात यह है कि उनकी कहानी सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद, कुछ मलयाली फिल्म डायरेक्टर्स ने उनसे संपर्क भी किया है। उन्हें उम्मीद है कि उनका सपना बहुत जल्द पूरा होगा। साथ ही, वह अपने जीवन में एक बार माउंट एवेरेस्ट पर भी जाना चाहते हैं।
यात्रा के शौक़ीन लोगों के लिए, अंत में वह बस यही सलाह देते हैं कि अगर आप घूमना चाहते हैं, तो खुद को रोकिए मत! जरूरी नहीं कि सभी चीजें अच्छी प्लानिंग से ही हों। कभी-कभी हमें अपने आप पर भरोसा करके, जो दिल में है वह कर देना चाहिये। क्योंकि, फिर कुछ अच्छा हो या बुरा, आपको उससे अनुभव तो मिलेगा। और जीवन का तो दूसरा नाम ही अनुभव है।
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संपादन – प्रीति महावर
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