प्रकृति के अनुकूल घरों के बारे में धीरे -धीरे लोगों की जागरूकता बढ़ रही है। आज बहुत से लोग इको फ्रेंडली तरीकों से घर बनवाना चाहते हैं। लेकिन समस्या यह है कि बहुत से लोगों के घर पहले से ही बने हुए हैं और उनके लिए यह सम्भव नहीं कि वह घर को तोड़कर फिर से नया घर बनाएं। इस समस्या का एक हल है, जो बेंगलुरु के प्रदीप कृष्णमूर्ति और उनके परिवार ने अपनाया है। आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं।
प्रदीप ने अपने पुराने घर की मरम्मत कराकर, इसी के ऊपर इको फ्रेंडली तरीकों से एक घर बनवाया है। अपने इस नए घर में रहते हुए प्रदीप और उनका परिवार पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली जीने की कोशिश कर रहा है।
39 वर्षीय प्रदीप बताते हैं कि उन्होंने लगभग 15 सालों तक आईटी इंडस्ट्री में काम किया है। लेकिन अब वह कृषि क्षेत्र में काम कर रही एक कंपनी से जुड़े हुए हैं। वहीं, उनकी पत्नी अश्विनी भी बायोटेक क्षेत्र में काम करती थीं। लेकिन अब वह मेकअप आर्टिस्ट का काम कर रहीं हैं। इस दंपति ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए अपने इको फ्रेंडली घर और जीवनशैली के बारे में विस्तार से बताया।
पुराने घर के ऊपर ही बनवाया इको फ्रेंडली घर
प्रदीप ने बताया, “हमारा घर दो मंजिला है, जिसमें ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर है। ग्राउंड फ्लोर मेरे माता-पिता ने साल 1998 में बनवाया था। इसके बाद 2015 में हमने फर्स्ट फ्लोर बनवाया। इसे बनवाने से पहले ही हमने तय कर लिया था कि हम प्रकृति के अनुकूल निर्माण तरीके अपनाएंगे। हमारी कुल जगह 2400 वर्ग फ़ीट है और पहला फ्लोर 2000 वर्ग फ़ीट में बना है। ग्राउंड फ्लोर की मरम्मत, पहले फ्लोर का निर्माण और इंटीरियर का खर्च लगभग 48 लाख रुपए आया था। इसमें सिर्फ पहले फ्लोर के निर्माण की बात करें तो लगभग 30 लाख रुपए खर्च हुए।” उनके घर की डिजाइनिंग ‘Tropic Responses’ टीम ने किया।
पहले फ्लोर पर बने अपने घर को उन्होंने ‘भूमि’ नाम दिया है। इसमें तीन बैडरूम, दो बाथरूम, एक रसोई और आंगन है। उन्होंने कहा कि घर के निर्माण के समय से ही उनकी कोशिश यह रही कि घर में प्राकृतिक रौशनी और हवा भरपूर मात्रा में आये। घर के निर्माण में उन्होंने सामान्य ईंटों की जगह हाथ से बनी और धूप में सूखी CSEB (कंप्रेस्ड स्टेब्लाइज़्ड अर्थ ब्लॉक) का इस्तेमाल किया है।
हाथ से लगभग 15000 ब्लॉक बनाने में दो हफ्तों का समय लगा। इन ब्लॉक को बनाने के बाद, इन्हें किसी भट्टी में नहीं, बल्कि 30 दिनों तक धूप में सुखाया गया। उनका कहना है कि ये प्राकृतिक, सांस लेने वाली ईंटें हैं। इनसे बने घरों के अंदर का तापमान सभी मौसम में संतुलित रहता है।
प्रदीप कहते हैं, “हमने घर बनाने के लिए ज्यादातर इको फ्रेंडली रॉ मटीरियल का इस्तेमाल किया है। ज्यादातर निर्माण सामग्री स्थानीय इलाकों से आई। अगर बात रॉ मटीरियल की कीमत की करें तो यह निश्चित रूप से सामान्य तरीके से बनने वाले घरों के रॉ मटीरियल जैसे भट्टी में सिकी ईंटें, सीमेंट और रेत आदि से सस्ता है। लेकिन बात जब इको फ्रेंडली तकनीक से घर के निर्माण की आती है तो लेबर का खर्च बढ़ जाता है। क्योंकि कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों को ये तरीके नहीं आते हैं और उन्हें सिखाना भी पड़ता है। हमारी भी लेबर का खर्च ज्यादा था और रॉ मटीरियल का कम।”
सीमेंट का किया कम से कम इस्तेमाल
प्रदीप और अश्विनी आगे कहते हैं कि उन्होंने अपने घर में सीमेंट का प्रयोग कम से कम किया है। घर की दीवारें CSEB ब्लॉक से बनी हैं। दीवारों की चिनाई के लिए भी सिर्फ सीमेंट की बजाय, मिट्टी, रेत, चूना और कम मात्रा में सीमेंट को मिलाकर मोर्टार तैयार किया गया था। इसके अलावा, वे बताते हैं कि उन्होंने दीवारों पर अंदर या बाहर, किसी भी तरफ प्लास्टर नहीं करवाया है। क्योंकि उन्होंने जो ब्लॉक इस्तेमाल किए हैं, उन पर किसी प्लास्टर की जरूरत नहीं है। इसके अलावा, छत और फर्श भी अलग तरीकों से बनाये गए हैं।
उन्होंने बताया, “कमरों में फर्श के लिए जैसलमेर चूनापत्थर और कोटा चूनापत्थर का इस्तेमाल किया है। वहीं, आंगन के लिए, हाथ से बनने वाली इको फ्रेंडली आथनगुडी टाइल्स (Athangudi Tiles) का इस्तेमाल किया गया है। घर के बाहर की जगहों पर सादराहल्ली पत्थर (Sadarahalli Stone) का प्रयोग किया गया है। ये सभी सामग्री पर्यावरण के अनुकूल हैं। छत का निर्माण ‘फिलर स्लैब तकनीक‘ से हुआ है। इसमें आरसीसी के प्रयोग को कम करने के लिए किसी ‘फिलर’ का इस्तेमाल किया जाता है।”
उन्होंने ‘फिलर’ के लिए मिट्टी की टाइल, कटोरे और शंकुकार गमलों का इस्तेमाल किया है। ‘फिलर स्लैब तकनीक’ से बनी छतें घर के अंदर तापमान को संतुलित रखती हैं। गर्मियों के मौसम में भी घर में ठंडक रहती है।
पुरानी लकड़ी का किया है इस्तेमाल
प्रदीप कहते हैं कि उन्होंने घर में ज्यादा से ज्यादा पुरानी लकड़ी का इस्तेमाल किया है। जैसे उनके घर में आठ फ़ीट के दो खम्बे है, जो दिखने में बहुत ही खूबसूरत हैं। ये खम्बे लकड़ी से बने हुए हैं। लेकिन इन्हें बनवाने के लिए नयी लकड़ी का इस्तेमाल नहीं किया है। बल्कि उन्होंने कटहल की लकड़ी से बने इन 60 साल पुराने खम्बों को खरीदकर, इन्हें नया रूप दिया गया। आज कोई भी इन खम्बों को देखकर नहीं कह सकता है कि ये 60 साल पुराने हैं। इसी तरह उन्होंने पुराने फर्नीचर को खरीदकर नया रूप दिया है।
“हमने पुराने स्टाइल से बने मेज और सोफे खरीदे और इन्हें ठीक कराकर प्रयोग में ले रहे हैं। हमारी सीढ़ियों की रेलिंग भी इसी तरह तैयार की गयी है,” उन्होंने कहा। इसके अलावा, उन्होंने अपने घर को वातानुकूलित रखने के लिए भी कई अलग तरीके अपनाये हैं। जैसे छत की ऊंचाई 10 फ़ीट न होकर साढ़े 11 फ़ीट है। साथ ही, घर में बड़े दरवाजे और खिड़कियां हैं। जिनसे ताजा हवा का प्रवाह बना रहता है। जिस कारण घर ठंडा रहता है। उनका दावा है कि उन्हें दिन के समय कोई लाइट इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ती है। साथ ही, साल के ज्यादातर महीनों में उनके घर में कोई पंखा या कूलर भी इस्तेमाल नहीं होता है।
प्रकृति के अनुकूल जीवनशैली
अश्विनी कहती हैं कि उन्होंने सिर्फ अपने घर को प्रकृति के अनुकूल नहीं बनाया है। बल्कि इसमें रहते हुए उनका परिवार एक सस्टेनेबल लाइफस्टाइल जीने की कोशिश कर रहा है। “हम जितना हो सके, उतना प्लास्टिक और रसायनिक चीजों का इस्तेमाल करने से बचते हैं। इसकी जगह कोशिश कपड़े या कागज की चीजें इस्तेमाल करने की रहती है। कुछ चीजें जैसे हम नहाने और कपड़े धोने के लिए साबुन घर पर ही बना लेते हैं। इसके अलावा, हमारे घर में ज्यादातर एलईडी लाइट्स हैं और पंखा चलाने की भी कम से कम जरूरत पड़ती है,” उन्होंने बताया।
उनकी जीवनशैली की सबसे प्रेरक बात यह है कि वह गैस और पानी की बचत कर रहे हैं। उनके घर में बायो गैस यूनिट भी है, जिससे उन्हें हर दिन लगभग तीन घंटे की गैस मिलती है। इस गैस का इस्तेमाल रसोई में खाना पकाने और अन्य कामों के लिए किया जाता है। बायोगैस यूनिट से गैस के अलावा, उन्हें खाद भी मिलती है। इस जैविक खाद का प्रयोग वे अपने बगीचे में करते हैं। अश्विनी और प्रदीप का कहना है कि बायो गैस यूनिट में उनके घर का सभी गीला कचरा जाता है।
बायोगैस के कारण उनके घर में एक गैस सिलिंडर लगभग आठ महीने तक चलता है। इसी तरह, उनका परिवार हर दिन 500 लीटर पानी की बचत भी कर रहा है। इसका कारण है ‘ग्रे वाटर रीसाइक्लिंग।’ प्रदीप बताते हैं कि घर से सिर्फ टॉयलेट का पानी बाहर जाता है। इसके अलावा, रसोई और बाथरूम में इस्तेमाल होने वाले पानी को फ़िल्टर करके, वे बागवानी, साफ-सफाई और टॉयलेट में फ्लश के लिए इस्तेमाल करते हैं। इस तरह से हर दिन वे लगभग 500 लीटर पानी की बचत कर रहे हैं। नगर निगम पर पानी के लिए उनकी निर्भरता 50% तक कम हो गयी है।
घर की छत पर लगाया बगीचा
अपने घर की छत पर वे अलग-अलग तरह की मौसमी सब्जियां और फल उगा रहे हैं। मौसमी सब्जियों में तोरई, टमाटर, खीरा, आलू, चकुंदर, मूली, पत्तागोभी, फूलगोभी, मिर्च, शिमला मिर्च और भिंडी आदि शामिल हैं। फलों में उन्होंने पपीता, अमरुद, अनार, मौसम्बी, नींबू, केला, अनानास, पैशन फ्रूट, और ड्रैगन फ्रूट आदि लगाए हुए हैं। जैस्मिन, गेंदा, गुलाब और गुलदहल के फूल भी उनकी छत पर लगे हुए हैं।
एकदम से 100% सस्टेनेबल लाइफस्टाइल जीना मुश्किल है। लेकिन प्रदीप और उनका परिवार अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है। प्रदीप कहते हैं, “इस घर में रहते हुए मुझे हमेशा एक सकारात्मक ऊर्जा का अहसास होता है। शायद इसलिए अब मैं अपने आसपास हर चीज में सकारात्मकता ढूंढ लेता हूँ। कहते हैं न कि आप जैसा सोचते हैं, आपके आसपास भी वैसे ही चीजें होती हैं। हमने अपना इको फ्रेंडली घर बनवाया हुआ है और अब हम कहीं घूमने भी जाते हैं तो अपने आप ही ऐसे होटल या रिसोर्ट तक पहुँच जाते हैं, जो इको फ्रेंडली हैं।”
उनका कहना है, “आज के जमाने में हम अपनी पुरानी पीढ़ी से कुछ नहीं सीखना चाहते हैं। जबकि सच यह है कि हमें उनके ज्ञान और अनुभव से सीखना चाहिए कि हम कैसे पर्यावरण के अनुकूल एक बेहतर जीवन जी सकते हैं। हमने अपने माता-पिता से बहुत कुछ सीखा है जैसे कचरे का प्रबंधन करना, घर में ही साग-सब्जियां उगा लेना। पानी की बचत करना आदि। हमें ख़ुशी है कि अब हम ये सब अपने बेटे को सिखा पा रहे हैं।”
यकीनन, प्रदीप और उनका परिवार हम सबके लिए प्रेरणा हैं, जो आज के आधुनिक जीवन में प्रकृति के करीब रहने की प्रेरणा दे रहे हैं।
संपादन- जी एन झा
तस्वीर साभार: प्रदीप, अश्विनी और ट्रॉपिक रेस्पॉन्सेस
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