“हम हमेशा से पर्यावरण के प्रति बहुत ही सजग रहे हैं। इसलिए 2017 में जब हमने मैंगलोर में घर बनवाने का फैसला किया तो सोचा कि घर ऐसा हो जिससे हमारा कार्बन फुटप्रिंट कम हो। क्योंकि घर निर्माण के दौरान और इसमें रहने के दौरान अक्सर लोग पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। जो हम बिल्कुल नहीं चाहते थे,” यह कहना है मानस मल्लिक और जेनेट डी’कुन्हा का। इस दंपति ने साल 2017 में मैंगलोर में अपने परिवार के लिए इको फ्रेंडली घर का निर्माण कराया और साल 2018 में यह बनकर तैयार हुआ, जिसका नाम है ‘उर्वी।’
मानस और जेनेट दोनों ही आईटी प्रोफेशनल हैं और साथ ही, पर्यावरण प्रेमी भी। प्रकृति के प्रति उनका लगाव न सिर्फ उनके घर बल्कि उनकी जीवनशैली में भी दिखता है। उन्होंने बताया, “हमारी कोशिश अपनी जीवनशैली को भी प्लास्टिक और रसायन मुक्त बनाने की रही है। इसलिए जब भी हम घर के निर्माण के बारे में बात करते थे तो हमेशा यही चाहते थे कि हमारा घर भी इको फ्रेंडली हो। पहले ही हमारे आसपास इतना कुछ है जिससे प्रकृति को हानि पहुंच रही है। इसलिए हम बस अपनी तरफ से एक छोटा-सा कदम उठाना चाहते थे।”
2600 वर्गफीट के एरिया में बना यह इको फ्रेंडली घर जेनेट और मानस की अलग सोच का परिणाम है। जिसका निर्माण ‘Build A Home‘ कंपनी ने किया है। उनके आर्किटेक्ट, अभिजीत ने बताया, “इस घर के निर्माण में लगभग 57 लाख रुपए खर्च हुए। जिसमें आर्किटेक्चर, डिज़ाइन और बिजली व प्लंबिंग के काम के साथ निर्माण खर्च शामिल है। इसी कीमत में अन्य चीजें जैसे प्रशासन से प्लान सैंक्शन, सर्टिफिकेट, घर का इंटीरियर, सौर पैनल, सभी वाटर सिस्टम, लैंडस्केपिंग आदि शामिल हैं। सामान्य घरों के निर्माण के मुक़ाबले यह कीमत बहुत से लोगों को ज्यादा लगती है। लेकिन अगर आगे का सोचकर देखें तो यह घर सामान्य घरों से काफी बेहतर है और इसकी जिंदगी आराम से 100 साल है।”
एरिया को ध्यान में रखते हुए कराया निर्माण
मानस और जेनेट कहते हैं कि मैंगलोर ऐसी जगह है, जहां बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है या बहुत ज्यादा बारिश होती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए इस घर का निर्माण कराया गया है। ताकि गर्मी के मौसम में घर में ठंडक रहे और हमें एसी पर निर्भर न होना पड़े। दूसरा, ज्यादा बारिश होने की स्थिति में घर में सीलन की समस्या न हो। घर का निर्माण कराते समय इन दोनों पहलुओं पर काम किया गया। घर के निर्माण में सीमेंट और स्टील का प्रयोग कम से कम हुआ। सामान्य घरों के निर्माण में लगने वाली सामग्री जैसे सामान्य ईंटें, प्लास्टर, आरसीसी आदि की जगह इको फ्रेंडली निर्माण सामग्री उपयोग में ली गयी।
“हमारे घर में चार बेडरूम, चार बाथरूम, एक म्यूजिक रूम, किचन कम डाइनिंग एरिया, दो लिविंग रूम और एक आंगन है। हमारे घर की लगभग 40% बिजली की आपूर्ति सौर पैनल से होती है। साथ ही, हमारे घर में एसी नहीं है और गर्मियों में घर के अंदर का तापमान, बाहर के तापमान से लगभग 5 डिग्री कम ही रहता है,” उन्होंने कहा। मानस और उनके बेटे को म्यूजिक का शौक है। इसलिए उन्होंने घर में खासतौर पर एक म्यूजिक रूम बनवाया। उनका यह कमरा इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इसके फर्श के लिए इस्तेमाल की हुई विनाइल सीडीज को फिर से प्रयोग में लिया गया है।
मानस ने बताया, “काम के सिलसिले में हम दोनों लंदन में रहते हैं। लेकिन हमारा परिवार इसी घर में रहता है। हम दोनों भी छुट्टियों में यहां आ जाते हैं। अभी हम सब यहीं हैं। इस घर में रहते हुए हम सब अपने आप को प्रकृति के करीब महसूस करते हैं। खासकर कि हमारे माता-पिता, जो ढलती उम्र में हैं। उनके लिए यह घर बहुत ही आरामदायक है। क्योंकि यहां कुछ भी आर्टिफिसियल नहीं है, इसलिए उन्हें ऊब नहीं होती है। घर की प्राकृतिक दीवारें और ठंडक उन्हें हमेशा ताजगी का अहसास कराती हैं।”
इको फ्रेंडली रॉ मटीरियल का इस्तेमाल
सबसे पहले बात आती है ईंटों की। इस घर के निर्माण में सामान्य ईंटों की बजाय ‘पोरोथर्म ईंट‘ (Porotherm Bricks) का इस्तेमाल किया गया है। पोरोथर्म ईंटें मिट्टी से बनी हुई ‘खोखली ईंट’ होती हैं और यह पारम्परिक ईंट से हल्की होती है। इनका थर्मल इंसुलेशन भी ज्यादा होता है। साथ ही, ये मजबूत होती हैं और इनकी आग प्रतिरोधी क्षमता भी ज्यादा होती है। घर की सभी दीवारें इन्हीं ईंटों से बनी हैं और इनके ऊपर कोई सीमेंट का प्लास्टर नहीं किया गया है। इसलिए आप कह सकते हैं कि इस घर की दीवारें भी सांस लेती हैं।
“पोरोथर्म ईंटें इस्तेमाल करने की वजह से हमारा घर बहुत ठंडा रहता है। अगर आप इस इलाके में देखेंगे तो सभी घरों में आपको एक या दो एसी मिलेंगे पर हमारे घर में कोई एसी नहीं है। कई बार तो पंखा चलाने की भी जरूरत नहीं पड़ती है,” मानस ने कहा। घर के फर्श के लिए उन्होंने आथनगुडी टाइल्स और कहीं-कहीं रीसाइकल्ड लकड़ी का इस्तेमाल किया है। इस दंपति का कहना है कि उनके घर में स्टील और लकड़ी का जो भी काम हुआ है, उसके लिए उन्होंने रीसायकल चीजें इस्तेमाल की हैं।
उनके घर के खिड़की-दरवाजे और गेट, सभी रीसाइकल्ड मटीरियल से बने हैं। “हमने पुराने घर, जिन्हें तोड़कर दोबारा बनाया जाता है, वहां से लकड़ी के खिड़की-दरवाजों को खरीदकर अपने घर में इस्तेमाल किया है। हम नहीं चाहते थे कि इस काम के लिए एक भी पेड़ काटा जाए और हमें ख़ुशी है कि ऐसा ही हुआ। लोगों को लगता है कि रीसाइकल्ड चीजें ज्यादा मजबूत नहीं होती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि लकड़ी हो या स्टील, इन्हें रीसायकल करने से पहले अच्छे से चेक किया जाता है कि ये कितना चलेंगे और उसके बाद ही इस्तेमाल में लिया जाता है,” उन्होंने कहा।
वेंटिलेशन पर दिया गया जोर
मानस और जेनेट कहते हैं कि अपने घर में ताज़ी हवा और प्राकृतिक रौशनी किसे अच्छी नहीं लगती है। इसलिए उनका एक फोकस इस बात पर भी रहा कि घर में ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक रौशनी आये, जिससे कि दिन के समय उनकी निर्भरता ट्यूबलाइट्स पर न हो। साथ ही, घर वातानुकूलित भी रहे। इसके लिए, उन्होंने जालियों का इस्तेमाल किया है। खासकर कि सीढ़ियों के पास और आंगन में। प्राकृतिक रौशनी के लिए उन्होंने स्काईलाइट लगवाई है, जिसमें इस्तेमाल होने वाला ग्लास (कांच) रीसाइकल्ड है और इसके ऊपर उन्होंने वेंटिलेशन टरबाइन भी लगवाया है।
वेंटिलेशन टरबाइन से घर के अंदर की सभी गर्म हवा बाहर निकल जाती है और खिड़कियों व जालियों से ताजा हवा आती रहती है। जिससे घर के अंदर कभी भी घुटन या गर्मी नहीं होती है। जिसका सबसे ज्यादा फायदा उनके माता-पिता को हुआ है।
इस घर के बारे में जेनेट के माता-पिता ओलविन और सेलेस्टिन कहते हैं, “सामान्य तरीकों से बने ज्यादातर घर डिब्बे की तरह होते हैं, जिनमें न तो ताजी हवा का प्रवाह रहता है और न ही प्राकृतिक रौशनी का। पहले हम जितने भी घरों में रहे हैं, सबमें ज्यादातर ताजी हवा और रौशनी की समस्या थी। जिस कारण कई बार हमें घुटन होने लगती थी। लेकिन इस घर में ऐसी कोई समस्या नहीं है।”
अब उन्हें लगता है कि मैंगलोर जैसे जगह पर ऐसा घर बना पाना जो प्राकृतिक रूप से ठंडा और आरामदायक रहे, यह किसी उपलब्धि से कम नहीं है। घर की छत के लिए उन्होंने फिलर स्लैब तकनीक का इस्तेमाल किया है। जिसमें मिट्टी के कटोरे उपयोग में लिए गए। इसके अलावा उन्होंने ‘फॉल्स सीलिंग’ के लिए बांस का प्रयोग किया है। मानस कहते हैं कि इस इलाके में बहुत ज्यादा बारिश होती है, इसलिए उन्होंने छत पर पॉलीकार्बोनेट शीट लगवाई है ताकि किसी तरह की कोई सीलन न हो।
बिजली के साथ-साथ बचा रहे हैं पानी भी
पानी की ज्यादा से ज्यादा बचत करने के लिए उन्होंने मैंगलोर में सबसे जयादा उपलब्ध साधन को इस्तेमाल में लिया है और वह है बारिश। इस इलाके में बारिश खूब होती है। इसलिए उन्होंने घर में 50 हजार लीटर की क्षमता का अंडरग्राउंड टैंक बनवाया है, जिसमें बारिश का पानी इकट्ठा होता है। कई महीनों तक उनका परिवार अपने रोजमर्रा के कामों के लिए बारिश के पानी का इस्तेमाल करता है। इसके अलावा, घर में छोटे-छोटे रिचार्ज पिट भी बनाए गए हैं ताकि भूजल स्तर भी बढ़ने में मदद हो।
उनके घर में ‘ग्रे वाटर रीसाइक्लिंग सिस्टम’ भी है, जिससे उनके घर में इस्तेमाल होने वाला लगभग 50% पानी फ़िल्टर होकर टॉयलेट फ्लश के लिए फिर से इस्तेमाल किया जा रहा है। वहीं बात अगर बिजली की करें तो उन्होंने घर में सौर पैनल और सौर गिजर लगवाए हैं, जिस कारण उनके बिजली बिल में लगभग 40% तक की बचत हो रही है। उन्होंने आगे बताया कि वे एकदम रसायनमुक्त ज़िन्दगी जी रहे हैं। उनका परिवार किसी भी तरह के प्लास्टिक आइटम या लैदर की चीजें इस्तेमाल नहीं करता है। यहां तक कि उनके बेटे के लिए भी वे कभी प्लास्टिक के खिलौने नहीं लेते हैं। उनके घर में रसायनयुक्त उत्पाद भी कभी नहीं आते हैं। उनकी पूरी कोशिश है कि जितना हो सके प्रकृति के अनुकूल जीवन जिया जाए।
दूसरे लोगों के लिए वह सिर्फ यही सलाह देते हैं कि इको फ्रेंडली घर बनवाना एक समय पर आपको महंगा लग सकता है। लेकिन जब आप रहना शुरू करते हैं तो आपको पता चलता है कि आप न सिर्फ पर्यावरण को बचा रहे हैं बल्कि आपकी अपनी जीवनशैली में भी खर्च कम हुए हैं। इन घरों को सामान्य घरों की ही तरह रख-रखाव की जरूरत होती है और रहने के लिए ये बेस्ट हैं।
अगर आप इस घर के बारे में या इको फ्रेंडली तरीकों से बनने वाले घरों के बारे में अधिक जानकारी लेना चाहते हैं तो buildwithus@buildahome.in पर ईमेल कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
तस्वीर साभार: मानस मल्लिक और Build A Home
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