शहर की भागती-दौड़ती ज़िंदगी से अक्सर लोगों को ऊब होने लगती है और इसलिए वे कुछ दिन प्रकृति के बीच सुकून से बिताना चाहते हैं। इसके लिए बहुत से लोग या तो ट्रेवलिंग के लिए जाते हैं या फिर वे खुद अपने लिए कोई जगह तैयार करते हैं, जहां बीच-बीच में जाकर वे छुट्टियां बिता सकें। कुछ ऐसा ही काम केरल के शानवास खान ने किया है। उन्होंने अपने परिवार के लिए एक इको-फ्रेंडली फार्म हाउस बनवाया है, जहां वह छुट्टियां बिताने जाते हैं।
यह फार्म हाउस त्रिशूर के पालक्कड़ इलाके में है। शानवास ने बताया कि पालक्कड़ के कैलियाड में उनके खेत हैं, जिसकी देखभाल स्थानीय किसान करते हैं। लेकिन बीच-बीच में वह और उनका परिवार अपने खेतों पर जाता रहता है। उन्होंने बताया, “दो साल पहले हमने तय किया कि खेत में अपना एक फार्म हाउस भी होना चाहिए। ताकि बच्चे यहां प्रकृति के बीच अच्छा समय बिता सकें। साथ ही, जो लोग हमारे खेतों की देखभाल करते हैं, उनके लिए भी रहने का अच्छा ठिकाना हो जाएगा और वे लोग यहां रहते हुए, आराम से खेतों की देखभाल कर सकेंगे।”
उन्होंने बताया कि वह बजट फ्रेंडली होने के साथ-साथ, ऐसा फार्म हाउस बनवाना चाहते थे, जो प्रकृति के करीब हो। पालक्कड़ बहुत ही गर्म इलाका है। इसलिए उनकी कोशिश ऐसा घर बनवाने की थी, जो इस इलाके में रहने के लिए आरामदायक और प्राकृतिक रूप से ठंडा हो। उन्होंने फार्म हाउस बनाने का काम Sustainable Earthen Habitats कंपनी को दिया।
जमीन से निकली मिट्टी का किया इस्तेमाल
शानवास कहते हैं कि इस फार्म हाउस में वह खुद को हमेशा प्रकृति के करीब पाते हैं, क्योंकि घर के अंदर मिट्टी की ताजगी है और बाहर हरियाली ही हरियाली।
उन्होंने बताया कि उनका फार्म हाउस 710 वर्गफीट जगह में बना हुआ है। इस फार्म हाउस में दो फ्लोर हैं, ग्राउंड फ्लोर और पहला फ्लोर। इन दोनों फ्लोर को इस तरह से बनाया गया है कि अगर चाहें तो इन्हें दो अलग-अलग घरों की तरह इस्तेमाल में लिया जा सके। पहले फ्लोर पर जाने का रास्ता बाहर से है। ग्राउंड फ्लोर पर एक सिटआउट, लिविंग रूम, बेडरूम, किचन और कॉमन बाथरूम है। वहीं, पहले फ्लोर पर एक लिविंग रूम, एक बेडरूम, अटैच बाथरूम, पैंट्री और एक बालकनी है।
शानवास ने बताया, “हम चाहते थे कि फार्म हाउस के निर्माण में ज्यादा से ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल रॉ मटेरियल का इस्तेमाल हो। साथ ही, हम इसे किफायती भी रखना चाहते थे, ताकि निर्माण हमारे बजट में ही पूरा हो जाए। इसलिए घर के निर्माण के लिए आसपास के इलाकों से ही रॉ मटेरियल लिए गए। निर्माण के लिए मिट्टी, चूना, लैटेराइट पत्थर, सीएसइबी ब्लॉक, मैंगलोर टाइल्स और बहुत ही कम मात्रा में सीमेंट का प्रयोग हुआ है।”
ग्राउंड फ्लोर पर बने बेडरूम और लिविंग रूम की बाहरी दीवारों के लिए ‘Rammed Earth Technology‘ का इस्तेमाल हुआ है। इस तकनीक में प्राकृतिक सामग्री जैसे मिट्टी, रेत, बजरी आदि का इस्तेमाल करके दीवारें तैयार की जाती हैं। उन्होंने बताया कि इस तकनीक का इस्तेमाल घर की उन दीवारों को बनाने के लिए हुआ, जिन पर धूप सबसे ज्यादा पड़ती है। क्योंकि इस तकनीक से बनी दीवारें सूरज की गर्मी को घर के अंदर नहीं जाने देतीं। इस काम के लिए उन्होंने घर की जमीन से ही निकली हुई मिट्टी का इस्तेमाल किया।
नहीं पड़ती कूलर या एसी की जरूरत
शानवास ने बताया कि ग्राउंड फ्लोर पर बाकी दीवारें लैटराइट पत्थरों से बनाई गई हैं। इनकी चिनाई के लिए सीमेंट की जगह मिट्टी, चूना जैसी प्राकृतिक चीजों को मिक्स करके मोर्टार बनाया गया। इसके अलावा घर के अंदर की तरफ, इन दीवारों पर सुर्खी और चूने का प्लास्टर किया गया है। जबकि बाहर की तरफ प्लास्टर के लिए मिट्टी का ही प्रयोग हुआ है। हालांकि, रसोई और बाथरूम में उन्होंने सीमेंट का प्लास्टर किया है, क्योंकि इन जगहों पर ज्यादा नमी रहती है। सुर्खी बनाने के लिए, भट्ठी में सिंकी मिट्टी की ईंटों को पीसकर मिक्सचर बनाया जाता है।
उन्होंने कहा, “ग्राउंड फ्लोर के बाद अगर पहले फ्लोर की बात करें, तो इसके लिए हमने साइट पर ही उपलब्ध मिट्टी से CSEB ब्लॉक बनवाए। इन ब्लॉक्स से ही पहले फ्लोर की दीवारों का निर्माण हुआ है और चिनाई के लिए मिट्टी और कम मात्रा में सीमेंट को मिलकर मोर्टार बनाया गया। दीवारों को बाद में मिट्टी के गारे से पेंट किया गया। इस फार्म हाउस की सभी दीवारें ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक सामग्री का इस्तेमाल करके बनाई गई हैं।”
उन्होंने इस फार्म हाउस में कोई एसी या कूलर नहीं लगवाया हुआ है। लेकिन फिर भी इसके अंदर काफी ठंडक रहती है। शानवास के बेटे अब्दुल कहते हैं, “अक्सर मैं और मेरा भाई अपने दोस्तों के साथ फार्म हाउस पर छुट्टियां बिताने जाते हैं। हमारा फार्म हाउस खेतों के बीच है और यहां गर्मियों में भी एसी की जरूरत नहीं पड़ती है। इसे इस तरीके से बनाया गया है कि घर के अंदर हमेशा प्राकृतिक हवा मिलती रहे। घर की सभी खिड़कियां बड़ी हैं और इस तरह से बनाई गई हैं कि घर वातानुकूलित रहे। खिड़कियों को बनाने के लिए स्टील और एल्युमीनियम का इस्तेमाल किया गया है।”
मात्र 12 लाख रुपये हुए खर्च
इस घर के आर्किटेक्ट, मोहम्मद बताते हैं कि गर्म इलाके में भी इस घर के ठंडे इंटीरियर का कारण प्राकृतिक सामग्री से बनी दीवारों के साथ-साथ, घर की छत भी है। ग्राउंड फ्लोर की छत के लिए उन्होंने फिलर स्लैब तकनीक का इस्तेमाल किया। इस तकनीक में फिलर के लिए पुरानी मैंगलोर टाइल्स का इस्तेमाल हुआ है। इस तकनीक का इस्तेमाल करने से छत बनाने में सीमेंट और स्टील की जरूरत लगभग 25% तक कम हो जाती है। साथ ही, इस तकनीक से बनी छतें घर के अंदर के तापमान को भी संतुलित रखती हैं।
उन्होंने बताया, “पहले फ्लोर की छत ‘ट्रस रूफ‘ है और इसके लिए पुरानी मैंगलोर टाइल्स का इस्तेमाल किया गया है। ट्रस रूफ के नीचे सीलिंग के लिए सीमेंट फाइबर बोर्ड का इस्तेमाल किया गया है और फर्श के लिए कोटा पत्थर का इस्तेमाल किया गया है।”
पहले फ्लोर पर ‘जाली वर्क’ भी हुआ है, ताकि घर के अंदर हवा का प्रवाह बना रहे। इसके लिए टेराकोटा से बनी जालियों का इस्तेमाल किया गया है। घर के निर्माण में लकड़ी के काम के लिए ज्यादातर पुरानी लकड़ियों को प्रयोग में लिया गया।
इसकी लागत पर नहीं होता किसी को यकीन
मोहम्मद कहते हैं कि इस इको फ्रेंडली फार्म हाउस के निर्माण की कीमत मात्र 12 लाख रुपये रही। बजट को कम रख पाने का मुख्य कारण ज्यादा से ज्यादा उपलब्ध साधन, जैसे- जमीन से निकली मिट्टी और इको फ्रेंडली व किफायती रॉ मटेरियल (लेटराइट पत्थर, कोटा पत्थर, पुरानी मंगलोर टाइल्स आदि) का इस्तेमाल है।
शानवास कहते हैं कि किसी को भी फार्म हाउस को देखकर, यकीन नहीं होता कि यह मात्र 12 लाख रुपये में बना है। यह दिखने में जितना खूबसूरत है, रहने में उतना ही बढ़िया। अब उनके परिवार की लंबी छुट्टियों से लेकर बच्चों के वीकेंड तक, सब इसी फार्म हाउस में बीतते हैं।
अगर आप भी इस तरह का घर बनवाने के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो earthenhabitat@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
तस्वीर साभार: शानवास खान
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