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बिना पंखे और बिना दीवारों के इस टिन की छत के तले मिला प्रशिक्षण; आज देश के लिए जीते हैं गोल्ड!

एशियाई खेलों के करीब डेढ़ माह बाद बागपत के शूटर सौरभ चौधरी ने फिर इतिहास रच दिया। एशियाई खेलों की बड़ी कामयाबी के बाद वह घर नहीं लौटे और कड़ी मेहनत की। इसके बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और अब यूथ ओलंपिक का पदक लेकर वह अपने गांव कलीना और बिनौली की शूटिंग रेंज पर लौटेंगे। 

शियाई खेलों के करीब डेढ़ माह बाद बागपत के शूटर सौरभ चौधरी ने फिर इतिहास रच दिया। कलीना गांव का लाल बिनौली की वीर शाहमल राइफल एकेडमी में तपकर कुंदन बना और यूथ ओलंपिक में भी देश को सोना दिला दिया। एशियाई खेलों की बड़ी कामयाबी के बाद वह घर नहीं लौटे और कड़ी मेहनत की। इसके बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और अब यूथ ओलंपिक का पदक लेकर वह अपने गांव कलीना और बिनौली की शूटिंग रेंज पर लौटेंगे।

उनकी जीत ने उत्तर-प्रदेश के बाघपत ज़िले के बिनौली में वीर शाहमल राइफल क्लब की अनोखी कहानी से सबको रू-ब-रू करवाया।

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यहीं पर साल 2015 में 13 वर्षीय सौरभ ने ट्रेनिंग ली थी। सौरभ एक गन्ना-किसान के बेटे हैं। एक टिन की छाया में शुरू हुए इस राइफल क्लब के शुरुआती दौर में खिलाड़ियों को कभी बीच में ही ट्रेनिंग रोकनी पड़ती थी क्योंकि कभी-कभी तेज हवा के चलते बहुत धूल-मिट्टी उड़ती थी, जिससे उनके अभ्यास में अवरोध होता था।

अमित श्योराण (पूर्व-निशानेबाज और क्लब के मालिक) ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया, “हमारे पास कोई पंखें नहीं थे। दूसरे बच्चे गर्मियों में दोपहर में प्रैक्टिस रोक देते थे लेकिन सौरभ फिर भी अभ्यास करता रहता। वह केवल 13 साल का था और अभ्यास से पूरा पसीने में तर हो जाता लेकिन फिर भी नहीं रुकता था। किसी संत कि तरह हमेशा शांत और एकाग्र रहता था।”

उसके एक साल बाद यह क्लब पास के एक प्लाट में शिफ्ट हो गया। यह जमीन अमित को उनके एक छात्र के पिता ने दी। आज इस 15×12 के राइफल क्लब में दो पंखे हैं, जो यहां खिलाड़ियों को गर्मी से थोड़ी राहत देते हैं। दरअसल, बिनौली में गर्मियों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है।

हालांकि, 26 छात्रों के लिए यह जगह काफ़ी नहीं है, जो यहां अभ्यास करते हैं। लेकिन यह उनकी सफलता का पहला पड़ाव है। जाट, मुस्लिम और ओबीसी समुदायों से ताल्लुक रखने वाले ये खिलाड़ी ज्यादातर छोटे-किसान परिवारों से हैं।

अमित ने इस क्लब की शुरुआत साल 2011 में की थी और इसका नाम एक स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर रखा। अमित भी कभी नेशनल लेवल पर खेलना चाहते थे पर आर्थिक परेशानियों के चलते उनका सपना पूरा नहीं हो पाया।

अमित ने बताया, “मैं युवा शूटर्स की मदद करना चाहता हूँ और उन्हें वह मौके देना चाहता हूँ, जो मुझे कभी नहीं मिले।” अमित ने लगभग 2  लाख रूपये की लागत के साथ इस क्लब को शुरू किया था और हाल ही में, उन्होंने 8 लेन क्लब के लिए 4.5 लाख रूपये लगाए हैं। “हमारे पास शुरुआत के लिए केवल दो हथियार है – एयर राइफल और एयर पिस्तौल।”

अमित और उसके भाई के पास बस नौ बिघा जमीन ही है। वे हर छात्र से 500 रुपये प्रति माह फीस लेते हैं पर कुछ छात्र ऐसे भी है, जिन्हें वे निःशुल्क प्रशिक्षण देते हैं, जैसे कि 13 साल का शुभम शर्मा, जिसके पिता मेसन का काम करते हैं!

वे सभी खिलाड़ियों को अपनी तकनीक पर काम करने के लिए कहते हैं। शूटिंग के साथ-साथ छात्र के शरीर, मुद्रा आदि पर भी ध्यान दिया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय खेलों में पदक दिलाने के अलावा अमित ने अपने पुराने छात्रों को स्पोर्ट्स कोटा के माध्यम से भारतीय सेना में भी भर्ती करवाया है।

संपादन – मानबी कटोच


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