Video: कश्मीर के सैकड़ों मूक-बधिर खिलाड़ियों की आवाज़ हैं 17 साल की अर्वा इम्तियाज़

Arwa Imteyaz, Shrinagar

श्रीनगर की रहनेवाली 17 वर्षीया अर्वा इम्तियाज, आज जम्मू-कश्मीर स्पोर्ट्स एसोसिएशन के साथ रजिस्टर्ड 250 मूक-बधिर खिलाड़ियों की आवाज़ हैं। Sign Language में बात करने वाली अर्वा इन खिलाड़ियों के ग्रुप के साथ हर स्पोर्ट्स इवेंट के लिए ट्रेवेल करती हैं।

आम लोगों की तरह बोलने और सुनने वाली अर्वा इम्तियाज (Arwa Imtiyaz) में एक खास हुनर है। वह बोलने और सुनने में नाकाम लोगों से आसानी से बात कर लेती हैं और उनकी बात दूसरे लोगों तक बोलकर पहुंचा देती हैं। अर्वा का यही हुनर आज घाटी के सैकड़ों खिलाड़ियों की किस्मत संवार रहा है।

श्रीनगर की रहनेवाली 17 वर्षीया अर्वा इम्तियाज, आज जम्मू-कश्मीर स्पोर्ट्स एसोसिएशन के साथ रजिस्टर्ड, 250 मूक-बधिर खिलाड़ियों की आवाज़ हैं। Sign Language में बात करनेवाली अर्वा, खिलाड़ियों के ग्रुप के साथ हर स्पोर्ट्स इवेंट के लिए ट्रेवेल करती हैं।

सबसे खास बात यह है कि Sign Language सीखने के लिए अर्वा ने कभी कोई ख़ास प्रशिक्षण नहीं लिया। बल्कि, उन्होंने ये सब अपनी माँ से सीखा, जो खुद सुन नहीं सकतीं।

अर्वा के घर में चार लोग हैं मूक-बधिर

अर्वा (Arwa Imtiyaz) के मामा, दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए एक संस्था चलाते हैं। 11 साल की उम्र से ही, अर्वा अपने मामा के साथ उस संस्था से जुड़कर, खिलाड़ियों के लिए बतौर अनुवादक काम करने लगीं।

कश्मीरी परिवार में जन्मीं व पली-पढ़ीं अर्वा के घर में चार सदस्य ऐसे हैं, जो बोल-सुन नहीं सकते। वह बताती हैं, “यहां, 200 से 300 खिलाड़ी ऐसे हैं, जो बोल-सुन नहीं सकते। इन खिलाड़ियों की परेशानी वही समझ सकता है, जिसके साथ ऐसी समस्या हो। मेरे घर में 4 लोग ऐसे हैं, जो न तो बोल सकते हैं और न ही सुन सकते हैं। मैं इन खिलाड़ियों को भी, अपने मामू और माँ की तरह ही ट्रीट करती हूँ।”

अर्वा, इन खिलाड़ियों के साथ हर टूर्नामेंट में बतौर अनुवादक जाती हैं। उनकी इस पहल की वजह से, उन खिलाड़ियों को काफी फायदा हो रहा है, जो कभी मूक-बधिर होने के कारण किसी टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं ले पाते थे। 

माँ से मिली प्रेरणा

अर्वा ने कहा, “जो चीज़ मुझे मोटिवेट करती है, वह हैं मेरी माँ। मैंने माँ को, लोगों से अपनी बात कहने के लिए संघर्ष करते देखा है। वह जब किसी से बात करती थीं, तो लोगों को उनकी बात समझ ही नहीं आती थी। मुझे, वह चीज़ बहुत पिंच करती थी। तभी मैंने तय कर लिया था कि मुझे माँ के साथ रहना है, उनकी जुबां बननी है, और आज मैं उनकी हर बात आसानी से समझ लेती हूँ।”

उन्होंने कहा, “अभी तो सरकार भी हमारी तरफ ध्यान दे रही है। लेकिन, मैं चाहती हूँ कि इन खिलाड़ियों के लिए कोचिंग सेंटर्स बनें। अगर हम ढूंढने निकलें, तो यहां ऐसे हज़ारों बच्चे हैं और इनमें बहुत ज्यादा टैलेंट है।”

यहां देखें वीडियो

अर्वा का कहना है कि ऐसे खिलाड़ियों की मदद के लिए सबको आगे आना चाहिए। 

संपादन- जी एन झा

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