‘दुनियादारी से दूर, सिर्फ अपने शौक के साथ’, सुनने में कितना फ़िल्मी लगता है, है ना! लेकिन अगर ये ज़िंदगी का सच बन जाए तो?
मोहाली, पंजाब में रहने वाले गुरप्रीत सिंह की यही कहानी है। रोज़ी रोटी के लिए तो ये इंजिनियर हैं, लेकिन इनकी रूह की खुराक पूरी होती है बेकार के सामानों से कलाकारी कर के। शुरुआत तो आज से 40 साल के आस पास ही हो गयी थी, जब गुरप्रीत 10-15 साल के रहे होंगे और रेड लेबल टी भी इनकी कलाकारी का हिस्सा बन गयी थी। गुरप्रीत से आप सीख सकते हैं कि कैसे अगर आपकी पसंदीदा जूस की बोतल घर के किसी कोने में खाली पड़ी है या किसी ख़ास का आपके जन्मदिन पर दिया गया मग टूट गया है, तो उसे भी आप किस तरह एक नया रूप देकर घर में सजा सकते हैं।
जॉब भी और शौक भी, दोनों साथ-साथ
हममें से ज्यादा से ज्यादा लोग सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक का समय अपनी नौकरी को देते हैं। घर वापस आकर थोड़ा आराम करते हैं और अगले दिन सुबह फिर से वही रोज की दिनचर्या को फॉलो करते हैं। गुरप्रीत हम सभी से इस मामले में थोड़े अलग हैं। इनका दिन शुरू होता है सुबह 6 बजे गार्डनिंग से और फिर शाम में ऑफिस से घर आकर थोड़े आराम के बाद ये शुरू करते हैं बेकार पड़े सामानों से कलाकारी करने का अपना काम। गुरप्रीत कहते हैं वो अक्सर एक तरह के काम से जल्दी बोर हो जाते हैं। शुरू में इन्होंने फोटोग्राफी की, फिर साइकिलिंग, फिर कुछ दिन कंप्यूटर सीखा और अब ये कबाड़ में फ़ेंक दी गई चीज़ों से कलाकारी करते हैं।
ऑफिस में या पड़ोस में भी सभी जानते हैं कि गुरप्रीत को कबाड़ में पड़े सामानों से कितना लगाव है और इनके लिए ये कितने कीमती हैं। हर शनिवार और रविवार का गुरप्रीत को बेसब्री से इंतज़ार रहता है जब ये अपना पसंदीदा काम करते हैं। ये कलाकारी अपनी रोज़ी रोटी के लिए नहीं करते बल्कि अपने शौक के लिए करते हैं, पर गुरप्रीत ये भी मानते हैं कि अगर कल को उनकी जॉब नहीं रहेगी तब वो होम डेकोर में अपना बिज़नेस भी शुरू कर सकते हैं क्योंकि ऐसी चीज़ें आसानी से बिक जाती हैं। गुरप्रीत अक्सर अपनी बनाई हुई चीज़ों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर भी करते रहते हैं।
अपनी पेबल आर्ट (कंकड़ से कलाकारी की कला) को गुरप्रीत अनोखा मानते हैं क्योंकि वह इन कंकड़ों से कलाकारी करते हुए इन्हें तोड़ते नहीं हैं बल्कि ये जिस आकार में उन्हें प्रकृति से मिलते हैं, ये उसी आकार में इन्हें इस्तेमाल करते हैं। अपने घर को गुरप्रीत ने कई तरह की खूबसूरत पेबल आर्ट से सजाया हुआ है।
गुरप्रीत के लिए एक समय में नौकरी और परिवार के बीच कभी कभी पसंदीदा काम के लिए वक़्त निकालना मुश्किल भी हो जाता था हालाँकि धीरे-धीरे घर से भी सपोर्ट मिलने लगा। गुरप्रीत की पत्नी कमलदीप कौर भी उनके काम में सहयोग करती हैं।
रिसाइक्लिंग और अपसाइक्लिंग का सही इस्तेमाल
गुरप्रीत का कहना है कि हम प्लास्टिक को पूरी तरह से ना नहीं कह सकते। कहीं न कहीं हमें इनका इस्तेमाल करना पड़ता है। प्लास्टिक की बोतलों में गुरप्रीत ने अपने घर में पेड़ पौधे लगाए हुए हैं। किचन गार्डनिंग में भी इनका इस्तेमाल किया हुआ है।
गुरप्रीत बताते हैं,“एक बार किसी प्रदर्शनी में गया था। वहाँ कुल्हड़ में चाय मिल रही थी। लोग चाय पीते और कुल्हड़ को फेंक देते। मैं चाय वाले के पास गया और उन बेकार पड़े कुल्हड़ों को घर लेकर आ गया और उनका इस्तेमाल कैक्टस के छोटे पौधे लगाने के लिए किया।”
दीमक भी हैं आर्टिस्ट
गुरप्रीत का ऐसा मानना है कि लकड़ियों पर लगे दीमक सबसे अच्छे आर्टिस्ट होते हैं क्योंकि वो उन्हें एक ऐसा आकार देते हैं जो शायद हम मशीन से ना दे पाएँ। इसका सबूत आप इनकी कलाकारी में भी देख सकते हैं। गुरप्रीत अपनी पेबल आर्ट (कंकड़ से कलाकारी) की कला को कई प्रदर्शनियों में भी दिखा चुके हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने अपनी किसी भी कला को बेचा नहीं हैं। तोरई से बनाये गए लैंप शेड को गुरप्रीत अपनी सबसे अनोखी कलाकारी मानते हैं। ये उनके दिल के सबसे करीब है क्योंकि इस तोरई को गुरप्रीत ने खुद अपने घर में ही उगाया था।
कोरोना वायरस के दौरान लॉकडाउन में जब हम सब अपने घरों में रहने को मजबूर थे तब गुरप्रीत को अपने इस काम के लिए बहुत सारा वक़्त मिल गया था। इस दौरान उन्होंने अपने घर के बैकयार्ड में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाले लकड़ी के टुकड़े से एक खूबसूरत बेंच बनाया, जिसे कबाड़ समझकर फेंक दिया गया था।
स्पेशल पेबल आर्ट – मिट्टी दा बावा
गुरप्रीत की एक स्पेशल पेबल आर्ट (कंकड़ से कलाकारी) की अपनी अलग ही कहानी है। इसमें एक औरत गोद में एक बच्चे को लिए नज़र आती है। शिव कुमार बटालवी की कविता ‘मिट्टी दा बावा’ से गुरप्रीत अपनी इस पेबल आर्ट को जोड़ते हैं। इसमें एक ऐसी औरत की कहानी बताई गई है, जिसकी कोई औलाद नहीं है और इसलिए वह अपनी ममता से एक मिट्टी का बच्चा बनाती है और उसे अपना बच्चा मानकर दुलारती है। गुरप्रीत ने पेबल आर्ट का नाम भी ‘मिट्टी दा बावा’ रखा है।
गुरप्रीत कहते हैं, “मैं पूरे दिन सिर्फ कबाड़ में पड़े सामान से कलाकारी नहीं कर सकता। मुझे अपने घर के कामों में मदद करनी होती है। हमें हर चीज़ में बैलेंस बनाकर चलना होता है। पहले तो बस जिंदगी यूँ ही चली जा रही थी फिर लगा मुझे अपने लिए कुछ करना है तो एक घर बनाया और अब उस घर को सजा रहा हूँ।”
अपनी नौकरी के साथ साथ गुरप्रीत अपने शौक के लिए भी वक़्त निकाल ही लेते हैं। भागदौड़ भरी ज़िंदगी में इनके लिए सुकून है घर का वो हिस्सा जहाँ बैठ कर यह अपना शौक पूरा करते हैं, कबाड़ समझ फेंक दी गई चीज़ों से खूबसूरत होम डेकोर के सामान बनाते हैं। उनका कहना है कि अपने शौक को जीवन से जोड़ना चाहिए ताकि हम इस भागदौड़ भरी जिंदगी में अपने मन की भी बात सुन सकें।
गुरप्रीत के इस हुनर को द बेटर इंडिया सलाम करता है।
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