एक और दंगल : पिता ने देखा था ओलंपिक में मेडल जीतने का सपना, आज बेटी ने किया पूरा!

16 वर्षीय भारतीय रेसलर सिमरन अहलावत ने हाल ही में हुए यूथ ओलंपिक में सिल्वर पदक जीतकर न केवल अपने पिता राजेश अहलावत का बल्कि पुरे देश का सिर गर्व से ऊँचा किया है। आज सिमरन भारत की दूसरी लड़की पहलवान है जिसने यूथ ओलंपिक में मेडल जीता है।

“मैं भी कभी पहलवान हुआ करता था, माँ-बाप की बड़ी आस थी कि देश के लिए मेडल जीतें, पर एक चोट की वजह से ऐसा हो नहीं पाया। तो जब सिमरन हुई तब से मन में बड़ी इच्छा थी कि उसको खेलों में आगे बढ़ाना है। हम तो न कर पाए पर बेटी करेगी”

– राजेश अहलावत

राजेश अहलावत भारतीय रेसलर सिमरन अहलावत के पिता हैं। 16 वर्षीय सिमरन ने हाल ही में हुए युथ ओलंपिक में सिल्वर पदक जीतकर न केवल अपने पिता का बल्कि पुरे देश का सिर गर्व से ऊँचा किया है। सिमरन युथ ओलंपिक में मेडल जीतने वाली भारत की दूसरी महिला पहलवान है।

सिमरन का परिवार अभी दिल्ली के रोहिणी में रहता है। लेकिन मूल रूप से वे हरियाणा के झज्जर के ढांढलान (धान्धलान) गाँव से ताल्लुक रखते हैं। द बेटर इंडिया से बातचीत के दौरान राजेश अहलावत ने बताया कि उन्होंने सबसे पहले सिमरन को जिमनास्टिक के लिए तैयार किया। उन्होंने सिमरन के लिए जैसे-तैसे एक कोच ढूंढा, जो सिमरन को एक पार्क में ही जिमनास्टिक की ट्रेनिंग देते थे।

भारतीय रेसलर सिमरन अहलावत

10 साल की उम्र में ही सिमरन ने दिल्ली में जिमनास्टिक में भी कई बार पुरस्कार जीते। पर आगे बढ़ने के लिए उन्हें ट्रेनिंग में काफी दिक्कतें आने लगी। कड़ी मेहनत के बाद भी एक प्रतियोगिता में जजों की गलती की वजह से सिमरन हार गयी। लेकिन, जब उनके पिता ने और लोगों से बातचीत की तो उन्हें पता चला कि सिमरन के साथ बेईमानी हुई है। सिमरन को उस प्रतियोगिता का मेडल तो बाद में मिल गया लेकिन उनके पिता का भरोसा इस खेल से टूट गया।

राजेश अहलावत बताते हैं,

“मैंने सिमरन से पूछा कि जिमनास्टिक के अलावा कोई और खेल है क्या, जो वह करना चाहती है तो उसने तपाक से कहा ‘कुश्ती’!”

अहलावत आगे बताते हैं, “पर लड़की को कुश्ती करवाने के लिए परिवार और संबंधी, सभी ने मना किया; कहा कि कुश्ती में लड़कियों के लिए माहौल गंदा है और मैं भी उस वक़्त उन सबके सामने झुक गया। इसलिए मैंने सिमरन से कोई और खेल पूछा जो उसे पसंद हो। तो सिमरन ने बैडमिंटन खेलने के लिए कहा।”

इसके बाद राजेश अहलावत ने सिमरन को बैडमिंटन की प्रैक्टिस करवानी शुरू की। हालांकि, उन्हें शुरू में इस खेल के लिए भी कोई प्रोफेशनल ट्रेनर नहीं मिला। इसलिए उन्होंने इन्टरनेट से कुछ विडियो निकालकर सिमरन को दिखाना शुरू किया और एक पार्क में उसे प्रैक्टिस के लिए ले जाते थे। धीरे-धीरे जब सिमरन इस खेल में अच्छी हो गयी तो राजेश अहलावत ने उसे लुडलो कास्टल स्कूल में भर्ती कराया।

प्रैक्टिस करते हुए

पर यहाँ सिमरन के साथ कोच का रवैया ठीक नहीं था और उसे बैडमिंटन भी छोड़ना पड़ा। इसे किस्मत का इशारा समझकर  राजेश अहलावत ने फैसला किया कि वे सिमरन से ‘कुश्ती’ ही करवाएंगे। उन्होंने सिमरन से कहा कि कुश्ती हमारा अपना खेल है और इस पर हमारा बस है।

“शुरू में परिवार वालों ने थोड़ा ऐतराज जताया पर मैं बिल्कुल इस बात पर डटा रहा कि सिमरन अब कुश्ती ही करेगी। मुझे जो कुछ भी आता था, मैंने धीरे-धीरे सिमरन को सिखाया। लगभग 12 साल की उम्र में सिमरन ने कुश्ती करना शुरू किया और उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा,” राजेश अहलावत ने बताया।

पहले तो सिमरन के पिता ने ही उन्हें ट्रेनिंग दी। फिर उन्होंने रोहिणी के पास ही बुद्ध विहार में स्थित तेज सिंह अखाड़ा में जाना शुरू किया। यहाँ पर उन्हें प्रोफेशनल ट्रेनिंग दी जाने लगी। इसके अलावा राजेश अहलावत भी उसे अलग से प्रैक्टिस करवाते।

सिमरन अहलावत ने अपनी प्रतिद्वंदी को हराया था

ट्रेनिंग शुरू होने के कुछ वक़्त में ही सिमरन ने अपना पहला राष्ट्रीय मेडल साल 2014 में सब-जूनियर और जूनियर केटेगरी टूर्नामेंट, श्रीनगर में जीता। इसके बाद उन्होंने चीन में भी एक टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीता। राष्ट्रीय स्तर पर कई बार टूर्नामेंट जीतने के अलावा सिमरन ने दो बार एशियाई चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता है। पिछले साल वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रोंज मेडल भी जीता। इन सभी उपलब्धियों के साथ कैडेट लेवल पर सिमरन आज देश के कामयाब पहलवानों में से एक हैं।

पर सिमरन की राह में चुनौतियों की कोई कमी नहीं रही। राजेश अहलावत ने बताया कि बहुत बार सिमरन को साथ में प्रैक्टिस करने के लिए भी कोई नहीं मिलता था। ऐसे में उन्होंने कई बार दुसरे बच्चों को उसके साथ प्रैक्टिस करने के लिए कभी जूस पिलाया तो कभी पैसे दिए। बहुत बार तो उन्होंने खुद सिमरन के साथ प्रैक्टिस की।

एशियाई चैंपियनशिप और यूथ ओलंपिक में सिमरन ने मेडल जीते हैं

नेशनल टूर्नामेंट और इंटरनेशनल चैंपियनशिप के अलावा सिमरन ने देसी दंगलों में भी बहुत नाम कमाया। उन्होंने न केवल लड़कियों बल्कि लड़कों के साथ भी दंगल किये हैं। सिमरन के इस कामयाबी के सफ़र में उनके पिता हर कदम पर साथ रहे। प्रैक्टिस से लेकर टूर्नामेंट तक, हर जगह वे सिमरन के साथ गये।

घर की आर्थिक स्थिति के बारे में राजेश अहलावत ने बताया कि अभी भी उनका संयुक्त परिवार है। वे खुद जब सिमरन के साथ व्यस्त थे तो उनके छोटे भाई ने घर की पूरी ज़िम्मेदारी सम्भाली। सिमरन के दादा-दादी ने भी उनके सफ़र में पूरा सहयोग किया है। एक किसान परिवार होने के नाते, जो भी उपज होती है, उसी में उनका खर्च चलता है।

सिमरन अहलावत की एक दंगल के दौरान विडियो –

छोटी-सी उम्र में ही सिमरन का रिश्ता फिल्मों से भी जुड़ा। सिमरन को आमिर खान की दंगल फिल्म में रोल करने का मौका मिला था पर सिमरन को उस वक़्त दस दिनों में ही एशियाई चैंपियनशिप के लिए जाना था। सिमरन ने अपने खेल के आगे हर चीज़ को पीछे छोड़ दिया और उन्होंने चैंपियनशिप जीती भी। इसके बाद सिमरन ने सलमान खान के साथ सुल्तान फिल्म में काम किया है।

दंगल और सुल्तान फिल्म की शूटिंग के दौरान

सिमरन अहलावत को इस मुकाम तक पहुँचाने में उनके पिता और परिवार के अलावा और भी बहुत से नाम हैं, जिनके बारे में अहलावत ने द बेटर इंडिया के साथ साक्षात्कार में बताया। सिमरन आज भी तेज सिंह आखाड़े में प्रैक्टिस करती हैं और यहाँ कोच एकता सुहाग उन्हें सिखाती हैं। राजेश अहलावत ने बताया कि पहले एकता के पति कोच रिकास सुहाग सिमरन को सिखाते थे।

रिकास सुहाग को सब रिक्की कोच के नाम से जानते हैं। सिमरन के साथ उन्होंने बहुत मेहनत की। यहाँ तक कि प्रैक्टिस के दौरान वे खुद सिमरन के लिए खाना पकाते और उसे खिलाते थे। सिमरन के प्रति रिक्की कोच का अटूट विश्वास था कि एक दिन वह देश के लिए मेडल जरुर लाएगी। कुछ समय पहले रिक्की कोच का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। इस घटना का सिमरन पर भी असर हुआ।

स्वर्गीय कोच रिक्की सुहाग के साथ सिमरन अहलावत

पर सिमरन ने अपने कोच के सपने को पूरा करने के लिए जी-तोड़ मेहनत की और युथ ओलंपिक में जीते अपने मेडल को रिक्की कोच को समर्पित किया। रिक्की कोच के जाने के बाद उनकी पत्नी एकता ने तेज सिंह अखाड़ा में लड़कियों को सिखाने की ज़िम्मेदारी उठाई।

इसके अलावा पद्मश्री पद्मभूषण महाबली सतपाल सिंह के संरक्षण में चल रहा तेज सिंह अखाड़ा सिमरन जैसे ही बहुत से पहलवानों को उनकी मंजिल तक पहुंचने के लिए दिशा दे रहा है। राजेश अहलावत ने कहा कि तेज सिंह अखाड़ा बिना किसी फीस के नि:स्वार्थ भाव से पहलवानों की मदद कर रहा है। अखाड़े के संचालक संदीप पहलवान और आशीष पहलवान यहाँ पर सभी बच्चों के लिए हर एक सुविधा मुहैया करवाते हैं।

सुशील कुमार को अपनी प्रेरणा मानने वाली सिमरन ने आज न केवल अपने परिवार का सपना पूरा किया है बल्कि वे बहुत-सी लडकियों के लिए प्रेरणा है। इसके बाद अब उनका पूरा फोकस ओलंपिक और वर्ल्ड चैंपियनशिप पर है।

सिमरन अहलावत

सिमरन और उनके पिता आगे चलकर गरीब बच्चों के लिए एक कुश्ती अकैडेमी भी शुरू करना चाहते हैं। उनका सपना है कि वे ऐसे बच्चों की मदद करें जो पहलवानी करना चाहते हैं, पर उनका परिवार समर्थ नहीं है। सिमरन चाहती हैं कि जैसे वे अपने पिता और बहुत से लोगों के समर्थन से आगे बढ़ी हैं, वैसे ही वह भी आने वाली पीढ़ी के बच्चों को आगे बढ़ाएं।

राजेश अहलावत लोगों के लिए सन्देश देते हैं कि कभी भी लड़की को कम न आंके। समाज और लोगों की बातें सुने बिना बस अपनी बेटियों को आगे बढ़ाएं, हर कदम पर उसके साथ रहें। और फिर बेटा हो या बेटी, दुनिया की परवाह करने से बढ़िया है कि आप बस अपने बच्चों पर यकीन करें कि वे सब कुछ कर सकते हैं।

संपादन – मानबी कटोच


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