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टीचर ने किया लॉकडाउन का सही इस्तेमाल, 6 महीने में पांच टन तरबूज उगाकर कमाए 2 लाख रुपये

watermelon cultivation

केरल के कासरगोड जिले में रहने वाली सीमा रथीश ने, COVID-19 लॉकडाउन के दौरान मिले खाली समय में, तरबूज की जैविक खेती की और लाखों रुपये कमाए।

पिछले साल, कोरोना महामारी की वजह से कई लोग शहर से दूर अपने गाँव चले गए। जबकि कुछ लोग इसलिए शहर से दूर गए, क्योंकि वे प्रकृति के बीच रहकर काम करना चाहते थे। वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने अपने गाँव में समय बिताने और खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए नौकरी तक छोड़ दी। हालांकि, आज हम आपको जिनके बारे में बता रहे हैं, उन्होंने अपनी पुरानी नौकरी के साथ ही खेती को भी अपना लिया है। हम बात कर रहें हैं, 43 वर्षीया सीमा रथीश की, जो केरल के कुंबला गाँव के सरकारी स्कूल में गणित की शिक्षिका हैं। उन्होंने, नवंबर 2020 में अपनी ढाई एकड़ जमीन पर जैविक तरीके से तरबूज की खेती (watermelon farming) शुरू की और सीजन खत्म होने तक अप्रैल में, पाँच टन तरबूज उगा दिए।   

सीमा ने द बेटर इंडिया को बताया, “पिछले साल लॉकडाउन लगते ही, मैं केरल में मीनगोठ (Meengoth) में रहने चली गयी थी। चूँकि मुझे ऑनलाइन ही पढ़ाना था, इसलिए हमने अपने परिवार के साथ गाँव में रहने का फैसला किया। ऑनलाइन क्लास के बाद मेरे पास काफी खाली समय बचता था, उस समय का सही इस्तेमाल करने के लिए मैंने अपने पति, भाई और एक पारिवारिक मित्र की मदद से, शुगर क्वीन किस्म के तरबूज की खेती (watermelon farming) करना शुरू किया।”  

organic watermelon
सीमा रथीश

पुश्तैनी जमीन का इस्तेमाल  

सीमा एक किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता, माधवन नायर के पास 15 एकड़ खेत थे, जहां वह धान, सुपारी के पेड़, रबर के पेड़ और केले की खेती करते थे। हालांकि, तीन साल पहले उनके पिता का निधन हो गया जिसके बाद सीमा की माँ, विलासिनी और भाई मनोज कुमार ने खेती का काम संभाल लिया।  

सीमा बताती हैं, “लॉकडाउन के दौरान जब मैं गाँव लौटी, तो मेरे भाई ने मुझे बताया कि खेती से अब पहले जैसी कमाई नहीं हो रही है। उसने बताया कि खेती से उपज उतनी अधिक नहीं रही, जितनी पहले हुआ करती थी, इसलिए उसे अब खेती के साथ-साथ दूसरी नौकरी भी करनी पड़ रही है। तभी मैंने खेती से जुड़ने और पुरानी तकनीक की बजाय, नये तरीके से खेती करने का फैसला किया। मैं चाहती थी कि हम अपनी जमीन का सही इस्तेमाल करके ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाए। इसके लिए हमने, मरारीकुलम में रहने वाले अपने पारिवारिक मित्र नशीद की सलाह ली। वह पिछले कई सालों से जैविक खेती कर रहे हैं।”  

नशीद ने उन्हें सुझाव दिया कि मीनगोठ में पाई जानेवाली मिट्टी की गुणवत्ता के हिसाब से, यहां शुगर क्वीन किस्म के तरबूज आसानी से उग जाएंगे। शुगर क्वीन तरबूज, जो अपने चमकीले लाल गूदे और मीठे स्वाद के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, उन्होंने इस बार नशीद की सलाह के अनुसार इसे पारंपरिक तरीके से उगाने के बदले, खेती (watermelon farming) के लिए एक सटीक तकनीक का इस्तेमाल करने का फैसला किया। 

सीमा कहती हैं, “नवंबर के पहले कुछ हफ्तों में, हमने अपनी ढाई एकड़ जमीन की सफाई का काम किया। हमने जमीन से खरपतवार और पत्थर हटा दिए। साथ ही, मिट्टी में कुछ पोषक चीजें भी मिलाई।” ये सारा काम उनके खेत में काम करनेवाले, तीन और लोगों की मदद से पूरा किया गया। 

जैविक तरीके से उगाए तरबूज  

तरबूज के पौधे लगाने से पहले, उन्होंने एक सीधी लाइन बनाकर उपजाऊ मिट्टी का ढेर बनाया। इसके ऊपर कम्पोस्ट और सूखे पत्ते भी डाले। आखिर में, इसे मल्चिंग बैग से पूरी तरह ढक दिया। ड्रिप तकनीक से पौधों की सिंचाई के लिए, पानी की एक पाइप को भी मल्चिंग बैग के अंदर लगाया गया।  

Seema Ratheesh
मल्चिंग बैग से ढका खेत

सीमा कहती हैं, “जमीन को खेती (watermelon farming) के लिए तैयार करने में तक़रीबन 5 लाख रुपये का खर्च आया। इसके बाद हमने 20 नवंबर को सभी बीज लगाए। ड्रिप सिंचाई तकनीक की मदद से तरबूज की फसल को दिन में तीन बार पानी दिया जाता था।”  

सीमा नियमित रूप से फसलों की जांच करती थीं, जिसके लिए वह हर सुबह एक घंटे के लिए खेत में जाती थीं। चूँकि, उन्हें बच्चों को पढ़ाना भी होता था, इसलिए वह खेत से आने के बाद अपने काम में लग जाती थीं। शाम को फिर, घर के काम से फ्री होकर वह खेत जाती थीं।  

एक महीने के अंदर ही, बीज अंकुरित होकर छोटे-छोटे पौधे बन गए। सीमा, पौधों के सही विकास और अच्छी फसल के लिए उनमें खाद भी डालती थीं। हालांकि, खाद का पौधों पर सीधे छिड़काव करने की बजाय, उन्होंने उसे पानी के साथ मिलाकर देने का फैसला किया। इसके लिए वह खाद को पानी के साथ मिला देती थीं, जो बाद में ड्रिप की मदद से पौधों तक पहुंच जाता था। 

उन्होंने बताया कि वह अपने खेत में जैविक खाद डालती थीं, जिसे नशीद ने ही बनाया था। नशीद इस तरह की जैविक खाद की बोतलें बनाकर बेचते भी हैं। जैविक खाद को पानी के साथ एक विशेष अनुपात में मिलाया जाता था और बाद में उसे ड्रिप से जुड़े टैंक में डाला जाता है। इससे फसलों की सिंचाई सादे पानी की बजाय, जैविक खाद वाले पानी से होती थी। सीमा कहती हैं कि तरबूज की अच्छी फसल होने के पीछे का कारण, जैविक खाद ही है।  

organic Farming

जनवरी 2021 में, सीमा ने अपने तरबूज की फसल की पहली कटाई की थी, जिसका उद्घाटन केरल के पूर्व राजस्व मंत्री, ई चंद्रशेखरन ने किया था। पहली कटाई से उन्हें तीन टन तरबूज मिले थे, जिसे कासरगोड, कन्नूर और थालास्सेरी सहित, दूसरे जिलों में भी बेचा गया।  

ये तरबूज 15 दिनों तक बिलकुल ताजे रहते हैं। उन्होंने इसे 25 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा था। सीमा ने बताया कि पहले लोगों को हमारे तरबूज की कीमत थोड़ी ज्यादा लगी थी, लेकिन एक बार इन्हें चखने के बाद, कई ग्राहक इसे फिर से खरीदने आते थे। अप्रैल में सीजन खत्म होने तक, उन्होंने पाँच टन फल बेचें, जिससे उन्हें दो लाख रुपये का मुनाफा हुआ।   

सीजन खत्म होने के बावजूद भी, उन्हें शुगर क्वीन तरबूज के ऑर्डर मिल रहे थे। फ़िलहाल, वह अपनी उसी जमीन पर भिंडी की खेती कर रही हैं। साथ ही, वह आनेवाले दिनों में मिर्च और प्याज भी उगाने की तैयारी कर रही हैं।  

मूल लेख – रौशनी मुथुकुमार 

संपादन- जी एन झा

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