पशु-पक्षियों को पानी पिलाने के लिए 6 लाख रूपये खर्च कर, 10, 000 गमले बाँट रहे हैं 70 वर्षीय नारायण

उनका यह अभियान पिछले साल बहुत सफ़ल रहा और इस साल भी उन्होंने इसे सफ़ल बनाने का बीड़ा उठा लिया है।

केरल के एर्नाकुलम जिले के मुप्पाथडम नामक गाँव के निवासी, 70 वर्षीय लेखक, श्रीमन नारायण, चाहे तो आराम से घर में बैठकर अपनी बाकी की ज़िन्दगी काट सकते हैं। पर अपने आस-पास के हालात देखकर उन्होंने एक ऐसी राह चुनी, जो सभी के लिए एक मिसाल बन गयी।  साथ ही अब उनके गाँव की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है।

गर्मी से पशु-पक्षियों को बचाने के लिए उन्होंने इस साल करीब 6 लाख रूपये खर्च कर, 10,000 मिट्टी के गमले बांटने का प्राण लिया है और अब तक 9,000 गमले बाँट भी चुके हैं। उनका मानना है कि अगर हर-एक व्यक्ति इन गमलों में रोज़ पानी भरकर रखेगा, तो इन गर्मियों में किसी भी पशु-पक्षी को प्यासा नहीं रहना पड़ेगा।

“गर्मी के बढ़ने के साथ-साथ अधिकांश जल स्रोत सूखने लगते हैं और पशु-पक्षियों के लिए अपनी प्यास बुझाना मुश्किल हो जाता है। गर्मी बढ़ने से सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि जानवरों और चिड़ियों को भी डिहाइड्रेशन हो जाता है। इस छोटे से मिट्टी के कटोरे से कम से कम 100 पंछीयों की प्यास बुझ सकती है,” श्रीमन नारायण कहते हैं।

साल 2018 से शुरू हुए इस अभियान को उन्होंने ‘जीव जलथिनु ओरु मनु पथराम’ का नाम दिया है, जिसका अर्थ है ‘जीवन-दायी पानी के लिए एक मिट्टी का गमला’। उनका यह अभियान पिछले साल बहुत सफ़ल रहा और इस साल भी उन्होंने इसे सफ़ल बनाने का बीड़ा उठा लिया है।

मलयालम और अर्थशास्त्र में डबल एमए कर चुके नारायण ने कई किताबें लिखी हैं और वे हमेशा से गाँधी जी के विचारों से प्रभावित रहे। 6 साल पहले उन्होंने अपने समाज सेवा की शुरुआत ‘एंटे ग्रामम् गाँधीजिलुदे’ ( गाँधी जी के रास्ते पे चलता मेरा गाँव) नामक अभियान से की, जिसके तहत उन्होंने अब तक गाँधी जी की आत्मकथा की 5000 प्रतियां बांटी हैं।

पिछले साल नारायण ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए 15 लाख रूपये खर्च कर, 50,000 पौधे बांटे थे। इसके अलावा नारायण अपने गाँव के हर घर के आस-पास पौधे लगाते रहते हैं और अब तक इस तरह उन्होंने अपने गाँव में 10,000 पेड़ लगाए हैं।

अपने गाँव में एक छोटा सा होटल चलाने वाले नारायण की तीन बेटियां हैं। 30 साल पहले ही उनकी पत्नी का देहांत हो चुका था और तब से अपनी बेटियों को उन्होंने अकेले ही पाला है 

वे कहते हैं, “मैं अपने तीनों बच्चों की सारी जिम्मेदारियां निभा चुका हूँ। अब वे सब सेटल हो चुके हैं। अब मैं अपनी संपत्ति को भविष्य के लिए संभाले रखने की बजाय अपने धरती की आज की स्थिति सुधारने के लिए खर्च करना चाहता हूँ। इसलिए मैं अपने व्यवसाय और अपने छोटे से होटल से कमाये पैसों को अपने गाँव की भलाई के लिए इस्तेमाल करता हूँ।”

सलाम है ऐसी सोच को!

स्त्रोत व चित्र साभार – न्यूज़ मिनट


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