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बिज़नेस में नुकसान के बावजूद, 110 बेरोज़गारों को सिलाई सिखाकर संवारा भविष्य

शुरुआत में, महादेव बादामी ने 70 लोगों को सिलाई सिखाई और अब तक वह 110 लोगों को सिलाई सिखा चुके हैं!

हाल ही में, फेसबुक द्वारा जारी एक वीडियो विज्ञापन ने लोगों को काफी प्रभावित किया। यह एक लड़की की कहानी है जो अपने पिता की दुकान चलाती है और जब देखती है कि लॉकडाउन में लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है तो ज़रूरत न होते हुए भी वह लोगों को नौकरी पर रखती है। उनको नया काम सिखाती है, एक नया हुनर ताकि उनका घर चलता रहे। इस वीडियो ने लोगों को काफी प्रभावित किया। कहने को तो यह एक काल्पनिक कहानी है, लेकिन इसकी प्रेरणा असल ज़िंदगी से ही मिली है।

आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी सुना रहे हैं। यह कहानी है कर्नाटक के गदग में रहने वाले महादेव बादामी की, जो पेशे से एक टेलर हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने खुद अपने व्यवसाय में काफी नुकसान उठाया है लेकिन फिर भी अपने सभी कर्मचारियों को उनकी पूरी सैलरी दी है। साथ ही, उन्होंने अपने गाँव के लगभग 110 लोगों को काम भी सिखाया है।

शिगली गाँव में रहने वाले महादेव बादामी, अनुपमा ड्रेस के नाम से अपना बुटीक चलाते हैं। वह पारंपरिक कपड़े बनाते हैं और बच्चों की ड्रेस बनाते हैं। पिछले लगभग 10 सालों से वह यह काम कर रहे हैं।

बादामी ने द बेटर इंडिया को बताया, “लॉकडाउन से पहले महीने में 3 से 4 लाख रुपये की कमाई हो जाती थी। मेरे यहाँ कई लोग काम करते थे लेकिन जैसे ही लॉकडाउन हुआ, दुकान बंद हो गई। मेरे लिए तो कठिन समय था ही, कर्मचारियों को भी परेशानियों को सामना करना पड़ा। दरअसल हमारी डिलीवरी बंद हो गईं थीं लेकिन फिर भी मैंने अपने सभी कर्मचारियों को उनकी तनख्वाह दी। उन्हें नौकरी से नहीं निकाला।”

 

Karnataka Entrepreneur
They make traditional clothes

इसके साथ ही, उनके पास जो फैब्रिक था उसे उन्होंने मास्क बनाने में इस्तेमाल किया। बाकी सभी काम बंद था इसलिए उन्होंने मास्क बनाने का काम किया। इससे उनका फैब्रिक भी वेस्ट नहीं हुआ और थोड़े-बहुत रोज़गार का साधन हो गया।

“इस दौरान मैंने देखा कि हमारे गाँव और आसपास बहुत से लोग बेरोजगार भी हो गए थे और ट्रांसपोर्टेशन की कमी की वजह से हमारे भी कई कर्मचारी नहीं आए। धीरे-धीरे जब काम दोबारा शुरू हुआ तो मैंने सोचा कि क्यों न अपने यहाँ के लोगों को ही मौका दिया जाए? मैंने अपने गाँव और आसपास के गांवों से युवाओं को चुना और उन्हें काम सिखाना शुरू किया,” उन्होंने आगे बताया।

बादामी ने लगभग 110 लोगों को मुफ्त में कपड़े काटना और सिलना सिखाया। इसके बाद, इनमें से कुछ को अपने यहाँ काम पर भी रखा। वहीं कुछ लोग दूसरी जगहों पर काम कर रहे हैं। बादामी के मुताबिक, आज ये सभी युवा महीने के 6 से 8 हज़ार रुपये बतौर आजीविका कमा पा रहे हैं।

उनके गाँव की एक महिला सुनेत्रा का कहना है, “मैं लॉकडाउन से पहले बेंगलुरू में काम कर रही थी। लेकिन लॉकडाउन की वजह से मेरी नौकरी चली गई। ऐसे में, बादामी जी ने संपर्क किया और पूछा कि अगर वह टेलरिंग करेंगी तो ट्रेनिंग लेकर गाँव में ही काम शुरू कर दें। आज मैं गाँव में ही काम कर रही हूँ और घर चला रही हूँ।”

 

Karnataka
Teaching others

बादामी आगे बताते हैं कि वह डिज़ाइनर कपड़े तैयार करते हैं और उनके यहाँ से कपड़े अलग-अलग दुकानों में जाते हैं। पारंपरिक एम्पोरियम के लिए भी उनके यहाँ से कपड़े तैयार होकर जाते हैं। “जिन लोगों को मैंने सिखाया है, उन्हें भी हम ऑर्डर्स के हिसाब से कुछ न कुछ काम देते हैं। हमारे यहाँ से उन्हें फैब्रिक और अन्य ज़रूरी मटेरियल दिया जाता है और ये लोग अपने घरों से बताए गए डिज़ाइन के मुताबिक कपड़े तैयार करके देते हैं,” उन्होंने बताया।

बादामी कहते हैं कि उद्यमी बनने की राह में उन्हें देशपांडे फाउंडेशन से काफी मदद मिली है। फिलहाल, उनका बिज़नेस धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा है लेकिन उनकी कोशिश यही है कि वह अपने गाँव से ज्यादा से ज्यादा युवाओं को हुनरमंद बना पाएं। साथ ही, वह ऑनलाइन मार्किट में भी एक पहचान बनाना चाहते हैं लेकिन इसके लिए अभी उन्हें काफी काम करना है।

द बेटर इंडिया महादेव बादामी के जज्बे को सलाम करता है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।

महादेव बादामी से संपर्क करने के लिए आप उन्हें 7090471101 पर कॉल कर सकते हैं। 

संपादन – जी. एन झा 

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