झारखंड का यह स्टूडेंट, बोकारो में उगा रहा है शहतूत, जानिए कैसे

Prasenjeet grows Noni in Bokaro

झारखंड के रहनेवाले, जीवनबोध एग्रोटेक के संस्थापक, प्रसेनजीत कुमार ने बोकारो में अपने बैकयार्ड में तटीय क्षेत्रों में उगने वाली शहतूत (noni cultivation) उगाने में कामयाबी हासिल की है।

नोनी, एक देशी फल है, जिसे शहतूत के नाम से भी जाना जाता है। अपने देश में इसका उपयोग आयुर्वेदिक उपचार के लिए हजारों वर्षों से किया जा रहा है। यह फल, अमीनो एसिड, विटामिन सी और पेक्टिन सहित, कई पोषक तत्वों से भरा होता है। ट्यूमर और कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और बालों की अच्छी ग्रोथ में भी यह फायदेमंद साबित होता है। हालांकि, इस फल और पौधे को खोजना आसान नहीं है, क्योंकि आप हर जगह नोनी को उगा (Noni Cultivation) नहीं सकते हैं।

कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा के तटीय क्षेत्रों में ही इसे उगाया जाता है, क्योंकि शहतूत के बीजों को अंकुरित होने के लिए ट्रॉपिकल तापमान की ज़रूरत होती है। लेकिन, झारखंड राय विश्वविद्यालय से एग्रीकल्चर में ग्रैजुएट (B. Sc. Agriculture) और जीवनबोध एग्रोटेक के संस्थापक, प्रसेनजीत कुमार (24) ने बोकारो में अपने बैकयार्ड में नोनी उगाने (Noni Cultivation) में कामयाबी हासिल की है।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए प्रसेनजीत कहते हैं, “मैंने न केवल फल उगाए, बल्कि पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करके उनसे रस भी निकाला। इसके अलावा, फल से मैंने बीज भी निकाले हैं।”

नोनी/शहतूत के बीज की खरीद

प्रसेनजीत को नोनी फल के फायदों के बारे में उनके पिता ने 2018 में बताया था, जो खुद एक किसान हैं। उनके पिता ने यह भी समझाया कि इसे झारखंड में क्यों नहीं उगाया जा सकता है। प्रसेनजीत कहते हैं, “मेरे पिता, विवेकानंद, पपीता (Red Lady Papaya), चमेली (Night-flower Jasmine) और ड्रैगन फ्रूट की खेती करते हैं। 2005 में, वह इस इलाके में स्पिरुलिना (शैवाल) की खेती करनेवाले पहले व्यक्ति थे। मेरी माँ, एक आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं और ट्रेडिशनल रेसिपीज़ से बीमारियों का इलाज करती हैं। माँ ने ही मुझे बताया कि नोनी को संजीवनी फल क्यों माना जाता है।”

growing Noni fruit in Bokaro, Jharkhand
Noni plant saplings
चूंकि प्रसेनजीत, अपने कॉलेज के फाइनल ईयर में थे, इसलिए वह इस "असंभव" काम (Noni Cultivation) को संभव बनाने के लिए अपने प्रोफेसरों की मदद लेना चाहते थे। सबसे पहले, उन्होंने ओडिशा में एक फार्म की पहचान की, जो पहले से ही शहतूत के फल उगा (Noni Cultivation) रहा था। उनके साथ बात करने के बाद, वह समझ गए कि बीज अपने कठोर बाहरी आवरण के कारण अंकुरित होने में छह महीने तक का समय लेता है।

इन छह महीनों के दौरान, बीज ट्रॉपिकल कंडिशंस में रहता है। प्रसेनजीत ने बताया, “जब मैंने फार्म से संपर्क किया, तो वे मुझे एक कटिंग या एक पौधा देने के लिए तैयार थे, लेकिन मुझे बीज देने से हिचक रहे थे। अब तक, बीज गैर-तटीय क्षेत्रों में उपज देने में विफल रहे हैं। लेकिन मैं नोनी को बीज से ही उगाना चाहता था, ताकि बोकारो की जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल एक पौधा उगा सकूं। इसलिए मैंने उन्हें मना लिया और 1,000 रुपये में 200 बीज खरीदे।”

बीज अंकुरण

बीज मिलने के बाद, उन्होंने बीज को अंकुरित करने के बारे में सुझाव लेने के लिए एक प्रोफेसर से संपर्क किया, जो जेआरयू विश्वविद्यालय में प्लांट ब्रीडिंग के बारे में पढ़ाते थे।

प्रोफेसर ने, बीज के बाहरी कठोर खोल को तोड़ने कि लिए एक आसान तरीका बताया। उन्होंने सुझाव दिया कि दो मिनट के लिए कॉन्सेट्रेटेड सल्फ्यूरिक एसिड में बीज को भिगो कर रखने से इसका खोल टूट जाएगा। हालांकि, उन्होंने सावधानी बरतने की सलाह भी दी, क्योंकि सल्फ्यूरिक एसिड स्किन को जला सकता है।

उन्होंने कहा, “मैं इसे आज़माना नहीं चाह रहा था, लेकिन मेरे पिता रिस्क लेने के लिए तैयार थे। इसलिए हमने कॉन्संट्रटेड सल्फ्यूरिक एसिड खरीदा और बीजों को उसमें डुबाकर, इसके बाहरी आवरण को हटा दिया। इस प्रक्रिया में, गार्डन ग्लव्स पहनने और बीजों को निकालने के लिए स्टील की कलछुल का इस्तेमाल करने के बावजूद, मेरे पिता थोड़े जल भी गए थे। लेकिन शुक्र है कि यह बहुत गंभीर नहीं था।” 

पहले साल मिले 45 किलो तक फल

प्रसेनजीत ने बीजों को अंकुरित करने के लिए एक कम लागत वाला पॉलीहाउस भी बनाया। पॉलीहाउस में 200 बीजों को अलग-अलग पौधों के कंटेनरों में रखा गया और 50 दिनों के भीतर उनमें से 116 अंकुरित हो गए। बाकी बीज नहीं बढ़े।

Prasenjeet made a polyhouse to germinate Noni seeds in Bokaro, Jharkhand
Polyhouse made by Prasenjeet to Germinate Noni Seeds

इसके बाद पौधों को, भरपूर मात्रा वाली जैविक खाद और कंपोस्ट वाली मिट्टी में ट्रांसफर कर दिया गया। कुछ महीने बाद केवल 16 पौधे ही हेल्दी रहे और तीन फीट की ऊंचाई तक बढ़े।

प्रसेनजीत ने बताया, “नवंबर 2019 तक, मानसून की बारिश के बाद पेड़, शहतूत के फलों से भर गए थे। मुझे पहले साल 45 किलो तक फल मिले। चूंकि पेड़ साल भर फल और फूल पैदा करता है, मुझे हर महीने, प्रत्येक पेड़ से कम से कम 10 फल मिल सकते हैं।”

फिलहाल वह इन फलों को बेच नहीं रहे हैं। उनकी माँ फल से पारंपरिक तरीके से रस निकालती हैं और कुछ रोगियों के इलाज के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं।

प्रसेनजीत का कहना है, “हमने फल बेचने का फैसला नहीं किया, क्योंकि वे कोल्ड स्टोरेज में भी खराब हो सकते हैं। इसलिए हमने उन्हें एयरटाइट जार में रखा और धूप में पकने दिया।”

अन्य किसानों को सशक्त बनाना है लक्ष्य

तोड़े गए फलों से प्रसेनजीत ने बीज भी इकट्ठा किए और उन्हें एक बार फिर अंकुरित करने की कोशिश की। इस बार उन्होंने कॉन्संट्रटेड सल्फ्यूरिक एसिड का इस्तेमाल नहीं किया। पॉलीहाउस में इस बार 45-50 दिनों के भीतर ही बीज अंकुरित हो गए।

उनका कहना है कि “मैंने इसे केवल चार बीजों के साथ आजमाया और यह आईडिया काम कर गया। मेरा मानना ​​है कि बीज, बोकारो के मौसम की स्थिति के अनुकूल हो गए हैं और अन्य किसानों द्वारा भी उगाए जा सकते हैं। 10 बीज आमतौर पर 250 रुपये में बेचे जाते हैं, और एक किलोग्राम 800 रुपये में बेचा जा सकता है।

मूल लेख- रौशनी मुथुकुमार

संपादन- जी एन झा

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