हम सभी जानते हैं कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए हानिकारक है, लेकिन यह भी सच है कि हम सभी के घर में प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है। वैसे यह भी सच है कि यदि हम सभी मजबूत इच्छाशक्ति से आगे बढ़ेंगे तो प्लास्टिक का इस्तेमाल जरूर कम हो जाएगा। कुछ ऐसा ही प्रयास झारखंड में हो रहा है। वहाँ एक दंपति ने अपने इलाके को प्लास्टिक मुक्त करने के लिए एक अनोखे अभियान की शुरूआत की है।
यह कहानी रामगढ़ के उपेंद्र पांडेय और उनकी पत्नी सोना पांडेय की है जो लोगों को प्लास्टिक/पॉलिथीन को नदी-नालों और लैंडफिल में जाने से कैसे रोका जाए, इसका रास्ता दिखा रहे हैं। यह दंपति अपने इलाके को पॉलिथीन मुक्त करने के लिए पिछले 6 सालों से लगातार प्रयासरत हैं।
कोचिंग संस्थान चलाने वाले पांडेय दंपति ने सदैव ही पर्यावरण और समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझा है। उन्होंने अपने आवासीय परिसर में हमेशा हरियाली को जगह दी है और कम से कम प्लास्टिक का इस्तेमाल अपने दैनिक जीवन करते हैं। साथ ही, अपने कोचिंग संस्थान के माध्यम से अन्य छात्रों के साथ-साथ कुछ ज़रूरतमंद और गरीब परिवारों से आने वाले मेधावी छात्रों को मुफ्त में शिक्षा भी दे रहे हैं।
उपेन्द्र पांडेय और सोना पांडेय ने एक अभियान की शुरूआत की, जिसका नाम है- ‘पॉलिथीन दीजिए, पौधे लीजिए’। जी हाँ, अगर आप पर्यावरण के प्रति सजग हैं और अपने घर पर कम से कम पॉलिथीन का इस्तेमाल करने के लिए प्रयासरत हैं तो आप पॉलिथीन इकट्ठा करके उनके यहाँ दे सकते हैं। बदले में वह आपको अपने गार्डन से तैयार पौधे देंगे।
इस अभियान के बारे में उपेन्द्र ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमने साल 2014 में इस पहल की शुरूआत की। केंद्र में नयी सरकार बनी थी और लोगों की बड़ी उम्मीदें थी कि वह बहुत कुछ करेंगे। ऐसे में, एक दिन अपने गार्डन में बैठे हुए हम पति-पत्नी बात कर रहे थे कि हम क्या कर सकते हैं? तो पत्नी जी ने सुझाव दिया कि क्यों न रामगढ़ को पॉलिथीन मुक्त बनाया जाए।”
अपने अभियान पर सोच-विचार करके उन्होंने अपनी रणनीति बनाई कि वह लोगों को पॉलिथीन के बदले में पौधे देंगे। उस समय उनके घर में मुश्किल से 150 पौधे थे। लेकिन इस पहल के बारे में तय करके उन्होंने और पौधे तैयार करना शुरू किया। सोना ने अपने यहाँ काम करने आने वाली बाई से बात की। उन्हें इस बारे में बताया कि वह जहाँ भी काम करतीं हैं, वहाँ पर सबको कहे कि वह पॉलिथीन फेंकने की बजाय उसे दे दें। और वह जो भी पॉलिथीन उन्हें लाकर देंगी, उसके बदले उनसे पौधे ले जा सकतीं हैं।
“हमारा अभियान शुरू ऐसे ही हुआ। पहले हमारे घर आने वाली दीदी, फिर और उनकी कुछ साथियों ने पॉलिथीन लाकर दीं। फिर जो कचरा इकट्ठा करके जला देते हैं, उन्हें हमने अपने साथ जोड़ा। इसके बाद, सफाई कर्मचारियों को बताया कि वह पॉलिथीन कचरे में न डालकर हमें लाकर दे दें। इस तरह से हमारी कहानी शुरू हुई और देखते ही देखते लोग जुड़ गए,” उन्होंने बताया।
उपेंद्र और सोना को जो भी पॉलिथीन मिलती हैं, उनमे वह नए पौधे तैयार करते हैं। हालांकि, अब तक उन्हें जो पॉलिथीन मिली हैं, उनकी संख्या अब उनके पौधों से बहुत ज्यादा है। इसलिए उन्होंने बहुत-सी पॉलिथीन रीसाइक्लिंग के लिए भी भेजी हैं। वह कहते हैं, “अब तक हमें लगभग ट्रक भर से भी ज्यादा पॉलिथीन अलग-अलग जगहों से मिल चुका है। इनमें से जो थोड़ी मजबूत और इस तरह की होती है कि सालों-साल के लिए पौधों को संभाल सकें, उसमें हम पौधे लगा देते हैं। फिर जब कोई पॉलिथीन देने आता है तो इसके बदले में वही पौधे उन्हें देते हैं। पौधा कितना बड़ा या छोटा देना है या फिर कितनी पॉलिथीन के बदले देना है, यह उन लोगों पर निर्भर करता है जो हमारे पास आते हैं।”
उपेंद्र का कहना है कि अगर कोई उनके उद्देश्य को समझकर उनके पास आ रहा है तो भले ही वह एक पॉलिथीन लाए फिर भी वह उसे उसकी मांग के मुताबिक पौधे दे देंगे। लेकिन अगर कोई सिर्फ दिखावे के लिए जुड़ रहा है तो वह कितनी भी पॉलिथीन लाए, फिर भी वह एक-दो पौधे ही देंगे।
“सबसे ज्यादा ज़रूरी है कि लोग हमारे उद्देश्य को समझें। वरना किसे पसंद है प्लास्टिक इकट्ठा करना? हम भी नहीं चाहते कि कोई हमें प्लास्टिक लाकर दे लेकिन यह तभी संभव है जब हम पॉलिथीन को अपनी ज़िंदगी से कम करने की कोशिश करेंगे। धीरे-धीरे यही कोशिश रंग लाएंगी और फिर एक दिन आए जब लोगों के पास हमें पॉलिथीन देने के लिए हो ही ना,” उन्होंने कहा।
उपेंद्र और सोना अब तक लगभग 1 लाख पौधे इस अभियान में बाँट चुके हैं। छोटे से छोटे स्तर के लोगों से लेकर बड़े अधिकारीयों तक उनके गार्डन में आकर पॉलिथीन देकर पौधे लेकर गए हैं। उनके अपने गार्डन में आज 10 हज़ार से ज्यादा पौधे हैं। बेल, फूल, फल, हर्ब्स, इंडोर, आउटडोर, न जाने कितनी ही किस्म के अलग-अलग पेड़-पौधे उनके यहाँ उपलब्ध हैं। इनकी देख-रेख के लिए उन्होंने माली रखा हुआ है और उनका पूरा परिवार, जिसमें उनका बेटा और कोचिंग में पढने वाले उनके छात्र शामिल हैं- हर कोई गार्डन की देखभाल करता है।
उन्होंने अपने घर में ही नर्सरी बनाई हुई है। लेकिन इस नर्सरी से एक भी पौधा बिकाऊ नहीं है। बल्कि लोग अपनी सूझ-बुझ और पर्यावरण के प्रति अपनी सजगता से यहाँ पर पौधे कमाते हैं। सोना कहतीं हैं, “हमारा सिर्फ एक उद्देश्य है- पॉलिथीन मुक्त रामगढ़ और अपने इस उद्देश्य के लिए हम सभी पूरे मन और कर्म से समर्पित हैं।”
उपेन्द्र कहते हैं कि उनका सपना है कि भारत में हर एक प्लास्टिक रीसायकल हो और लोग अपनी ज़िम्मेदारी समझें।
वीडियो देखें:
द बेटर इंडिया, उपेन्द्र पांडेय और सोना पांडेय के प्रयासों की सराहना करता है और उम्मीद है कि बहुत-से लोग उनसे प्रेरणा लेंगे।
अगर आप उनसे संपर्क करना चाहते हैं तो pdmission16@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं या फिर उनके फेसबुक पेज- पॉलिथीन डोनेट मिशन को देख सकते हैं। या फिर उन्हें इंस्टाग्राम पर संपर्क कर सकते हैं!
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संपादन: जी. एन. झा
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