31 वर्षीया उमा दास जब 10 साल पहले शादी के बाद, ससुराल आई थीं, तब उनके ससुराल में सारी महिलाएं ढाकी ग्रुप से जुड़ी हुई थीं। वह बताती हैं, “उस समय में हमारे परिवार का कई लोग विरोध भी करते थे। लेकिन आज यह ढाक ही हमारी पहचान बन गया है।”
वहीं, दूसरी तरफ मछलंदपुर की प्रोमिला दास अपने परिवार की पहली ढाक कलाकारा हैं। साल 2017 में वह इस ग्रुप से जुड़ी थीं और उसी साल उन्हें दुर्गा पूजा के दौरान दिल्ली के एक पंडाल में ढाक बजाने का मौका मिला था। प्रोमिला कहती हैं कि यह उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
उमा और प्रोमिला दोनों ही बंगाल के पहले महिला ढाकी यानी बंगाल ढोल ग्रुप ‘मोतीलाल ढाकी’ की सदस्याएं हैं। वह अपने ग्रुप के साथ मिलकर देश के कई राज्यों में ढाक बजाने के लिए जा चुकी हैं। यह बंगाल का पहला महिला ढाक कलाकारों का ग्रुप है, जिसे बनाने वाले हैं- गोकुल चंद्र दास।
मछलंदपुर (पश्चिम बंगाल) के रहनेवाले गोकुल चंद्र दास एक जाने-माने ढाक कलाकर हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहते हैं, “मैं तो बचपन से ही ढाक बजा रहा हूँ। मेरे दादा और पिता भी यही काम करते थे और बाद में मैं भी।”
क्या है ढाक?
ढाक, जिसे ढाकी भी कहा जाता है। यह बंगाल की संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। खासकर दुर्गा पूजा के समय हर एक पूजा पंडाल में ढाक कलाकारों को बुलाया जाता है। यूँ तो इसे बंगाल का सबसे प्रसिद्ध और पुराना वाद्य यंत्र बताया जाता है, लेकिन समय के साथ ढाक मात्र पूजा और समारोहों तक ही सिमित होकर रह गया है।
गोकुल चंद्र दास ने बताया, “मैं कुछ खुशनसीब ढाकी कलाकारों में से हूँ, क्योंकि मुझे अपने परिवार की इस परम्परा को आगे बढ़ाने का मौका भी मिला और इसे अंतराष्ट्रीय मंच तक ले जाने का अवसर भी। आमतौर पर बंगाल में ढाकी कलाकारों को मात्र पूजा के दौरान ही काम मिलता है, बाकी के समय उन्हें घर खर्च निकालने के लिए कोई और काम करना पड़ता है।”
गोकुल एक अवॉर्ड विनिंग ढाकी कलाकार हैं और उन्हें पंडित रविशंकर, तबला मास्टर उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जैसे कई बड़े कलाकारों के साथ, कार्यक्रमों में भाग लेने का मौका मिला है। इसके अलावा, बंगाल में महिलाओं को भी ढाक से जोड़ने का श्रेय उन्हें ही जाता है।
कैसे आया महिलाओं को जोड़ने का ख्याल?
गोकुल के गांव के घर में लॉस एंजिल्स में एक संगीत कार्यक्रम से लेकर कई बड़े-बड़े समारोह की तस्वीरें लगी हैं। लेकिन उनकी वजह से आज उनके गांव की कई महिलाएं अपनी खुद की पहचान बना पाई हैं और गोकुल इसे ही अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं।
महिलाओं को इससे जोड़ने के अपने ख्याल के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं, “साल 2010 में मैं मास्टर उस्ताद ज़ाकिर हुसैन की टीम के साथ नॉर्थ अमेरिका गया था। वहां एक म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट की दुकान में मैंने एक महिला को कई तरह के वाद्य यंत्र बजाते हुए देखा। उसे देखकर ही मुझे ख्याल आया कि मेरे गांव की महिलाओं को भी अगर ट्रेनिंग दी जाए, तो वे भी ढाक या कोई भी इंस्ट्रूमेंट आराम से बजा लेंगी।”
इसके बाद, वापस आकर उन्होंने अपने परिवार की ही पांच महिलाओं को ढाक बजाने की ट्रेनिंग देनी शुरू की। दरअसल, ढाक वज़न में भी भारी होता है और इसे घंटों कंधे पर लटकाकर बजाना होता है। इसमें बहुत प्रैक्टिस और उत्साह की ज़रूरत होती है।
वह बताते हैं कि उनकी इस पहल का काफी विरोध भी किया गया। लेकिन जब भी वह अपने महिला ढाकी ग्रुप को कहीं कार्यक्रम में ले जाते हैं, तो वहां इन महिलाओं की काफी तारीफ़ होती है। उन्होंने बताया कि साल 2011 में जब महिला ढाक ने पहली बार कोलकाता के पंडाल में कार्यक्रम किया था, तब सभी चौक गए थे। इसके बाद, वह महिलाओं को देश के अलग-अलग शहरों, यहां तक कि विदेशों में भी कार्यक्रम के लिए ले जाने लगे।
धीरे-धीरे गांव की कई महिलाएं, ट्रेनिंग के लिए गोकुल चंद्र के पास आने लगीं। साल 2010 में ही गोकुल दास ने मोतीलाल ढाकी नाम से एक अकादमी की शुरुआत की थी और इसके साथ ही शुरुआत हुई थी, गांव की महिलाओं को एक नई पहचान दिलाने की कवायद की भी। गोकुल ने इन महिलाओं के लिए स्पेशल लाइट वेट ढाक बनवाए, जिसे वे लम्बे समय तक पहनकर कार्यक्रम कर सकें।
दुर्गा पूजा के समय में ये महिलाएं ढाकी के कार्यक्रम के ज़रिए अच्छे पैसे भी कमा लेती हैं। इस दौरान वे क़रीबन 20 से 25 पूजा पंडालों में ढाक बजाने जाती हैं। गोकुल दास ने बताया कि उनका यह महिलाओं का ग्रुप, दुर्गा पूजा के समय काफी बिज़ी रहता है। छह महिलाओं से शुरू हुए इस ग्रुप में आज 90 महिलाएं शामिल हैं।
आशा है इन महिलाओं और उनके गुरु गोकुल चंद्र दास के प्रयासों से बंगाल का ढाक, बंगाल सहित पूरी दुनिया में छा जाएगा। इस ढाकी ग्रुप के बारे में ज्यादा जानने के लिए यहां क्लीक करें।
संपादन – अर्चना दुबे
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