Placeholder canvas

वेस्ट मैनेजमेंट और ‘अंडर ट्रायल्स’ को रोज़गार; 19 साल के युवक का स्टार्टअप!

हमारे देश में 68% जेल कैदियों के मुक़दमे अंडर-ट्रायल हैं और इनमें से 48% अंडरट्रायल लोगों की उम्र 18 से 30 साल के बीच है!

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2007 में उत्तर-प्रदेश पुलिस ने बाला सिंह नामक एक शख्स को हत्या के जुर्म में गिरफ्तार किया। वह आदमी, उसकी माँ सालों तक गुहार लगाते रहे कि हत्या उसने नहीं उसके भाई ने की है। पर प्रशासन की लापरवाही की वजह से बाला सिंह को 10 साल जेल में बिताने पड़े और 2017 में उन्हें रिहाई मिली।

हमारे देश में सिर्फ एक बाला सिंह नहीं हैं जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी के 10 साल जेल के अँधेरे में बिताये बल्कि हमारे यहाँ तो ऐसे उदाहरण हैं जब बिना किसी जुर्म के लोगों ने 30 साल तक कारावास में गुजारे हैं। और दुःख की बात यह है कि ऐसे देश में सिर्फ चंद मामले नहीं है बल्कि इनकी लिस्ट काफी लम्बी है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश में 68% जेल कैदियों के मुक़दमे अंडर-ट्रायल हैं और ज़्यादातर मुकदमों में सालों बाद पता चलता है कि जेल में सजा काट रहा इन्सान निर्दोष है। इनमें से 48% अंडरट्रायल लोगों की उम्र 18 से 30 साल के बीच है।

इसके अलावा, नेशनल ज्युडीशियल डाटा ग्रिड (14 नवंबर, 2019 तक) के मुताबिक, भारत के विभिन्न न्यायालयों में 20,92,398 मुक़दमे 10 साल से भी ज्यादा समय से पेंडिंग पड़े हुए हैं। जिनमें से 3 लाख मुकदमे 20 सालों से भी ज्यादा समय से और 54,886 मुकदमें पिछले 30 साल से न्याय की राह तक रहे हैं।

ऐसी ही कुछ कहानी है उत्तर-प्रदेश में नोएडा के रहने वाले 20 वर्षीय संजय की, जिन्होंने बिना किसी गलती के लगभग 17 महीने जेल में बिताये।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए संजय ने बताया, “मुझे अपने घर को आर्थिक रूप से सपोर्ट करना था तो मैंने स्कूल के साथ-साथ पार्ट टाइम जॉब भी की। दसवीं कक्षा के बाद मुझे राजस्थान में एक कंपनी में अच्छी जगह नौकरी मिल गयी। यहाँ मुझे सीखने को भी काफी कुछ मिल रहा था और सैलरी भी ठीक थी। पर मेरी एक नादानी के चलते मेरी ज़िन्दगी बिल्कुल ही बदल गयी।”

Sanjay Kumar working on handicraft products

दरअसल, संजय की बचपन की दोस्त, जिनसे वह बहुत प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे, अपना घर छोड़कर उनके पास राजस्थान आ गयीं। कम उम्र और नासमझी में उन दोनों ने शादी कर ली। संजय बताते हैं कि इसके बाद उस लड़की के घरवालों ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराकर उनपर उनकी बेटी को भगाने का आरोप लगा दिया। जबकि उस लड़की ने अपनी मर्जी से उनसे शादी की थी।

“जब हमने शादी की, तब हम दोनों ही बालिग थे पर लड़की के घरवालों ने समझा ही नहीं और उन्होंने मुकदमा वापस नहीं लिया। पुलिस ने भी जाँच ढंग से नहीं की और मेरा मुक़दमा अंडरट्रायल ही चलता रहा। मैंने लगभग 17 महीने जेल में बिताये हैं। इस बीच मेरे माता-पिता और मेरी बहन, हम सबने बहुत सी मुश्किलें झेलीं,” उन्होंने आगे कहा।

यह भी पढ़ें: किसानों के लिए कम लागत की मशीनें बनाने वाला मैकेनिकल इंजीनियर!

पर अब संजय जेल से बाहर हैं और उन पर चल रहा मुकदमा भी ख़ारिज हो चूका है। यह मुकदमा खुद लड़की के घरवालों ने वापिस लिया और अब वे संजय से अपनी बेटी की शादी भी करवाने के लिए तैयार हैं। यह सब मुमकिन हुआ एक 19 साल के लड़के की कोशिशों से।

Akash Singh, Founder of Energinee Innovations

उत्तर-प्रदेश में जेवर के पास एक गाँव के रहने वाले आकाश सिंह एक इनोवेटर और उद्यमी हैं। मात्र 18 साल की उम्र में उन्होंने अपने स्टार्टअप ‘एनर्जीनी इनोवेशन्स’ की शुरुआत की। उनका यह स्टार्टअप नोएडा के गौतम बुद्ध नगर जिले के कैदियों के साथ काम कर रहा है। यहीं पर आकाश की मुलाकात संजय से हुई और उन्होंने उन्हें अपने साथ काम करने के लिए हायर किया।

“जब हमारे स्टार्टअप के काम के बारे में मीडिया में आना शुरू हुआ तो हमने संजय की कहानी को आगे रखा। उस लड़के में स्किल्स तो थी हीं, साथ ही कुछ नया सीखने का पूरा जज़्बा भी था। अख़बारों ने हमारे काम के साथ-साथ संजय की कहानी को छापा कि कैसे एक गलतफहमी का शिकार नौजवान अपनी ज़िन्दगी के सबसे ज़रूरी साल जेल में बिता रहा है। इसके अलावा, हमने जेल के अधिकारीयों से बात की और उनसे लड़की के परिवार को समझाने के लिए कहा,” द बेटर इंडिया से बात करते हुए आकाश ने बताया।

यह भी पढ़ें: महिलाओं को बिज़नेस करने के लिए आर्थिक मदद देती हैं ये 8 सरकारी योजनाएं!

जेल में भी सभी लोग संजय के व्यवहार और मेहनती स्वाभाव से प्रभावित थे। उन्होंने लड़की के परिवार को बताया कि कैसे वह लड़का अपने टैलेंट के दम पर जेल में रहकर भी काम कर रहा है। पुलिस प्रशासन और आकाश के समझाने पर उन्होंने केस वापिस लिया। आज संजय अपने परिवार के साथ हैं और फ़िलहाल, आकाश की टीम के साथ ही काम कर रहे हैं।

Akash along with his co-founder, Naresh Bhati (Right) and Sanjay (Left)

आकाश का स्टार्टअप सिर्फ संजय की ही नहीं बल्कि जेल में रह रहे अन्य कैदियों की ज़िन्दगी में भी किसी न किसी तरह से बदलाव लाने के लिए प्रयासरत है।

‘एनर्जीनी इनोवेशन्स’ का आईडिया

गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कॉलेज, मानेसर से डिप्लोमा करने वाले आकाश ने साल 2018 में ‘एनर्जीनी इनोवेशन्स’ की शुरुआत की।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए आकाश ने बताया, “कॉलेज के दिनों में अक्सर मैं पास के एक मंदिर में जाया करता था। उस मंदिर के पास एक तालाब भी है और वह मंदिर के वेस्ट की वजह से पूरा खत्म हो चूका है। उसकी हालत देखकर मुझे लगा कि न जाने कितने तालाबों का हमारे यहाँ सिर्फ आस्था के चलते अस्तित्व खत्म हो गया क्योंकि हमारी मान्यता है कि पूजा-पाठ से संबंधित चीजें हम बहते पानी में प्रवाहित करते हैं। तब मुझे लगा कि इस विषय पर कुछ करना चाहिए।”

Akash realized that our faith and beliefs are chocking up our environment

आकाश उस समय अपने आखिरी सेमेस्टर में थे और उन्हें उनकी काबिलियत के बल पर जापान की एक कंपनी के साथ काम करने का मौका भी मिल चूका था। पर हमेशा से ही इनोवेशन की तरफ झुकाव रखने वाले आकाश ने अपने देश में रहकर अपना कुछ करने की ठानी। ताकि उनकी जो भी स्किल्स हैं, उन्हें वह अपने देश को बेहतर बनाने में लगें।

“मेरे पास आईडिया तो था ही कि मुझे मंदिरों से निकलने वाले वेस्ट को, उसमें भी सबसे पहले अगरबत्तियों से बचने वाली राख को प्रोसेस करके कुछ नया बनाना है। इससे वेस्ट भी रीसायकल हो जायेगा और जल-प्रदुषण से भी हम बचेंगे। लेकिन कहाँ बैठकर, क्या करें, उसके लिए कोई तरीका समझ नहीं आ रहा था। तब मेरे मेंटर और प्रोफेसर जाकिर हुसैन ने मुझे नीति आयोग के अटल इन्क्यूबेशन सेंटर के बारे में बताया,” उन्होंने आगे कहा।

यह भी पढ़ें: दो भाइयों ने बनाई सस्ती विंड टरबाइन, अगले 20 साल के लिए पायें मुफ्त बिजली!

अटल इन्क्यूबेशन सेंटर, एक प्लेटफार्म है जहां पर कोई भी अपने इनोवेटिव आईडिया पिच कर सकता है और यदि आपका आईडिया वाकई आगे बढ़ सकता है तो यह सेंटर आपको सभी साधन उपलब्ध करवाता है। आकाश का आईडिया भी यहाँ पर पास हो गया और अपने दोस्त, नरेश भाटी के साथ मिलकर उन्होंने अपने स्टार्टअप की शुरुआत की।

बदलाव की राह 

आकाश बताते हैं कि उन्होंने सबसे पहले दिल्ली के कुछ मंदिरों में बात करके वहां डस्टबिन रखवाए और राख और नारियल के छिलकों को इकट्ठा करवाना शुरू किया। इन दोनों चीजों को प्रोसेस करके उनका आईडिया इन्हें अलग-अलग हेंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स का रूप देने का था। लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसा कैसे करें?

ऐसे में, उन्हें अटल इन्क्यूबेशन सेंटर बिमटेक की एक टीम ने ही जेल के कैदियों के साथ काम करने की सलाह दी। गौतम बुद्ध नगर जेल में कैदियों के लिए बिमटेक लाइब्रेरी स्थापित की गयी है। उनकी टीम के साथ आकाश और नरेश ने यहाँ का दौरा किया।

“सबसे पहले हमने 30 कैदियों को हेंडीक्राफ्ट स्किल्स पर ट्रेनिंग करवाई। फिर उन्होंने प्रोडक्ट्स बनाना शुरू किया। लेकिन इसके 15 दिन बाद उनमें से 22 कैदियों को बेल मिल गयी और ऐसे में मुझे लगा कि इस तरह तो हमारा काम रुकेगा। पर दूसरे ही दिन, 40 से भी ज्यादा कैदियों ने हमारे साथ काम करने की इच्छा जताई,” आकाश ने कहा।

Some of the products made by prisoners using ash and coconut husk

आज आकाश के साथ 35 कैदी काम कर रहे हैं। इसके अलावा, कुछ लोग जो पहले उनके साथ काम कर रहे थे, रिहा होकर बाहर चले गये हैं। पर आकाश की टीम ने उन्हें जो स्किल्स सिखाई वो बाहर काम ढूंढने में उनके लिए मददगार साबित हो रही हैं। रिहा हो चुके 8 कैदियों को रोज़गार के लिए उन्होंने अलग-अलग सामाजिक संगठनों से जोड़ा है।

जो भी अलग-अलग स्कल्पचर और अन्य क्राफ्ट ये लोग बनाते हैं, उन्हें कॉर्पोरेट गिफ्टिंग के लिए मार्किट करने के अलावा, गिफ्टिंग स्टोर्स में बेचा जाता है। आकाश कहते हैं धीरे-धीरे वे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर भी अपनी पहुँच बना रहे हैं।

आसान नहीं था सफर 

आकाश का यहाँ तक का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं रहा। शुरू में तो जेल के कैदियों के साथ काम करना उनके लिए सिर्फ एक मजबूरी थी।

“मेरे पास कोई फंडिंग नहीं थी तो कोई और रिसोर्स कहाँ से लाता। लेकिन जब मैंने इन लोगों के साथ काम किया। इनके साथ वक़्त बिताया तो समझ में आया कि जेल में रहने वाले लगभग 70% लोग बिना किसी क्राइम के सजा काट रहे हैं। मुझे अभी भी याद है जब होली के बाद मैं उनसे मिलने गया तो सबने बहुत सम्मान से मुझे धन्यवाद कहा और पूछने पर बताया कि हमारे साथ काम करने से उन्हें जो पैसे मिले, उनसे वे इस बार होली का त्यौहार बहुत अच्छे से मना पाए। कुछ लोगों ने अपने घर भी पैसे भेजे, ” उन्होंने आगे कहा।

बस उस दिन आकाश का नजरिया बदल गया। उन्होंने ठान लिया कि अब यह उनके जीवन का उद्देश्य है कि वह इन कैदियों की ज़िन्दगी में कोई सकारातमक बदलाव लाएंगे। संजय की कहानी इस बदलाव का सबसे अच्छा उदहारण है। क्योंकि संजय खुद मानते हैं कि अगर आकाश उनसे ना मिलते और उन्हें यह काम न मिलता तो पता नहीं और कितने सालों तक उनका मुकदमा अटका रहता।

Sanjay playing ludo with inmates

इस तरह से उनका स्टार्टअप तीन तरह से समाज में बदलाव की वजह बन रहा है- सबसे पहले, वेस्ट मैनेजमेंट में मदद करना, दूसरा जल-प्रदुषण को बहुत हद तक रोकने की पहल और तीसरा, इन जेल के कैदियों को जेल के निराशाजनक माहौल में भी एक उम्मीद की किरण देना!

यह भी पढ़ें: आईआईटियन का आईडिया: ई-वेस्ट से बना देते हैं नया सोफा, फ्रिज और वॉशिंग मशीन; कई कारीगरों को मिला रोज़गार!

आकाश की टीम में फिलहाल 22 लोग हैं और ये सभी लोग 25 साल से कम उम्र के हैं। आकाश कहते हैं कि यह उनकी ‘ड्रीम टीम’ है क्योंकि वे सभी लोग मुश्किलों का हल निकालने के बारे में सोचते हैं और दिन-रात एक करके इस स्टार्टअप को सफल बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं।

Along with his team members

‘अशोका यंग चेंजमेकर्स’ प्रोग्राम का हिस्सा रहे आकाश अंत में सिर्फ इतना ही कहते हैं, “एक उद्यमी होना बिल्कुल भी आसान नहीं है। हो सकता है कि आप सुबह फ्लाइट में सफ़र कर रहे हैं और शाम को आपके पास बस का भी किराया न हो। कभी आप फाइव स्टार होटल में खाते हैं तो कभी एक वक़्त के खाने के पैसे भी नहीं होते। अपने उद्यम को सफल बनाने के लिए बहुत मेहनत और धैर्य की ज़रूरत होती है। एक सफल उद्यमी वही हो सकता है जो समाज की किसी मुश्किल का हल दे क्योंकि जो इनोवेशन समाज के काम नहीं आ सकता वह किसी काम का नहीं।”

आकाश सिंह अपने स्कूल के समय में भी अपने इनोवेशन्स के लिए हमेशा चर्चा में रहे। उन्होंने 2015 में विंड हार्नेसिंग मशीन बनाई थी, जिसके लिए खुद प्रधानमंत्री ने उनकी सराहना की। इसके बाद, उन्होंने स्मार्ट इरीगेशन स्प्रिन्क्ल मशीन और सेल्फ पॉवर जनरेटिंग स्टिक भी बनायी। इनके लिए भी उन्हें काफी सराहा गया।

अब आकाश सिंह अपने स्टार्टअप के ज़रिये देश में बड़े स्तर पर एक सकारातमक बदलाव लाना चाहते हैं। और हम उम्मीद करते हैं कि वह अपने इस अभियान में सफल रहें। यदि आप आकाश से सम्पर्क करना चाहते हैं तो 09457138214 पर फ़ोन कर सकते हैं।

संपादन – मानबी कटोच 

Summary: 19 year old Akash Singh launched his startup Energinee Innovations, which aims to help temples recycle waste and enable prisoners to get a livelihood. They are using temple waste like ash and coconut husks to make handicraft products and they have employed prison inmates as their artisans. This way, the startup is tackling 3 problems, one waste-management, second saving the water bodies and third, transforming prisoners


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X