सुरैया: भारत की ‘सुर-सम्राज्ञी,’ जो बनी हिंदी सिनेमा की पहली ‘ग्लैमर गर्ल’!

हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री और गायिका, सुरैया को मल्लिका-ए-हुस्न, मल्लिका-ए-तरन्नुम और मल्लिका-ए-अदाकारी जैसे नामों से भी जाना जाता है। साल 1929 में लाहौर में जन्मीं सुरैया का पली-बढीं बॉम्बे में। 40 और 50 के दशक में वे बॉलीवुड की सबसे महंगी अदाकारा थीं। साल 2004 में उनका निधन हो गया।

हते हैं कि मुंबई ‘सपनों का शहर’ है, जो किसी के लिए नहीं रुकता। लेकिन अगर कोई इस शहर के ट्रैफिक में फंस जाये, तो भागना तो क्या घंटों तक रेंगना पड़ जाता है। खैर, आज के ज़माने में इस ट्रैफिक की वजह है सड़कों पर बस, ऑटो-रिक्शा, दुपहिया और गाड़ियों की लम्बी-लम्बी कतारें।

पर कहते हैं कि एक वक़्त था, जब मुंबई, मुंबई नहीं बल्कि बॉम्बे हुआ करती थी, और उस वक़्त, बॉम्बे के मरीन ड्राइव रोड पर गाड़ियों की लम्बी कतारों के चलते नहीं, बल्कि एक लड़की की वजह से ट्रैफिक जाम लगता था। वह लड़की थी हिंदी सिनेमा जगत की सबसे मशहूर अभिनेत्री और गायिका, जिसकी एक झलक पाने के लिए उसके घर के बाहर लाखों की भीड़ जमा हो जाती थी।

अपने समय की सबसे महँगी कलाकार, सुरैया, जिन्हें मल्लिका-ए-हुस्न, मल्लिका-ए-तरन्नुम और मल्लिका-ए-अदाकारी जैसे नामों से नवाज़ा गया।

सुबह से लेकर शाम तक, मरीन ड्राइव में उनके घर ‘कृष्णा महल’ के बाहर उनके चाहने वालों की लाइन लगी रहती थी। कभी-कभी तो मामला यहाँ तक पहुँच जाता कि भीड़ को संभालने के लिए पुलिस को आना पड़ता था। सुरैया बहुत कम ही अपनी फ़िल्मों के प्रीमियर पर जाती थीं, क्योंकि यहाँ उनके कद्रदानों और चाहने वालों की भीड़ बेकाबू हो जाती थी। कई बार तो खुद सुरैया को चोट लगी और इसी के चलते वे बहुत कम ही पब्लिक इवेंट में जाती थीं।

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सुरैया का पूरा नाम सुरैया जमाल शेख़ था। 15 जून 1929 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) में जन्मीं सुरैया, अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं। उनके जन्म के एक साल बाद ही उनका परिवार बॉम्बे आकर बस गया और यहाँ, उनके मामूजान, एम. ज़हूर फ़िल्मों में काम करने लगे। 30 के दशक के हिंदी सिनेमा के मशहूर खलनायकों में उनका नाम भी शुमार होता है। अपने मामा की वजह से ही सुरैया का रिश्ता हिंदी सिनेमा जगत से जुड़ा।

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फोटो साभार

सुरैया में गायिकी और एक्टिंग का टैलेंट बचपन से ही था। अक्सर वे अपने मामा के साथ फिल्म के शूट पर जाया करती थीं और यहीं, साल 1941 में उन्हें नानूभाई वकील की ‘ताज महल’ फिल्म में युवा मुमताज महल का किरदार निभाने का मौका मिला। इस फिल्म के बाद उन्होंने कभी भी मुड़कर नहीं देखा। उन्हें एक के बाद एक फ़िल्में मिलने लगीं।

एक्टिंग के साथ-साथ उनकी गायिकी का सफ़र भी शुरू हो चूका था। सुरैया उस समय ऑल इंडिया रेडियो पर गाती थीं और यहीं पर एक रिकॉर्डिंग के दौरान नौशाद अली (संगीतकार) ने उन्हें सुना। वे सुरैया की आवाज़ से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी फ़िल्मों के लिए सुरैया को प्लेबैक सिंगर के तौर पर काम दिया।

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साल 1943 में आई फिल्म ‘इशारा’ ने उन्हें रातोंरात फिल्म स्टार बना दिया। इस फिल्म में सुरैया को अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के साथ बतौर लीड हीरोइन काम करने का मौका मिला। उस समय सुरैया सिर्फ़ 14 साल की थीं, जबकि पृथ्वीराज कपूर की उम्र 37 साल थी। इस फिल्म के दौरान पृथ्वीराज ने भी माना कि उनके लिए सुरैया के साथ काम करना आसान नहीं था, क्योंकि परदे पर वह उनकी हीरोइन थीं और जैसे ही कैमरा बंद होता तो वे उनके लिए उनकी बेटी की तरह थीं। पर पृथ्वीराज कपूर और सुरैया की इस फिल्म को बहुत सराहना मिली।

पृथ्वीराज कपूर के अलावा उन्होंने उस समय के बेहतरीन गायक और एक्टर के. एल सहगल के साथ भी काम किया था। सहगल ने एक बार उनकी आवाज़ सुनी और वे उनके कायल हो गये। उन्होंने साल 1945 में आई फिल्म ‘तदबीर’ के लिए डायरेक्टर से सुरैया को कास्ट करने के लिए सिफ़ारिश की। सुरैया ने जिन भी फ़िल्मों में एक्टिंग की, उन सभी में उन्होंने गायकी भी की।

जितना लोग उनकी अदाकारी के दीवाने थे, उतनी ही उनके आवाज़ के। सुरैया को ‘सुर सम्राज्ञी’ के साथ-साथ बॉलीवुड की ‘ग्लैमर गर्ल’ भी कहा जाने लगा।

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फोटो साभार

40 और 50 के दशक में बॉलीवुड की इस पहली ‘ग्लैमर गर्ल’ ने एक से बढ़कर एक फ़िल्में दीं, जिनमें शमा, मिर्ज़ा ग़ालिब, दो सितारे, खिलाड़ी, सनम, कमल के फूल, विद्या आदि शामिल हैं। उनकी फ़िल्मों के अलावा उनके गीत आज भी भुलाये नहीं भूलते। इन गीतों में, सोचा था क्या मैं दिल में दर्द बसा लाई, तेरे नैनों ने चोरी किया, ओ दूर जाने वाले, वो पास रहे या दूर रहे, तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी, मुरली वाले मुरली बजा आदि शामिल हैं।

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साल 1954 में आई ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ फिल्म में उन्होंने नवाब जान का किरदार निभाया था, जो ग़ालिब से बेहद प्यार करती थीं। फिल्म में ग़ालिब की पांच ग़ज़लों को सुरैया ने अपनी आवाज दी। उनके गायन और अभिनय के चलते ये फिल्म, हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फ़िल्मों में शुमार होती है। इतना ही नहीं, इस फिल्म में उनके गायन के लिए उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने भी सराहा था।

नेहरु ने एक समारोह के दौरान सुरैया से कहा, “तुमने ग़ालिब की रूह को एक बार फिर ज़िन्दा कर दिया।” 

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नरगिस और सुरैया के साथ जवाहर लाल नेहरु (फोटो साभार)

सुरैया के लिए नेहरु की यह सराहना किसी ऑस्कर से भी बढ़कर थी। यह फिल्म हिंदी सिनेमा की पहली फीचर फिल्म थी, जिसे ‘प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल’ मिला।

साल 1936 से लेकर साल 1963 तक, सुरैया ने 67 फ़िल्मों में काम किया और लगभग 338 गानों में अपनी आवाज़ दी। सुरैया उस पीढ़ी की आख़िरी कड़ी में से एक थीं, जिन्हें अभिनय के साथ-साथ गायिकी में भी महारत हासिल थी। साल 2004 में 31 जनवरी को सुरों की इस मल्लिका ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

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सुरैया तो चली गईं और पीछे छोड़ गयीं अपने अभिनय और अपनी आवाज़ की एक ऐसी विरासत, जिसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता है। आज जब भी उनकी बात होती है तो मन कहीं न कहीं खुद ही उनका गीत गुनगुनाने लगता है कि ‘वो पास रहें या दूर रहें, नज़रों में समाये रहते हैं…’

भारत की इस अनमोल रत्न को शत-शत नमन!

(संपादन – मानबी कटोच)


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