महंगे इलाज के इस युग में कुछ फ़रिश्ते अभी भी है, जो भगवान बनकर गरीबों के इलाज के लिए तत्पर है। इनके लिए डॉक्टर की उपाधि भगवान का दिया एक तोहफ़ा है, जो जरूरतमंदों की भलाई करने के लिए है, न कि सिर्फ और सिर्फ कमाई करने के लिए। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ऐसे ही चिकित्सकों में से एक है, जिन्होनें अपने पेशे के साथ-साथ सामाजिक कर्तव्य को आज भी ज़िन्दा रखा है।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी आज भी ग़रीब मरीज़ों से इलाज के लिए मात्र पाँच रुपये फ़ीस के रूप में लेते है।

ऐसे चिकित्सक विरले ही है, जो आज के इस महंगे चिकित्सा सेवाओं के युग में भी रोज़ाना सैकड़ों जरूरतमंद मरीज़ों को अपनी सेवाएं केवल 5 रुपये में दे रहे हों। 80 साल के डॉ. मुखर्जी 1966 से लेकर आज तक रांची में सिर्फ 5 रुपये के टोकन फ़ीस में ग़रीब मरीज़ों का इलाज कर रहे है।
यही नहीं डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी वैसे मरीज़ों का मुफ़्त में भी इलाज करते है, जिनके पास 5 रुपये देने की भी क्षमता नही हैं। ग़रीबों के फरिश्ते के रुप में अपनी पहचान बना चुके डॉ. मुखर्जी अपनी बढ़ती उम्र में भी रोज़ाना दो घंटे से भी ज़्यादा समय ग़रीब मरीज़ों के इलाज के लिए देते है। वहीं दवा कंपनियों से मिले मुफ़्त दवाओं को भी डॉक्टर साहब जरुरतमंदों में बांट देते है।
रांची के लालपुर चौक स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के क्लिनीक में मरीज़ों की लंबी कतार रहती है। सिर्फ़ ग़रीब ही नहीं, समाज के हर तबके के लोग इनसे स्वास्थ्य सलाह और इलाज के लिए आते है।

रांची के राजेन्द्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंस के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर मुखर्जी के जीवन का मूल मंत्र है- ग़रीबों की सेवा करना और इसी उद्देश्य से वे पिछले 50 साल से रांची एवं झारखंड के अन्य जिलों के हज़ारों मरीज़ों को हर माह सिर्फ़ 5 रुपये की फ़ीस लेकर इलाज कर रहे हैं।
डॉ. मुखर्जी के क्लिनीक में पिछले 40 साल से टेक्निशियन के रूप में कार्यरत शंकर बताते है –
“डॉक्टर मुखर्जी गरीबों के लिए भगवान है, रांची के अलावा, गुमला, बोकारों सिमडेगा, खूंटी, पलामू, लातेहार, हज़ारीबाग़ सहित झारखंड के कई जिलों से लोग यहां इलाज के लिए आते है।”
दे बेटर इंडिया से बात करते हुए डॉ. मुखर्जी बताते है कि
“बढ़ती उम्र की वजह से अब सिर्फ़ शाम के दो-तीन घंटे का समय मैं मरीजों को दे पाता हूँ, लेकिन किसी भी मरीज़ को मैं वापस नहीं लौटाता हूँ।”
डॉ. मुखर्जी बताते है कि मेरा मकसद है कि-
“ग़रीब से ग़रीब आदमी का इलाज पैसे की वजह से न रूके, इसी सोच के साथ रांची में सन 1966 से मैं ग़रीबों को अपनी सेवा दे रहा हूँ , बहुत से लोग मेरे पास ऐसे भी आते है, जिनके पास 5 रुपये भी नहीं होते है, मैं उनका इलाज मुफ़्त में करता हूँ। स्कूल को आर्थिक सहायता, ग़रीब की बेटी की शादी, जरुरतमंद के इलाज में मदद करना ये मेरी जिंदगी का हिस्सा है, जो चलता रहता है। ग़रीबों के इलाज के अलावा मैं हर तरह से समाज को अपनी सेवा देने की कोशिश करता रहता हूँ।”
टीबीआई की टीम जब डॉक्टर मुखर्जी से मिलने उनके क्लिनीक में पहुंची तो दर्जनों की तादाद में मरीज़ अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे।

मरीज़ों में से एक जासो देवी ने बातचीत के क्रम में बताया कि-
“डॉक्टर साहब नियम के पक्के हैं। 30 साल से मैं इनके पास आ रही हूँ, कभी 5 रुपये से ज़्यादा नहीं लिया, कई ग़रीब लोगों से तो वो भी नहीं लेते है।”
वहीं दूसरी मरीज़ सोनाली बताती है-
“अगर डॉ. मुखर्जी न होते, तो मेरे बच्चे के इलाज में मेरा परिवार दिवालिया हो गया होता, किसी भी डॉक्टर की फ़ीस 500 से कम नहीं है, लेकिन हमारे डॉक्टर साहब सिर्फ़ 5 रुपये में हमारा इलाज करते है।”
डॉ. मुखर्जी रांची के प्रसिद्ध रिम्स मेडिकल कॉलेज से प्रोफ़ेसर के पद से सेवानिवृत हुए है।

अपने बेटे के इलाज के लिए हजारीबाग से रांची आई भारती ने बताया कि डॉ. मुखर्जी रांची के मशहूर रिम्स मेडिकल कॉलेज से प्रोफ़ेसर के पद से सेवानिवृत हुए है।
“अनुभव का तो भंडार है इनके पास, रांची नहीं पूरे देश की शान है हमारे मुखर्जी सर।”
भारती आगे बताती है-
“डॉ मुखर्जी को तो अमिताभ बच्चन ने कौन बनेगा करोड़पति में गेस्ट के रुप में शामिल किया था।”
मरीज़ों से भरे हुए क्लिनीक के एक कोने में डॉक्टर मुखर्जी सौम्य भाषा में मरीज़ों से हाल-चाल भरे लहजे में बातें कर रहे थे और दूसरी तरफ़ हमारी मुलाकात एक दवा कंपनी के प्रतिनिधी आशीष से हुई।
आशीष ने बताया कि
“मैने ज़िन्दगी में पहली बार ऐसा डॉक्टर देखा है, जो हमें सस्ती दवा लाने की सलाह देता है और सस्ती दवा होने पर मरीज़ों को वही लिखते है। डॉक्टर साहब के पास मरीज़ों की लाइन लगी रहती है और लगे भी क्यों न आज के युग में ऐसे देवता जैसे डॉक्टर कहां मिलते हैं।”
ढलती उम्र में भी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी आज के चिकित्सकों के लिए एक मिसाल हैं। सिर्फ़ 5 रुपये फ़ीस के नाम पर लेकर ग़रीबों के लिए भगवान के अवतार के रुप में काम कर रहे हैं। रोज़ाना सैकड़ों मरीज़ों को समय देने वाले डॉ. मुखर्जी के चेहरे पर आज भी थकान नहीं दिखती है। जज़्बा और जुनून को हमसफ़र बनाकर डॉ. मुखर्जी चाहते है, कि स्वास्थ्य सेवाएं समाज के आख़िरी आदमी तक पहुंचे।
आज के युवा डॉक्टरों को संदेश देते हुए डॉक्टर मुखर्जी कहते हैं कि आज के युवा चिकित्सक अगर रोजाना एक मरीज़ का भी मुफ़्त में इलाज करें , तो हमारे देश में स्वास्थ्य सुविधाओं में बहुत सुधार हो पाएगा।
(संपादन – मानबी कटोच)
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