वह कहते हैं न कि आप जैसी संगत में रहते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। शायद इसलिए बच्चों को भी महापुरुषों की कहानियां पढ़ने और उनके बारे में जानने के लिए कहा जाता है। ताकि वह उनसे प्रेरणा लेकर अच्छा काम कर सकें। बरगढ़ (ओड़िशा) के एक छोटे से गांव (Samleipadar) समलेईपदर के रहनेवाले जलंधर पटेल के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ।
जलंधर का बचपन, ओड़िशा की जानी-मानी स्वतंत्रता सेनानी पार्वती गिरी की महानता की कहानियां सुनकर ही बीता। पार्वती गिरी की समाज सेवा से प्रेरित होकर, वह हमेशा से जरूरतमंदों के लिए कुछ करना चाहते थे। अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए, वह आज अपने दम पर सिर्फ अपने गांव के ही नहीं, बल्कि उनके पास आने वाले हर बेसहारा बुजुर्ग की देखभाल कर रहे हैं। उन्होंने उनके लिए एक छोटा सा वृद्धाश्रम बनवाया है।
जलंधर के पास चार एकड़ खेत हैं, जिसमें वह गेंदे के फूल और चावल की खेती करते हैं। इसी से वह अपने परिवार के सात सदस्यों और वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों की देखभाल करते हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहते हैं, “आज मेरे पास पैसे नहीं बचते, मैं जितना भी कमाता हूँ वह पूरा का पूरा खर्च हो जाता है। कभी-कभी तो लोन भी लेना पड़ता है। लेकिन इसके बावजूद मैंने कभी भी इस वृद्धाश्रम को बंद करने के बारे में नहीं सोचा। जितने भी लोग मेरे पास आते हैं, मैं और मेरा परिवार उनकी ख़ुशी-ख़ुशी देखभाल करते हैं।”
कैसे आया आश्रम खोलने का ख्याल?
जलंधर, बचपन से ही पार्वती गिरी द्वारा किए गए समाज सेवा के कार्यों से काफी प्रभावित रहे। वह सालों से पार्वती गिरी की जयंती (19 जनवरी) पर गरीब और बेसहारा लोगों को राशन और जरूरी सामान दिया करते थे। साल 2016 में, उन्होंने सोचा कि एक दिन की मदद करने के बाद इन बुजुर्गों को पूरे साल सड़क के किनारे दयनीय हालत में ही रहना पड़ता है। क्यों न इनके रहने की भी व्यवस्था की जाए?
तक़रीबन एक साल तक पैसे जमा करने के बाद, उन्होंने साल 2017 में पार्वती गिरी के नाम से ही वृद्धाश्रम शुरू किया। तब उन्होंने 10 से 15 लोगों के रहने के लिए कमरा बनवाया और छह लोगों के साथ इस आश्रम की शुरुआत की। आज इस आश्रम में 25 लोग रह रहे हैं। वह उनके रहने के साथ-साथ, उनके खाने-पीने और दवाइयों का खर्च भी उठाते हैं। उनका पूरा परिवार इन बुजुर्गों की देख-भाल में उनका साथ देता है। बीमार होने पर उनकी सेवा करना हो या उनको खाना खिलाना, पूरा परिवार ख़ुशी से यह सारे काम करता है।
जिसका कोई नहीं, उनके साथी हैं जलंधर
उन्होंने बताया कि यहां ज्यादातर ऐसे लोग रहते हैं, जिनका खुद का कोई परिवार नहीं है। कभी-कभी तो कुछ बुजुर्ग अपने घर से परेशान होकर या किसी पारिवारिक झगड़े के कारण भी मेरे पास आ जाते हैं, लेकिन हम उन्हें समझाकर वापस भेज देते हैं।
आश्रम में रह रहे बुजुर्गों की उम्र 70 से 90 वर्ष के करीब है। इसलिए वे सभी शरीरिक रूप से कमजोर हैं और उनकी ज्यादा देखभाल करनी पड़ती है। बीमार होने पर जलंधर उन्हें बरगढ़ के बड़े अस्पताल में भी ले जाते हैं। आश्रम में रह रहे किसी बुजुर्ग की मृत्यु होने पर, वह परिवार के सदस्य की तरह उनका अंतिम संस्कार भी करते हैं।
वृद्धाश्रम में रह रहीं एक दिव्यांग बुजुर्ग महिला बताती हैं, “मेरा खुद का कोई परिवार नहीं था। मैं अपने भतीजे के घर पर रह रही थी। लेकिन मेरी इस हालत के कारण, वह नहीं चाहते थे कि मैं उनके साथ रहूं। तभी मुझे इस आश्रम का पता चला और मैं यहां चली आई। मेरे बेटे की उम्र के जलंधर, एक पिता की तरह मेरी देखभाल करते हैं।”
फिलहाल इस आश्रम में 13 महिलाएं और 12 पुरुष रह रहे हैं।
पूरा परिवार देता है साथ
जलंधर, जब काम में व्यस्त रहते हैं, तो उस दौरान उनकी पत्नी और बेटा नियमित रूप से आश्रम में जाते हैं। उनके बेटे विकास पटेल, फ़िलहाल बैचलर ऑफ सोशल वर्क की पढ़ाई कर रहे हैं। विकास, आगे चलकर अपने पिता के इस काम में, उनका साथ देना चाहते हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए विकास कहते हैं कि हम चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खुद के पैसों से इनकी सेवा करें।
हालांकि कभी-कभी उन्हें गांव के कुछ लोगों से राशन व सब्जी जैसी दूसरी मदद मिलती रहती है। जलंधर ने बताया कि आश्रम को चलाने के लिए महीने में 40 हजार का खर्च आता है।
हालांकि हम सभी जीवन में किसी न किसी महान हस्ती से प्रभावित होते हैं। लेकिन जलंधर जैसे बहुत कम लोग ही होते हैं, जो उनके विचारों को अपने जीवन का हिस्सा बनाते हैं। उन्होंने पार्वती गिरी के जीवन से न सिर्फ प्रेरणा ली, बल्कि उनके मूल्यों को अपनाया भी है। आज वह अपने गांव में दूसरों के लिए आदर्श रूप बन गए हैं।
आशा है कि आपको भी उनसे प्रेरणा जरूर मिली होगी। आप जलंधर से बात करने या उनकी मदद करने के लिए 9937121317 पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- अर्चना दुबे
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