भारत के अमुल्य रत्नों में एक, भारतीय खेल जगत का सितारा, मशहूर धावक 19 जून 2021 को हमें अलविदा कह गया। 91 साल के अपने बेहतरीन जीवन काल में मिल्खा सिंह (Milkha Singh) ने देश को दुनियाभर में जो सम्मान दिलाया वह अमिट्य है। वह भारत के शिखर पर चमकने वाला वह ध्रूव तारा हैं, जो पहुंच से तो दूर हो गए, लेकिन यादों से दूर नहीं हो सकते। उनकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ सकती।
संघर्ष भरा मिल्खा सिंह का जीवन
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को पंजाब स्थित मुजफ्फरगढ़ के गोविंदपुरा गांव (Now in Pakistan, Muzaffargarh) में हुआ था। वह 15 भाई-बहन थे, जिनमें से 8 की मृत्यु भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पहले ही हो गई थी। दंगों में उनके माता-पिता, एक भाई और 2 बहनों को उनकी आखों के सामने मार दिया गया और मिल्खा अनाथ हो गए। कुछ दिन वह अपनी शादी-शुदा बहन ईशर के घर रहें।
ट्रेन में बिना टिकट सफर करने के कारण, उन्हें ‘तिहाड़ जेल’ में कैद कर दिया गया। उन्हें रिहा कराने के लिए उनकी बहन ने अपने गहने बेंच दिए। अभावों भरे जीवन के कारण डाकू बन रहे मिल्खा सिंह को भाई मलखान ने भारतीय सेना में चल रही भर्ती में जाने की सलाह दी। 1951 में अपने चौथे प्रयास में मिल्खा सफल हुए और सिकंदराबाद के Electrical Mechanical Engineering Centre में तैनाती के दौरान, उन्हें धावकों से मिलवाया गया और यहां से ही उन्होंने दौड़ने की शुरुआत की।
International Career of Milkha Singh
सिंह ने 1956 के मेलबर्न ओलंपिक खेलों की 200 मीटर और 400 मीटर प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया। तब कम अनुभव के कारण, वह कोई कमाल न कर सके, लेकिन उन खेलों के आखिर में 400 मीटर चैंपियन चार्ल्स जेनकिंस के साथ एक बैठक ने उन्हें कई तरह से प्रेरित किया और उन्हें ट्रनिंग के बारे में जानकारी भी मिली।
साल 1958 में, आजादी के बाद वैश्विक खेल मंच पर पहली बार जिस खिलाड़ी ने भारत का सिर ऊंचा किया, वह थे मिल्खा सिंह। उस रेस के बाद सिंह और देश दोनों को नई पहचान मिली।
जब कार्डिफ ने कहा- “What is India, India is Nothing”
Times Of India को दिए एक इंटरव्यू में मिल्खा सिंह ने बताया था, “मैं टोक्यो एशियन गेम्स में दो गोल्ड मेडल्स (200 मीटर और 400 मीटर) जीतकर 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स (कार्डिफ, वेल्स) में हिस्सा लेने पहुंचा था। जमैका, साउथ अफ्रीका, केन्या, इंग्लैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के वर्ल्ड क्लास एथलीट्स वहां थे। कार्डिफ में चुनौती बेहद तगड़ी थी। कार्डिफ के लोग सोचते थे: ‘अरे इंडिया क्या है, इंडिया इज नथिंग।’ मुझे यकीन नहीं था कि मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीत सकता हूं। उस तरह का भरोसा कभी रहा ही नहीं, क्योंकि मेरी टक्कर वर्ल्ड रेकॉर्ड होल्डर मैल्कम क्लाइव स्पेंस (साउथ अफ्रीका) से थी। वह उस समय 400m रेस में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धावक थे।”
मिल्खा सिंह ने कहा था, “मैं मेरे अमेरिकन कोच, डॉ. आर्थर डब्ल्यू हावर्ड को जीत का श्रेय दूंगा। उन्होंने स्पेंस को पहले और दूसरे राउंड में दौड़ते हुए देखा। फाइनल रेस से पहले वाली रात, वह चारपाई पर बैठे और मुझसे कहा, “मिल्खा, मैं थोड़ी-बहुत हिंदी ही समझता हूं, लेकिन मैं तुम्हें मैल्कम स्पेंस की रणनीति के बारे में बताता हूं और ये भी कि तुम्हें क्या करना चाहिए।”

कोच ने मुझसे कहा कि स्पेंस अपनी रेस के शुरुआती 300-350 मीटर धीमे दौड़ता है और फाइनल स्ट्रेच में बाकियों को पछाड़ देता है। डॉ. हावर्ड ने कहा, तुम्हें शुरू से ही पूरी स्पीड से जाना चाहिए क्योंकि तुममें स्टैमिना है। अगर तुम ऐसा करोगे तो स्पेंसर अपनी रणनीति भूल जाएगा।'”
विश्व का सबसे अच्छा धावक, भूला अपनी रणनीति
उन्होंने बताया था, “कार्डिफ आर्म्स पार्क स्टेडियम में रेस होनी थी। मैं नंबर 5 वाली आउटर लेन पर था, और स्पेंस दूसरी पर। मैं शुरू से ही पूरा दम लगाकर भागा, आखिरी 50 मीटर तक बड़ी तेज दौड़ा और जैसा डॉ हावर्ड ने कहा था, स्पेंस को अहसास हो गया कि ‘सिंह बहुत आगे निकल गया है।’ मुझे दिख रहा था कि स्पेंस अपनी रणनीति भूल गया है, क्योंकि वह मेरी बराबरी में लगा था। वह तेज दौड़ने लगा और आखिर में वह मुझसे एक फुट ही पीछे था। वह आखिर तक मेरे कंधों के पास था, मगर मुझे हरा नहीं पाया। मैंने 46.6 सेकेंड्स में रेस खत्म की और उसने 46.9 में।”
जब PM नेहरू से मांगी एक दिन की छुट्टी
कार्डिफ में मिल्खा सिंह द्वारा जीता गया वह गोल्ड मेडल, भारत के लिए बड़ा मौका था। जीत के बाद, जब क्वीन ने उन्हें गोल्ड मेडल पहनाया। स्टेडियम में करीब एक लाख अंग्रेज बैठे थे, भारतीय गिने-चुने ही थे। क्वीन जैसे ही गोल्ड मेडल पहनाकर गईं, तो क्वीन के साथ ही बैठी, एक साड़ी वाली औरत दौड़ती हुई सिंह के पास गई और बोली- “मिल्खा जी…पंडित जी (जवाहरलाल नेहरू) का मैसेज आया है, उन्होंने कहा है कि मिल्खा से पूछो कि उन्हें क्या चाहिए?
उस वक्त वह चाहते, तो अपने लिए देश के किसी भी कोने में जमीन या दिल्ली में घर मांग सकते थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने क्या मांगा? मिल्खा सिंह ने आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री से अपने लिए 1 दिन की छुट्टी मांगी। दरअसल, वह भारतीय सेना में नौकरी करते थे और जीत के बाद उन्होंने बहन के साथ खुशी बांटने के लिए 1 दिन की छुट्टी मांगी थी।
जब मिल्खा सिंह ने प्रेमिका की हथेली पर लिखा नंबर
मिल्खा सिंह की पत्नी, निर्मल कौर का जन्म पाकिस्तान के शेखपुरा में 8 अक्टूबर 1938 को हुआ था, वह भी खेल जगत से जुड़ी हुई थीं। दोनों की पहली मुलाकात 1955 में श्रीलंका के कोलंबो में एक टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के दौरान हुई थी।
निर्मल, पंजाब की वॉलीबॉल टीम की कप्तान थीं और मिल्खा सिंह एथलेटिक्स टीम का हिस्सा थे। इस दौरे पर एक भारतीय बिजनेसमैन ने वॉलीबॉल टीम और एथलेटिक्स टीम को खाने पर बुलाया था। मिल्खा सिंह ने एक बार कहा था कि उस जमाने में एक महिला से बात करना किसी शख्स के लिए भगवान से बात करने जैसा था।
निर्मल कौर पहली नजर में ही मिल्खा सिंह को पसंद आ गई थीं। मिल्खा इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते थे, लेकिन कह नहीं कर पा रहे थे। हालांकि, वापस लौटने से पहले उन्होंने आगे का रास्ता जरूर साफ कर दिया था। पार्टी से लौटते वक्त, मिल्खा ने निर्मल के हाथ पर अपने होटल का नंबर लिख दिया। दोनों ने कुछ समय बाद बात करना शुरू किया और साल 1958 में एक बार फिर दोनों की मुलाकात हुई।
प्यार की दौड़ भी जीते मिल्खा
दोनों की प्रेम कहानी साल 1960 में शुरु हुई, जब दोनों दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में दुबारा मिले। तब तक मिल्खा सिंह काफी नाम कमा चुके थे। दोनों साथ में काफी समय बिताते थे। 1960 में ही चंडीगढ़ में खेल प्रशासन ने मिल्खा को स्पोर्ट्स का डिप्टी डायरेक्टर बना दिया और निर्मल वूमेन स्पोर्ट्स की डायरेक्टर बनाई गईं।
तब तक हर तरफ दोनों के रिश्ते की चर्चा भी होने लगी थी। यही वह समय था, जब दोनों ने तय किया कि वह पूरी जिंदगी एक दूसरे के साथ बिताएंगे। तब तक मिल्खा और निर्मल एक साथ जिंदगी बिताने का फैसला कर चुके थे। हालांकि, दोनों परिवारों के बीच मतभेद के कारण शादी में अड़चनें भी आईं। लेकिन मिल्खा ने ये रेस भी जीत ली और मेडल के रूप में उन्हें निर्मल कौर का करीब 58 सालों का साथ मिला, दोनों ने शादी कर ली।
निर्मल ने राजनीतिक विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल की थी। उनकी खास बात यह थी कि वह चाहे नेशनल मैच खेलें या इंटरनेशनल, स्कर्ट की जगह वह हमेशा सलवार-कमीज़ पहनती थीं। मिल्खा सिंह कहते थे कि उनकी गैर मौजूदगी में भी पत्नी ने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं आने दी। मिल्खा-निर्मल की बेटी डॉक्टर और बेटे जीव मिल्खा, मशहूर गोल्फ प्लेयर हैं।
मिल्खा सिंह ने कोरोना संक्रमित होने के बाद 19 जून 2021 को चंडीगढ़ के PGI अस्पताल में अंतिम सांस ली। पांच दिन पहले ही उनकी पत्नी निर्मल सिंह (85) का देहांत हुआ था। दोनों एक दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करते थे। दोनों ने साथ जीने -मरने की जो कसम खाई थी, उसे निभाने में प्रकृति ने भी उनका पूरा साथ दिया। मौत भी दोनों को अलग नहीं कर सकी।
मिल्खा सिंह जैसे खिलाड़ी लाखों में नहीं करोड़ों में एक होते हैं। भारत अपने इस फ्लाइंग सिख को कभी नहीं भुला सकेगा!
संपादन – मानबी कटोच
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