अमूल आज देश का सबसे बड़ा डेयरी ब्रांड है, लेकिन क्या आपको पता है कि इसकी शुरुआत कैसे हुई थी? अमूल से पहले बाजार में पारसी उद्यमी पेस्तोनजी इडुलजी दलाल के पोलसन डेयरी का वर्चस्व था।
लेकिन, वे दूध को कम कीमत पर खरीद कर, ऊंची दर पर बेचते थे। जिसका 1946 में, गुजरात के आनंद में स्थानीय किसानों ने विरोध किया और उन्हें दूध बेचना बंद कर दिया। इसके बाद किसान सरदार वल्लभ भाई पटेल से मिले और उन्हें अपनी समस्या बताई।
इसके बाद, सरदार पटेल ने एक सहकारी संस्था बनाने का सुझाव दिया, ताकि इस उद्योग में बिचौलियों को खत्म किया जा सके और किसानों को सही कीमत मिले। इसी विचार के तहत, 14 दिसंबर 1946 को त्रिभुवन पटेल की अगुवाई में कैरा डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड (KDCMPUL) की नींव रखी गई और आगे चल कर यही अमूल डेयरी के नाम से लोकप्रिय हुआ।
डॉ. वर्गिस कुरियन ने दी नई ऊंचाई
1949 तक इस सहकारी संस्था से सिर्फ दो गांव जुड़े थे और यह काफी छोटे स्तर पर काम कर रहा था। तभी डॉ. वर्गिस कुरियन (Dr Verghese Kurien) इससे जुड़े और पूरी तस्वीर ही बदल दी।
कुरियन का जन्म 26 नवंबर 1921 को कालीकट के एक सीरियाई ईसाई परिवार में हुआ था। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय के लोयोला कॉलेज से फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया था। इसके बाद उन्होंने 1943 में इसी विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। 1946 में ट्रेनिंग के सिलसिले में वह जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील एंड ऑयरन कंपनी भी गए।
इसके बाद, उन्होंने राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु से डेयरी इंजीनियरिंग में ट्रेनिंग ली। फिर, 1948 में भारत सरकार द्वारा स्कॉरलशिप मिलने के बाद, वह मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एमएस करने के लिए अमेरिका के मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी चले गए। पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह भारत लौट आए।
कहा जाता है कि डॉ. वर्गिस कुरियन (Dr Verghese Kurien) एक न्यूक्लियर फिजिक्स साइंटिस्ट बनना चाहते थे। इसलिए वह अमेरिका से वापस नहीं लौटना चाहते थे। लेकिन, उन्हें भारत सरकार द्वारा स्कॉलरशिप, आनंद के गवर्नमेंट रिसर्च क्रीमरी में पांच साल अपनी सेवा देने के शर्त पर मिली थी। कुरियन ने डेयरी फार्मिंग की पढ़ाई सिर्फ इसलिए की थी, क्योंकि उन्हें अमेरिका जाने के लिए सरकारी स्कॉलरशिप मिल रही थी।
इसलिए उन्होंने बेहद ही अनमने ढंग से 1949 में आनंद का दौरा किया। लेकिन यहां पहुंचने के बाद, जब वह किसानों से मिले, तो उनकी सोच ही बदल गई और वह अपने अंत समय तक यहीं काम करते रहे और भारतीय इतिहास उन्हें ‘श्वेत क्रांति के जनक’ के रूप में जानता है।
शुरुआती दिनों में, अमूल में सिर्फ 247 लीटर दूध जमा होते थे, जिसकी आपूर्ति बॉम्बे मिल्क स्कीम को की जाती थी। धीरे-धीरे इससे कई किसान जुड़ गए। नतीजन, दूध का उत्पादन बॉम्बे मिल्क स्कीम की क्षमता से कहीं अधिक होने लगा।
दूध की प्रोसेसिंग पर दिया ध्यान
संस्था के दायरे में गांव की संख्या को बढ़ता देख, डॉ. वर्गिस कुरियन (Dr Verghese Kurien) ने दूध के प्रोसेसिंग के लिए उपकरणों को जुटाना शुरू कर दिया।
उस दौर में भारत में भैंस के दूध से पाउडर बनाने की कोई तकनीक नहीं थी। कुरियन ने इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए अपने अमेरिकी दोस्त एचएम दलाया को भारत बुलाया और 1955 में पहली बार भैंस के दूध से पाउडर बनाने में सफलता हासिल की।
श्वेत क्रांति की शुरुआत
डॉ. वर्गिस कुरियन (Dr Verghese Kurien) को कैरा डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड यानी KDCMPUL नाम काफी असहज लगता था। इसलिए वह संस्था का कोई ऐसा नाम रखना चाहते थे, जिसे कोई भी आसानी से समझ और बोल सके। जिसके बाद कर्मचारियों ने उन्हें ‘अमूल्य’ नाम सुझाया, जिसका अर्थ ‘अनमोल’ होता है। बाद में इसका नाम ‘अमूल’ हुआ।
अमूल की सफलता को देख तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री काफी प्रभावित हुए। उन्होंने 1965 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) का गठन कर, कुरियन को इसका अध्यक्ष बना दिया।
कुरियन की अगुवाई में ऑपरेशन फ्लड काफी सफल रहा और भारत कुछ दशकों में सबको पीछे छोड़ दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बन गया। आज के दौर में अमूल का टर्नओवर 52 हजार करोड़ रुपये से अधिक है।
आज से 75 साल पहले जो मुहिम सिर्फ एक जिले से शुरू हुई थी, आज उसका दायरा देश के 220 से अधिक जिलों में फैल गया। अमूल में आज हर दिन करीब 35 लाख लीटर दूध जमा होता है और इसकी प्रोसेसिंग क्षमता हर दिन करीब 50 लाख लीटर है। फिलहाल, इससे 35 लाख से अधिक किसान जुड़े हुए हैं। वहीं, दूध के कलेक्शन, प्रोसेसिंग और ड्रिस्ट्रीब्यूशन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 15 लाख लोगों को रोजगार मिलता है।
बता दें कि अमूल ने 2019 में तेल, आटा, शहद, पौटेटो चिप्स जैसे नॉन-डेयरी सेगमेंट में भी अपने बिजनेस को शुरू किया और उनका इरादा हर 200 मीटर की दूरी पर ग्राहकों को अमूल उत्पाद उपलब्ध कराने का है।
किसानों से दो-दो रुपए जमा कर बनाई फिल्म
अमूल ने यह मुकाम सिर्फ डॉ. वर्गिस कुरियन (Dr Verghese Kurien) के दूरगामी सोच की वजह से हासिल किया है। देश में दूध की नदियां बहाने वाले कुरियन को लोग सम्मान से ‘मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ कहते हैं।
वर्गीज के सहकारिता आंदोलन से प्रेरित होकर, 1976 में श्याम बेनेगल ने ‘मंथन’ फिल्म को बनाया था। किसानों से दो-दो रुपए चंदा लेकर बनाई गई इस फिल्म में गिरीश कर्नाड, नसीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी और स्मिता पाटिल जैसे कलाकारों ने भूमिका निभाई थी।
कहा जाता है कि इस फिल्म को बनाने के लिए 10 लाख की जरूरत थी, लेकिन श्याम बेनेगल के लिए इतना खर्च उठाना आसान नहीं था। उन्होंने जब यह बात कुरियन को बताई, तो उन्होंने कुछ हल निकालने का वादा किया।
फिर, वे दोनों साथ में किसानों के पास गए और उनसे एक दिन की कमाई से 2 रुपए फिल्म के लिए दान देने की अपील की, ताकि उनकी संघर्ष की कहानी को दुनिया को दिखाया जा सके। किसानों ने उनकी बात खुशी-खुशी मान ली और बाद में, इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
डॉ. वर्गिस कुरियन (Dr Verghese Kurien) ने 9 सितंबर 2012 को 90 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह पूरी जिंदगी लोगों की बेहतरी के लिए काम करते रहे।
समाज में उनके उल्लेखनीय योगदानों के लिए उन्हें 1963 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1989 में वर्ल्ड फूड प्राइज जैसे कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।
संपादन- जी एन झा
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