वीकेंड पर लेती हैं खाने के ऑर्डर, उन पैसों से खिलाती हैं बेसहारा जानवरों को खाना

Ludhiana Woman

लुधियाना में रहने वाली रूह चौधरी, पिछले कई सालों से इको-फ्रेंडली तरीकों से अपना जीवन जी रही हैं और साथ ही, वह हर दिन लगभग 75 बेसहारा जानवरों को खाना खिलाती हैं।

कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन में न सिर्फ लोगों को बल्कि जानवरों को भी बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। सभी लोग अपने घरों में बंद थे और बाजार भी सुनसान थे। ऐसे में, बेसहारा और बेजुबान जानवरों के लिए मुश्किलें बढ़ गयी। लेकिन, जिस तरह से नेकदिल लोगों ने जरूरतमंद लोगों तक खाना और राशन पहुँचाया, वैसे ही बहुत से नेकदिल ऐसे भी थे, जिन्होंने इन बेजुबानों का ख्याल रखा। आज हम आपको लुधियाना की रहने वाली 42 वर्षीया रूह चौधरी के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान हर रोज लगभग 500 बेसहारा कुत्तों को खाना खिलाया। 

हालांकि, ऐसा नहीं है कि उन्होंने यह काम सिर्फ लॉकडाउन में किया बल्कि वह बहुत पहले से ही बेसहारा जानवरों को हर रोज खाना खिला रही हैं। वह बताती हैं, “लेकिन लॉकडाउन के दौरान सब कुछ बंद था और इस वजह से जानवर, खाने की तलाश में इधर-उधर घुमने लगे थे। मैंने खुद देखा कि कैसे पशु-पक्षियों का हाल बेहाल था। मैं और मेरा बेटा हर रोज, दिन में एक बार जाकर इन सभी को खाना खिलाते थे। इसके अलावा, मैंने दूसरों से भी अपील की कि अगर कहीं भी उन्हें कोई भी बेसहारा जानवर दिखे तो उन्हें खाना खिलाएं।” 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “बचपन से ही मुझे जानवरों से काफी लगाव रहा है। अपने पापा से मैंने जानवरों की देखभाल करना सीखा। मुझे अगर कहीं भी कोई जानवर घायल दिखता है तो तुरंत उसे सही इलाज दिलाना और हर रोज उसे खाना खिलाना, यह सब मैं बचपन से कर रही हूँ। क्योंकि मेरा मानना है कि यह धरती और पर्यावरण सिर्फ हम इंसानों के लिए ही नहीं है बल्कि सभी जीव-जंतुओं का भी इन पर बराबर का अधिकार है। जरूरत है तो बस एक सही संतुलन स्थापित करने की, जो हम लोग दूसरे जीवों के प्रति थोड़ा-सा संवेदनशील होकर कर सकते हैं।” 

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रूह चौधरी

हर रोज खिलाती हैं 75 बेसहारा कुत्तों को खाना:

रूह पिछले कई सालों से अपने इलाके में लगभग 75 बेसहारा कुत्तों को खाना खिला रही हैं। वह कहती हैं कि कभी यह संख्या बढ़ जाती है तो कभी कम भी हो जाती है। वह इन्हें हर दिन सुबह या शाम में जाकर खाना देती हैं। वह कहती हैं, “दिन में अगर एक बार भी इन्हें पेट भर खाना मिल जाता है तो इन्हें कहीं भटकना नहीं पड़ता है। इसलिए, कुछ जगहों पर मैं सुबह जाकर खाना दे आती हूँ और कुछ जगहों पर मेरा 12 साल का बेटा, इन्हें शाम में खाना खिला कर आता है।”

वह कहती हैं कि सभी कुछ ठीक चल रहा था लेकिन, जैसे ही लॉकडाउन हुआ और कुछ दिनों में ही उन्होंने देखा कि इन बेजुबानों पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है। उन्होंने कहा, “मैं जब खाना खिलाने गयी तो देखा कि धीरे-धीरे बेसहारा जानवरों की संख्या बढ़ने लगी है। वे खाने की आस में इधर-उधर भटक रहे थे। कई बार तो मैंने उन्हें पत्थरों को चाटते देखा और यह देखकर मुझे बहुत बुरा लगा। इसलिए, मैं हर रोज ज्यादा खाना ले जाने लगी।” लेकिन जब जानवरों की संख्या 100 से भी ज्यादा होने लगी तो उन्हें लगा कि उन्हें फंडिंग के लिए कुछ करना पड़ेगा। 

लेकिन दूसरों से फंडिंग मांगने की बजाय, उन्होंने अपने स्तर पर कुछ करने की ठानी। रूह बताती हैं कि वह काफी समय से बेकिंग कर रही हैं और साथ ही, खाना बनाने का भी उन्हें शौक है। उन्होंने तय किया कि वह घर से ही एक छोटी-सी पहल करें और उन्होंने वीकेंड पर बतौर ‘होम शेफ’ काम शुरू किया। वह कहती हैं, “बेकिंग के कुछ ऑर्डर मैं पहले भी लेती थी। लेकिन यह नियमित नहीं था, बस मेरे कुछ दोस्तों तक सिमित था। अगर उन्हें कुछ खास चाहिए होता था तो वे मुझे ऑर्डर देते थे। लेकिन पिछले साल लॉकडाउन में, मैंने नियमित वीकेंड पर खाने के ऑर्डर लेना शुरू किया। मुझे इन ऑर्डर से जो भी पैसे आते हैं, मैं उनसे इन बेसहारा जानवरों के खाने और इलाज आदि की व्यवस्था करती हूँ।” 

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हर रोज खिलाते हैं बेसहारा जानवरों को खाना

सप्ताह की शुरुआत में ही रूह, लोगों को अपना मेन्यू बता देती हैं कि वह इस रविवार क्या डिशेज बनाने वाली हैं। शुक्रवार तक, वह लोगों से ऑर्डर ले लेती हैं। वह शनिवार को ऑर्डर के हिसाब से सभी तैयारियां कर लेती हैं और रविवार को ताजा खाना बनाकर ग्राहकों को पहुंचाती हैं। उनके मेन्यू में एक वेज डिश, एक नॉन-वेज डिश और एक मीठी डिश होती है। उनकी कोशिश रहती है कि वह ऐसे डिशेज लोगों को खिलाएं, जो लुधियाना में ज्यादा नहीं मिलती हैं। उनका कहना है कि हफ्ते में उन्हें सात से आठ ऑर्डर मिल जाते हैं और लगभग 30 ग्राहक उनसे जुड़े हुए हैं। 

इन ऑर्डर से उनकी जो भी कमाई होती है, उसे वह बेसहारा जानवरों की देखभाल में लगा रही हैं। उनका कहना है, “किसी की मदद करने के लिए आप में बस जज्बा होना चाहिए और फिर राहें अपने आप बनती चली जाती हैं।” 

जीती हैं पर्यावरण के अनुकूल जिंदगी: 

बेसहारा जानवरों के प्रति गहरा स्नेह और संवेदनशीलता रखने वाली रूह चौधरी, पर्यावरण को लेकर भी काफी सजग हैं। उनके घर से किसी भी तरह का कचरा बाहर प्राकृतिक स्त्रोतों तक पहुंचकर, पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करता है। बल्कि वह अपने घर पर ही कचरे का सही प्रबंधन करती हैं। वह बताती हैं कि वह अपनी रसोई के कचरे से जैविक खाद बनाती हैं, जिनका उपयोग वह अपने बेटे के साथ बागबानी करने में करती हैं। वह प्लास्टिक की कोई भी सामग्री नहीं खरीदती हैं और सभी तरह की खरीदारी के लिए कपडे का बैग लेकर जाती हैं। 

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मिट्टी के बर्तनों में पैक करती हैं खाना

वह कहती हैं, “मैं अपने बेटे के साथ शॉपिंग पर जाती हूँ और वहां सब उसे अब थैले वाला बच्चा कहने लगे हैं। इसी तरह जैविक कचरे से खाद बनाना, मेरे बेटे को भी अच्छी तरह से आता है और बागबानी भी शौक से करता है। मैं अपने बेटे की ‘होमस्कूलिंग’ कर रही हूँ। इसलिए, वह अभी से जीवन में आगे काम आने वाले हुनर सीख रहा है। जैसे- स्कूल में किताबों में बस पढ़ाया जाता है कि मिट्टी में बीज बोने के बाद वे अंकुरित होते हैं लेकिन, मेरा बेटा यह सब खुद अपने हाथों से करता है। छोटे-छोटे कदमों से बड़ा बदलाव आता है और आप एकदम से ‘जीरो-वेस्ट लाइफस्टाइल’ नहीं जी सकते हैं। यह एक प्रक्रिया है, जिसमें आप धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ाते हैं।” 

उनकी सभी डिशेज भी उनके ग्राहकों तक पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से पैक होकर पहुंचाई जाती हैं। अपनी डिशेज को पैक करने के लिए वह मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करती हैं और इन्हें बंद करने के लिए पत्तों और जुट की रस्सी का इस्तेमाल करती हैं। अगर कोई ग्राहक उनके यहां से आकर अपने ऑर्डर ले सकता है तो वह उन्हें अपने घर से ही स्टील के बर्तन लाने के लिए कहती हैं। उनका कहना है कि वह जितना हो सके, प्लास्टिक को अपनी जिंदगी से कम करने में जुटी हैं। खाना पकाने के लिए भी वह मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करती हैं। वह मसाले आदि पीसने के लिए, सिलबट्टा का इस्तेमाल करती हैं।

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इसी तरह, वह पुराने कपड़ों को अपसायकल करके उनसे कुछ नया और उपयोगी बनाने की कोशिश करती हैं। इसी तरह, मच्छरों को भगाने के लिए, वह गुडनाईट लिक्विड की जगह नीम के तेल में कपूर मिलाकर इस्तेमाल करती हैं। उन्होंने ऑनलाइन ऑर्डर के साथ आने वाले पैकेजिंग डिब्बों और पॉलिथीन से, बेसहारा कुत्तों के लिए छोटे-छोटे शेल्टर भी बनाए हैं। अंत में वह कहती हैं, “आप एक दिन में सबकुछ नहीं कर सकते हैं। क्योंकि, पर्यावरण के अनुकूल जिंदगी ढालने के लिए आपको धैर्य और संयम से आगे बढ़ना होता है। आप धीरे-धीरे हरेक चीज पर काम कर सकते हैं जैसे- शुरुआत घर के कचरे को अलग करने से कीजिए और फिर इसके प्रबंधन से। पॉलिथीन का इस्तेमाल भी धीरे-धीरे बिल्कुल बंद कीजिए और अपने साथ-साथ अपने बच्चों को भी इसका महत्व समझाइए।” 

अगर आप रूह चौधरी से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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