मैंने कहीं पढ़ा था कि चंपारण का असली नाम चंपकारण्य है और यह नाम इसलिए पड़ा कि पहले यहां के वन में चंपा के पेड़ों की बहुतायत हुआ करती थी। मगर चंपारण का वासी होने के बावजूद दो-तीन साल तक मैंने चंपा का कोई पेड़ नहीं देखा था। इस इलाके में कहीं कोई चंपा का पेड़ अमूमन नहीं दिखता था, अगर कहीं दिखा होगा भी तो हम उसे पहचानते नहीं थे। यह बात मुझे बहुत कचोटती थी। इसलिए पिछले साल मेरे दिल में ख्याल आया कि क्यों न चंपारण क्षेत्र को फिर से चंपा के पेड़ों से भरपूर बनाया जाए। इससे इस इलाके का नाम भी सार्थक होगा व क्षेत्र का पर्यावरण भी बेहतर होगा और यह सब शुरू हो गया।“
ये सुशील कुमार के शब्द हैं। महज कुछ साल पहले तक अपने इलाके में सुशील की पहचान 2011 में केबीसी के विनर के रूप में थी, जब उन्होंने पाँच करोड़ रुपए जीते थे। मगर अब सुशील चंपा वाले, पीपल और बरगद वाले हो गए हैं।
पिछले एक साल में उन्होंने अभियान चला कर बिहार के चंपारण में 70 हजार के करीब चंपा के पौधे लगवाए हैं और आजकल पीपल और बरगद के पेड़ लगवाने के अभियान में जुटे हैं।
चंपारण से ही हुई थी गाँधीजी के सत्याग्रह की शुरूआत
चंपारण वही इलाका है, जहाँ 1917 में महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह की शुरुआत की थी और वहाँ के नील किसानों को अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। अब वह इलाका पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण नामक दो जिलों में बंट गया है, मगर क्षेत्र की पहचान चंपारण नाम से ही होती है। सुशील उसी पूर्वी चंपारण के मुख्य शहर मोतीहारी में रहते हैं और वे लगातार सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े हैं।
सुशील कुमार के अनुसार उनका यह अभियान विश्व पृथ्वी दिवस के मौके पर 22 अप्रैल, 2018 को शुरू किया था। उस दौरान कुछ ही रोज पहले मोतीहारी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चंपारण सत्याग्रह समापन समारोह में भाग लेने आए थे। उनके स्वागत में शहर में जोरदार अतिक्रमण हटाओ अभियान चला था, जिससे मोतीहारी की सड़कें खुली, काफी चौड़ी और साफ सुथरी लगने लगी थी। तब उन्होंने सोचा कि क्यों न इन खुली सड़कों के किनारे चंपा के पौधे लगाए जाए। शुरूआत में पूर्वी चंपारण जिले के पांच आइकॉनिक प्लेस पर चंपा का पौधा लगाया गया। फिर सिलसिला शुरू हो गया, लोग इस अभियान से जुड़ने लगे।
अभियान को गति 5 जून, 2018 को पर्यावरण दिवस के मौके पर मिली, जब इस अभियान से जुड़े सभी लोगों ने मिलकर एक साथ 21 हजार चंपा के पौधे लगाए।
सुशील कहते हैं, “आज मोतीहारी शहर में शायद ही कोई ऐसा घर हो, जहां चंपा का पौधा नहीं लगा होगा, पश्चिम चंपारण के इलाके में भी यह अभियान जोर पकड़ रहा है। हमारा लक्ष्य है कि चंपारण के सभी गाँवों में, सभी टोल्स पर चंपा के पौधे दिखे और इन पौधों को देख कर लोग समझ सके कि चंपारण का नाम आखिर क्यों चंपारण है।”
एक साल में लग गए 70 हजार से ज्यादा पौधे
सुशील पिछले एक साल से लगातार यह अभियान चलाकर लोगों को चंपा के पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। यह पूछने पर कि कितने पौधे लगे, वे कहते हैं, यह बताना मुश्किल है। मगर शहर के दो नर्सरी वाले कहते हैं कि उन्होंने इस दौरान कम से कम 60 हजार पौधे बेचे हैं। इसके अलावा भी कई लोगों ने बाहर से चंपा के पौधे मंगाए हैं, दूसरी नर्सरियों में भी चंपा के पौधे बिके हैं। इससे एक अनुमान पर पहुंचते हैं कि एक साल में कम से कम 70 हजार चंपा के पौधे तो जरूर लगे होंगे।
बिहार केसरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह सेवा मंडल में नर्सरी चलाने वाले कृष्णकांत कहते हैं कि उन्होंने दस हजार से अधिक चंपा के पौधे इस अवधि में बेचे हैं। मोतीहारी की गोल्डेन नर्सरी के संचालक मोहम्मद इमामुल गफूर के अनुुसार वे पहले इक्का-दुक्का चंपा के पौधे बेचा करते थे, पर पिछले एक साल में उन्होंने 50 हजार से अधिक पौधे बेचे हैं।
महज दो साल पहले तक साल में चंपा के 25-50 पौधे भी नहीं बिकते थे। सुशील ने इसे चंपारण की पहचान के साथ जोड़ कर अचानक इसकी बिक्री बढ़ा दी है।
पीपल-बरगद बचाने के लिए भी शुरू किया अभियान
तकरीबन एक साल तक “चंपा से चंपारण” नामक इस अभियान को चलाने के बाद सुशील ने इस पर्यावरण दिवस को एक नया अभियान शुरू किया है। पीपल-बरगद पौधारोपण अभियान।
इस अभियान के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, “पर्यावरण के नजरिये से पौधरोपण अभियान के प्रति लोगों का रुझान तो हाल के वर्षों में खूब बढ़ा है, मगर लोग इस अभियान में भी पीपल और बरगद जैसे विशाल पेड़ों को लगाने से बचते हैं, क्योंकि ये काफी जगह घेरते हैं। जब कि हाल के वर्षों में ऐसे पेड़ तेजी से गायब हो रहे हैं। आने वाले समय में ये पेड़ विलुप्त न हो जाए, इसलिए मैंने इस अभियान को शुरू किया है।”
इस अभियान को चलाने का उनका एक खास तरीका है। वे पौधे लगाते हैं और उसका विवरण एक रजिस्टर में दर्ज करते हैं। उनकी योजना है कि पौधरोपण के बाद वे हर महीने पौधे की हाजिरी ले ताकि यह पता चल सके कि उन्होंने जो पौधा लगाया, वह सूख तो नहीं गया। अगर सूख गया, या किसी पशु ने चर लिया या कोई और दिक्कत हो गई तो उसके बदले में फिर से नया पौधा लगा सके।
सुशील कुमार के अनुसार इतने बड़े पेड़ को लगाने के लिए उचित जगह बहुत मुश्किल से मिलती है, इसलिए वे उस जगह को खोना नहीं चाहते। पिछले एक महीने में अब तक वे 94 पीपल, 4 बरगद के पौधे लगा चुके हैं। सुशील कुमार इस अभियान के जरिये मौसमी बदलाव, बारिश में आ रही कमी और प्रदूषण का मुकाबला करना चाहते हैं। उनका मानना है कि यह मुमकिन नहीं कि उनके सौ पेड़ लगाने से पर्यावरण सुरक्षित होगा, मगर वे अपना छोटा सा प्रयास तो कर ही सकते हैं। इस अभियान में उनका साथ देने वाले फिजियोथेरेपिस्ट अमरेश महर्षि कहते हैं, हमारा मकसद चंपारण को ऑक्सीजन जोन बनाना है।
संपादन – भगवती तेली
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